लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। संभल के डीएम और एसपी का एक वीडियो तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। जिसमें दोनों अफसर भगवान शिव और हनुमान जी की पूजा-अर्चना करते हुए देखे जा सकते हैं। जिसके बाद यूजर्स अपने-अपने तरीके से तर्क देने के साथ कमेंट लिख रहे हैं। ऐसे में हम आपको कानूनी पहलू से रूबरू कराने जा रहे हैं। क्या अफसर वर्दी में पूजा कर सकते हैं?। क्या कहता है नियम। … तो आइए जानते हैं कि कानून और सरकारी मैनअल क्या कहता है।
पहले जानें क्या है पूरा मामला
दरअसल, संभल हिंसा के बाद डीएम-एसपी ने बिजली चोरों के खिलाफ बडा ऑपरेशन लांच किया। तभी ं जामा मस्जिद के पास नखासा थाना क्षेत्र के खग्गू सराय इलाके में एक शिव-हनुमान मंदिर मिला, जो 46 सालों से बंद था। डीएम-एसपी की मौजूदगी में मंदिर के कपाट खोले गए। पुजारियों ने विधि-विधान से पूजा-अर्चना की। अगले दिन डीएम डॉ. राजेंद्र पेंसिया और एसपी कृष्ण कुमार मंदिर पहुंचे थे। उसी दौरान उन्होंने पूजा-अर्चना भी की। मंदिर के पुजारी ने दोनों के तिलक लगाया और प्रसाद भी दिया।
मंदिर का नाम कार्तिक महादेव मंदिर
डीएम और एसपी ने इस मंदिर के पुजारी से और जानकारी हासिल की। पूछा कि क्या इस मंदिर के बारे में किसी पुस्तक में जिक्र मिलता है। इस पर पुजारी ने उन्हें बताया कि इस मंदिर का नाम कार्तिक महादेव मंदिर है। कार्तिक महादेव मंदिर के बारे में संभल महादेव नामक पुस्तक में जिक्र है मिलता है। दोनों क ऑन ड्वूटी भगवान की भक्ति का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। जिस पर यूजर्स अपने-अपने कमेंट भी लिख रहे हैं। कुछ लोग सवाल खड़ा करने के साथ कानूनन इसे गलत भी बता रहे हैं।
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
इस पूरे प्रकरण पर सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट अश्विनी कुमार दुबे ने एक न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू के दौरान बताया कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 अपने धर्म का पालन करने की अनुमति हर व्यक्ति को देता है। चाहे वह किसी भी पद पर हो या सामान्य आदमी हो। भारत के हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है। अनुच्छेद 25 वास्तव में धार्मिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देता है। इसमें कहा गया है कि किसी धर्म को स्वतंत्र रूप से मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने का अधिकार हर भारतीय के पास है।
धार्मिक पूजा में मौजूद होने की स्वतंत्रता
एडवोकेट अश्विनी कुमार दुबे ने आगे बताया, इसी तरह से संविधान का अनुच्छेद 26 यह धार्मिक मामलों के लिए प्रबंधन की स्वाधीनता का अधिकार देता है। अनुच्छेद 27 किसी धर्म विशेष के प्रचार के लिए कर के भुगतान के रूप में आजादी निर्धारित करता है और अनुच्छेद 28 कुछ शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक पूजा में मौजूद होने की स्वतंत्रता देता है। एडवोकेट अश्विनी कुमार दुबे ने कहा कि दोनों ने कानून का उल्लंघन नहीं किया। मुस्लिम समुदाय के अफसर भी ड्यूटी के दौरान नवाज पढ़ते हैं।
मान्यता का पालन करने के लिए स्वतंत्र
एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि अफसरों के सार्वजनिक रूप से जब अपनी धार्मिक मान्यता का सवाल आता है, तो इसके बारे में आईएएस-आईपीएस की सर्विस बुक में आचरण नियमावली मौन है। हालांकि, वे एक व्यक्ति के रूप में अपने परिसर में पूजा-पाठ या अपनी किसी भी धार्मिक मान्यता का पालन करने के लिए स्वतंत्र हैं। अफसरों की आचरण नियमावली इस बारे में कोई रोक नहीं लगाती है। फिर भी नीतिगत स्तर पर जब कोई अफसर वर्दी में होता है तो उससे अपेक्षा की जाती है कि वह तटस्थ रूप से अपनी धार्मिक भावनाओं पर संयम रखते हुए काम करेगा। ऐसे में किसी वर्दीधारी अफसर को सार्वजनिक रूप से किसी मंदिर आदि में पूजा से बचना चाहिए।
तब आईपीएस प्रशांत किशोर ने की थी पुष्प वर्ष
बता दें, उत्तर प्रदेश के वर्तमान डीजीपी प्रशांत कुमार का भी वीडियो साल 2018 में खूब वायरल हुआ था। संयोग से तब वह मेरठ जोन के एडीजी थे। उन्होंने हेलीकॉप्टर से कांवड़ियों पर फूलों की बारिश की थी। इस वीडियो को लेकर तब खूब चर्चा की गई थी। इसके अलावा दूसरे राज्यो में भी अफसर कांवड़ियों पर पुष्प वर्षा करते हुए देखे गए। कानून के जानकार इसे गलत नहीं बताते। उनका कहना है कि संविधान में सबको पूजा-अर्चना की छूट दी गई है।