नोेएडा डेस्क (अम्बुजेश कुमार) संभल हिंसा (Sambhal News) के बाद वहां अमनचैन का माहौल तो बन गया लेकिन विपक्षी नेताओं के पेट का दर्द खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। लगातार दूसरे दिन कांग्रेस ने खूब हंगामा काटा। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने अपनी बहन और वायनाड सांसद प्रियंका गांधी के साथ संभल कूच किया, जिसके बाद पुलिस हरकत में आ गई। दिल्ली और यूपी की सीमा पर नाकाबन्दी कर दी गई। जिसके बाद राहुल और प्रियंका बॉर्डर तक तो पहुंच गए लेकिन आगे नहीं बढ़ सके।
नाराज कांग्रेसियों ने सड़क पर बैठकर धरना देना और नारेबाजी शुरु कर दी लेकिन पुलिस के सख्त रुख के आगे किसी की एक ना चली और कांग्रेस नेताओं को बॉर्डर से ही बैरंग वापस लौटना पड़ा। इससे पहले मंगलवार को लखनऊ में कांग्रेस नेताओं का हाई वोल्टेज सियासी ड्रामा देखने को मिला जब संभल जाने की कोशिश में कांग्रेसियों और पुलिस के बीच जमकर भिड़ंत हुई और आखिरकार यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय को लखनऊ से बाहर नहीं जाने दिया गया।
आखिर संभल में ऐसा कौन सा हीरा जड़ा है ?
बड़ा सवाल ये कि आखिर संभल (Sambhal News) में कौन सा हीरा मोती जड़ गया है जो विपक्ष के नेताओं का पानी नहीं पच रहा है और वो लगातार संभल जाने की कोशिश में हैं। ये जानते हुए कि संभल में 10 दिसम्बर तक बाहरी लोगों के प्रवेश पर निषेधाज्ञा लागू है। ऐसे में फिर बार बार ये सियासी ड्रामा करने की क्या जरूरत है। तो इसके पीछे तुष्टिकरण की वही पुरानी सियासत जिम्मेदार है जिसकी दाल हाल फिलहाल एक दशक से नहीं गल पा रही है।
इसके बावजूद विपक्ष को अभी भी इसी सियासत का सहारा है। संभल मुस्लिम बहुल जिला है, जहां पर सियासी दावेदारी में समाजवादी पार्टी सबसे आगे रही है। संभल के सांसद और विधायक दोनों ही समाजवादी पार्टी से आते हैं। ऐसे में सपा के लिए मजबूरी ये है कि अगर वो संभल मामले पर स्टैंड नहीं लेती है तो उसके वोटरों में गलत संदेश जाएगा। वहीं लोकसभा चुनाव में छह सीटें झटकने के बाद कांग्रेस को लगता है कि उसके लिए भी सियासी जमीन तैयार हो चुकी है लिहाजा संभल के बहाने कई निशाने साधे जा रहे हैं।
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संभल कांड में पाकिस्तान एंगल, फिर भी सियासी दंगल
संभल कांड (Sambhal News) में एक नया खुलासा हुआ है। मामले की जांच कर रही एजेंसियों को यहां से मेड इन पाकिस्तान और मेड इन अमेरिका कारतूस मिले हैं जिसके बाद से मामले में टेरर कनेक्शन को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। मामले की जांच में जुटी एनआईए की टीम संभल में ही मौजूद है। ऐसे में सवाल ये भी उठ रहे हैं कि ऐसे संवेदनशील माहौल में क्या नेताओं का राजनीतिक पर्यटन उचित है। और अगर गलती से कोई वहां पहुंच भी गया तो क्या उससे संभल का माहौल प्रभावित नहीं होगा। और क्या महज वोट बैंक को साधने के लिए देश की सुरक्षा से जुड़े मामले की जांच में विघ्न डालना उचित है।
पत्थरबाजों से हमदर्दी, पुलिसवालों की फिक्र नहीं
संभल हिंसा (Sambhal News) के बाद से ही समाजवादी पार्टी ने ऐसा माहौल बनाने की कोशिश की है जिससे ये संदेश जाए कि संभल में हुए बवाल के पीछे पुलिस तंत्र जिम्मेदार है। जबकि हकीकत ये है कि पुलिस ने भीड़ को नियंत्रित करने की हर मुमकिन कोशिश की और जब मामला काबू में नहीं आया तो आंसू गैस के गोले छोड़े। बात फायरिंग की करें तो फायरिंग भी भीड़ की ओर से हुई जिसमें चार लोगों की मौत हुई। जांच में स्पष्ट है कि पुलिस की गोली से किसी की जान नहीं गई। लेकिन समाजवादी पार्टी ने उलटे पुलिस को ही विलेन बनाने की कोशिश की जबकि उसके खुद के सांसद और विधायक भीड़ को उकसाने में लिप्त पाए गए हैं।