लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। संभल पुलिस-प्रशासन ने हरवर्ष होने वाले नेजा मेला को बैन करने के साथ ही ढाल गाड़ने वाले गड्डे को सीमेंट से भरकर बंद करवा दिया है। पुलिस की तरफ से कहा गया है कि किसी आक्रांता के नाम पर ऐसे आयोजनों की अनुमति नहीं दी जाएगी। वहीं संभल का असर बुधवार को मुरादाबाद के बिलारी में भी दिखा। यहां बीजेपी और अन्य हिंदू संगठनों के पदाधिकारियों ने एसडीएम को ज्ञापन देकर थांवला गांव में लगने वाले नेजा मेला पर पूरी तरह से रोक लगाने की मांग की। हिंदू संगठनों के विरोध के चलते फिलहाल थांवला का नेजा मेला स्थगित हो गया है।
गाजी की याद में लगता था मेला
दरअसल, संभल में होली के दूसरे मंगलवार को नेजा मेला का आयोजन होता रहा है। तीन दिवसीय नेजा मेला में आक्रमणकारी महमूद गजनवी के सेनापति सैयद सालार मसूद गाजी को याद किया जाता है। नेजा मेले में पताका और ढाल गाड़ा जाता है। सोमवार को नेजा मेला कमेटी के लोगों ने सदर कोतवाली में एएसपी श्रीश चंद्र से मिलने पहुंचे थे। इस दौरान एएसपी श्रीशचंद्र ने कमेटी को लोगों को साफ कह दिया था कि मेला नहीं लगने दिया जाएगा। एएसपी श्रीशचंद्र ने कहा था कि सैयद सालार मसूद गाजी ने सोमनाथ मंदिर को लूटा था, उसकी याद में मेला नहीं लगने दिया जाएगा। पताका ढाल लगाने वाले देशद्रोही कहलाएंगे।
SDM से मिले मेला कमेटी के लोग
इसके बाद मंगलवार को संभल पुलिस ने नेजा मेला स्थल पर ढाल गाड़ने वाली जगह को सीमेंट से भरकर बंद कर दिया गया। बता दें कि ढाल गाड़ने के लिए मेला स्थल पर एक स्थान पर गड्डा बना हुआ था। पुलिस और प्रशासन ने गड्डा बंद करा कर ढाल नहीं गाड़ने देने की चेतावनी दी है। साथ ही मौके पर भारी फोर्स तैनात कर दी गई। इलाके में ड्रोन से निगरानी की जा रही है। वहीं जिस शाहबाजपुर गांव में नेजा मेले का आयोजन हुआ करता था, वहां के ग्राम प्रधान और कुछ ग्रामीण एसडीएम से मिले। जिन्होंने सद्भावना नाम के मेले की अनुमति 2023 का हवाला देते हुए मेला लगने की इजाजत मांगी है। मेला कमेटी से एसडीएम वंदना मिश्रा ने अभी विचार करने की बात कहते हुए अश्वासन दे दिया है।
मेजा मेला पर रोक लगाने की थी मांग
नेजा मेला को लेकर दूसरे समुदाय के लोगों द्वारा पुलिस प्रशासन के समक्ष अपत्ति दर्ज कराई गई थी। लोगों का कहना था कि सैयद सलार मसूद गाजी ने अपने देश को नुकसान पहुंचाने जैसे कृत्य किए थे। ऐसे व्यक्ति के नाम पर मेले का आयोजन कर उसका गुणगान किया जाना ठीक नहीं है। इस अपत्ति के दौरान बीते सोमवार को नेजा मेला कमेटी के लोग अपर पुलिस अधीक्षक श्रीश चंद्र से मिले। जहां उन्होंने अनुमति के लिए पहुंचे लोगों से पूछा कि आप किसके नाम पर मेले का आयोजन करते है। इसको लेकर आयोजकों ने कहा कि सैयद सलार मसूद गाजी के नाम पर नेजा मेला किया जाता है। इसके बाद एडिशनल एसपी श्रीश चंद्र देश हित की बात कहते हुए एक्शन में नजर आए उन्होंने दो टूक साफ तौर पर बोल दिया कि सैयद सलार मसूद गाजी के नाम पर अनुमति नहीं दी जाएगी।
मुरादाबाद में भी नहीं लगेगा मेजा मेला
संभल में लगने वाला नेजा मेला शांति व्यवस्था के मददेनजर निरस्त कर दिए जाने के बाद बुधवार को मुरादाबाद के बिलारी में हिंदू संगठनों के पदाधिकारी तहसील मुख्यालय पहुंचे और एसडीएम विनय कुमार सिंह को ज्ञापन दिया। ज्ञापन में कहा गया कि सोमनाथ के मंदिर पर हमला कर लूटपाट करने वाले सय्यद सालार मसूद गाजी की याद में थांवला गांव में नेजा मेला लगता है। उपजिलाधिकारी बिलारी विनय कुमार सिंह का कहना है कि तहसील के थांवला गांव में इस वर्ष नेजा मेला आयोजन की अनुमति के लिए उन्हें कोई आवेदन नहीं मिला है। मेला कमेटी अथवा ग्राम पंचायत के किसी प्रतिनिधि ने भी कोई आवेदन उनके समक्ष नहीं किया है।
कौन था सैयद सलार मसूद गाजी
गौरतलब है कि सैयद सलार मसूद गाजी विदेशी आक्रांता महमूद गजनवी का भांजा और सेनापति हुआ करता था। गजनवी ने 1000 से 1027 ईस्वी के दौरान भारत पर 17 बार हमला किया था। जानकारों के मुताबिक, सालार मसूद गाजी 11वीं सदी में 1014 ईस्वी में अजमेर में पैदा हुआ था। वह महमूद गजनवी का भांजा था और उसका सेनापति भी था। अपनी तलवार के दम पर वह 1030-31 के आसपास अवध के इलाकों में आया और बहराइच-श्रावस्ती के इलाके में पहुंचा। उस समय यहां राजा सुहेलदेव का शासन था। 1034 में बहराइच के पास चित्तौरा झील के किनारे राजा सुहेलदेव ने 21 राजाओं के साथ मिलकर सालार मसूद गाजी से युद्ध किया और उसे मार डाला। उसे बहराइच के दरगाह शरीफ में दफना दिया गया। सालार मसूद गाजी का मजार बहराइच में है। यहां भी हर साल जेठ का मेला लगता रहा है।
बहराइच में हैं सैयद सलार मसूद गाजी की मजार
सालार मसूद गाजी का मजार बहराइच में है। यहां भी हर साल जेठ का मेला लगता रहा है। लेकिन अब इस बार मेले से पहले बवाल खड़ा हो गया है। दरअसल कुछ संगठनों ने इस मेले का विरोध किया है। इन सबने डीएम को चिट्ठी लिखी है और मेले को न कराने की मांग की है। लोगों का मानना है कि जहां सालार मसूद को दफनाया गया, वहाँ पहले बालार्क ऋषि का आश्रम था और पास में एक कुंड था जिसे सूर्यकुंड कहते थे। दावा किया जा रहा है कि सालार मसूद की मौत के 200 साल बाद 1250 में दिल्ली के मुगल शासक नसीरुद्दीन महमूद ने उसकी कब्र पर मकबरा बनवाया और उसे संत बताया। बाद में फिरोज शाह तुगलक ने मकबरे के पास कई गुंबद बनवाए और अब्दी गेट लगवाए, जो बाद में सालार मसूद गाजी की दरगाह के नाम से मशहूर हुआ।