Mainpuri News: मैनपुरी से आई ये दिल दहला देने वाली कहानी न सिर्फ पुलिस तंत्र की लापरवाही की पोल खोलती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि एक छोटे से नाम की गलती किसी निर्दोष की पूरी जिंदगी कैसे तबाह कर सकती है। साल 2008 में दर्ज हुई एक एफआईआर में असली आरोपी “रामवीर” की जगह उसके भाई “राजवीर” का नाम दर्ज कर दिया गया। इसके बाद राजवीर को न सिर्फ 22 दिन की जेल काटनी पड़ी, बल्कि खुद को निर्दोष साबित करने के लिए उसे 17 साल तक कोर्ट-कचहरी में चक्कर लगाने पड़े। अब जाकर गैंगस्टर कोर्ट के जज ने उसे बेकसूर बताया है और पुलिस की लापरवाही पर सख्त टिप्पणी की है।
2008 में हुई थी बड़ी भूल, नाम के फेर में फंसा राजवीर
मामला 2008 का है, जब Mainpuri कोतवाली में गिरोहबंद अपराध के तहत एक एफआईआर दर्ज हुई थी। तत्कालीन इंस्पेक्टर ओमप्रकाश ने आरोपी के रूप में रामवीर का नाम दर्ज करना था, लेकिन गलती से उसके भाई राजवीर का नाम लिख दिया। इस नाम के फेर में राजवीर की जिंदगी अंधेरे में डूब गई। जांच अधिकारी शिवसागर दीक्षित ने भी बिना सत्यापन के नाम के आधार पर कार्यवाही कर दी और राजवीर को जेल भेज दिया गया। इसके साथ ही उस पर तीन ऐसे मुकदमे भी चस्पा कर दिए गए, जिनसे उसका कोई लेना-देना नहीं था।
17 साल तक काटे कोर्ट-कचहरी के चक्कर
राजवीर को इस गलती की सजा 22 दिन जेल में बिताकर और 17 साल तक बेगुनाही की लड़ाई लड़कर चुकानी पड़ी। उसने अपने वकील विनोद कुमार यादव के जरिए विशेष गैंगस्टर कोर्ट में अर्जी दी और अपनी निर्दोषता के लिए सबूत पेश किए। जांच में सामने आया कि न तो राजवीर घटनास्थल पर मौजूद था, और न ही उसका उस अपराध से कोई सीधा संबंध था। यहां तक कि तत्कालीन इंस्पेक्टर ने भी अदालत में यह स्वीकार किया कि नाम लिखने में गलती हुई थी।
कोर्ट ने माना निर्दोष, पुलिस पर साधा निशाना
विशेष गैंगस्टर कोर्ट के एडीजे स्वप्नदीप सिंघल ने राजवीर को सभी आरोपों से बरी कर दिया है। कोर्ट ने अपने आदेश में Mainpuri पुलिस की कार्यशैली पर तीखी प्रतिक्रिया दी और कहा कि शुरुआती गलती के बाद भी जब सच्चाई सामने आ गई थी, तब भी चार्जशीट में संशोधन नहीं किया गया। अदालत ने इसे न्याय व्यवस्था के साथ अन्याय बताते हुए पुलिस की संवेदनहीनता और अधिकारियों की लापरवाही पर सख्त टिप्पणी की।
दोषी पुलिसकर्मियों पर हो सकती है कार्रवाई
Mainpuri कोर्ट ने संकेत दिए हैं कि इस मामले में दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई हो सकती है। वहीं, 17 साल तक मानसिक, सामाजिक और आर्थिक पीड़ा झेलने के बाद राजवीर ने अब चैन की सांस ली है। यह मामला उत्तर प्रदेश पुलिस के कामकाज पर एक कड़ा सवाल खड़ा करता है कि आखिर कब तक निर्दोष लोग इस तरह सिस्टम की गलती का शिकार होते रहेंगे।