लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। सिर पर लाल पट्टी और माथे पर लगाती थी लाल टीका। हाथ पर लेकर चलती थी एके 47 राइफल और शरीर पर थी बागी वर्दी। प्यार के कारण जब खूबसूरत लड़की ने कोमल कर कमलों में बंदूक थामी तो 6 लाख एकड़ में फैले चंबल इलाके में दहशत फैल गई। खूंखार लेडी डाकू के खौफ से बीहड़ के बड़े-बड़े डाकू सरगना उसके बागी तेवरों की आग में पिगलते नजर आए। इतना ही नहीं यूपी, एमपी और राजस्थान के जंगलों से लेकर रहवासी इलाके में उसके नाम मात्र से ही अच्छे-अच्छों की हवा ढीली हो जाया करती थी। आमजनों से लेकर लालाजनों तक सब उससे खौफजदा तो थे ही, पुलिसिया महकमे के लिए भी वो ऐसा सिरदर्द बनी कि मोस्ट वॉन्टेड की फेहरिस्त में शामिल होते उसे ज्यादा दिन नहीं लगे। फिर क्या था लेडी डकैत चुनावों में सीधी दखल देने लगी। जंगल से फतवा जारी करती। फरमान नहीं मानने वालों को खौफनाक सजा देती। हां हम बात कर रहे हैं डकैतन कुसुमा नाइन की, जो अब इस दुनिया में नहीं रही। बीमारी के चलते रविवार को उसकी मौत हो गई।
पहले जानें कुसुमा नाइन के बारे में
डकैत कुसुमा नाइन क जन्म जालौन जनपद के टिकरी गांव में 1964 को हुआ था। पिता गांव के सरपंच रहे। घर पर सरकारी राशन की दुकान थी। परिवार के पास कई एकड़ खेत थे। कुसुमा का बचपन रईसी में बीता। जब कुसुमा की उम्र करीब 15 साल की थी तभी उसकी दोस्ती पड़ोसी माधव मल्लाह से हो गई। दोनों एक साथ स्कूल जाते। फिर एक दिन ऐसा आया कि दोस्ती प्यार में बदल गई। कुसुमा औा माधव एक-दूसरे से शादी करने पर अड़ गए। पिता ने पाबंदियां लगाई तो कुसुमा अपने प्रेमी के साथ भाग गई। पिता ने पुलिस में शिकायत की। पुलिस ने कुसुमा को दिल्ली से पकड़कर थाने लाई। कुसुमा को पुलिस ने उसके पिता के हवाले कर दिया। पिता ने कुसुमा की शादी कर दी। जिससे कारण उसके प्रेमी माधव मल्लाह ने बंदूक उठा ली और बीहड़ में उतरकर डकैत बन गया। वह गैंग के साथ आया और कुसुमा को उसके पति से छीनकर बीहड़ों में ले गया। यहीं से कुसुमा की जिंदगी की दिशा और दशा दोनों बदल गई। बताया जाता है कि माधव ने जंगल में कुसुमा के साथ शादी कर ली। उसे हथियार चलाने की ट्रेनिंग भी दी गई।
लालाराम की भरोसेमंद सदस्य बन चुकी थी कुसुमा
कुसुमा नाइन अपने प्रेमी पति माधव मल्लाह के साथ विक्रम मल्लाह की गैंग में रही। विक्रम की गैंग में फूलनेदेवी थी, जिससे कुसुमा की नहीं पटती थी। फूलनेदवी का गैंग में रूतबा था। फूलन के इशारे पर विक्रम सारे काम करता। तभी फूलन देवी के कहने पर विक्रम ने कुसुमा नाइन को लालाराम की मुखबिरी का टॉस्क दिया। कुसुमा को चुपचाप लालाराम की गिरोह में शामिल करवा दिया। कुसुमा को लालाराम की मुखबिरी करने के साथ ही मारने की काम सौंपा गया। पर कुसुमा ने विक्रम-फूलन के प्लान में पानी फेर दिया। कुसुमा ने लालराम को सारी हकीकत बता दी। लालाराम ने कुसुमा को अपनी गैंग में शामिल कर लिया। महज कुछ माह के अंदर कुसुमा लालाराम की सबसे भरोसेमंद सदस्य बन चुकी थी। कुसुमा नाइन की क्रूरता के किस्से चंबल में दहशत की तरह फैले थे। जो भी उसके गिरोह की गिरफ्त में आता, उसे जिंदा नरक भोगना पड़ता। कभी वह अपहरण किए गए लोगों के नाखून उखाड़ देती, तो कभी जलती लकड़ी से उनके शरीर को दाग देती। कुसुमा जंगल में अपहरण उद्योग को जन्म दिया।
बेहमई कांड के बाद कुसुमा ने बहाया लोगों का खून
चंबल और बीहड़ में विक्रम मल्लाह और लालराम गिरोह के बीच अदावत अपने चरम पर थी। फूलनदेवी हरहाल में लालाराम-सियाराम को मारने पर तुली थी। सन 1982 को फूलन देवी को लालराम-सियाराम के बारे में जानकारी मिली। फूलन देवी गैंग के साथ कानपुर के बेहमई गांव में धावा बोल दिया। फूलन के आने से पहले ही लालाराम-सियाराम गांव से निकल चुके थे। जिससे गुस्साई फूलन देवी ने 18 लोगों को लाइन पर खड़ा कर गोलियों से फून दिया। 18 लोगों की हत्या के बाद लालाराम गिरोह भी बदले की आग में झुलस रहा थ। तभी कुसुमा नाइन औरैया के आस्ता गांव में धावा बोल देती है। मल्लाह समाज के 14 लोगों को घर से बाहर लाकर मौत के घाट उतार देती है। इस हत्याकांड के बाद कुसुमा नाइन को चंबल की आदमखोर शेरनी के नाम से लोग पुकारने लगे थे। कुसुमा का नाम बड़ा हुआ तो उसने लालाराम का साथ छोड़ फक्कड़ बाबा से हाथ मिला लिया। कुसुना ने बीहड़ से चुनावी फतवे जारी करने लगी। सरपंच से लेकर सांसद के चुनाव में कुसुमा की दखल होती। जंगल से पर्चा निकलता और जिसका नाम होता लोग उसे ही वोट करते। जो भी फरमान मानने से इंकार करता तो कुसुमा उसकी आंख निकाल लेती। हाथों की अंगुलियां काट कर अपने साथ ले जाया करती।
दोनों की फोड़ दी आखें
कुसुमा ने औरैया के आस्ता गांव निवासी संतोष की दोनों आंखें निकाल ली थीं। संतोष ने बताया कि दस्यु फक्कड़ बाबा उर्फ राम आसरे के भांजे रमाकांत, मोहन और पप्पू ने गांव के कामता प्रसाद की हत्या कर दी थी। इस मामले का मैं चश्मदीद था। गवाही से भांजों को सजा होने के डर से फक्कड़ बाबा ने मुझे सबक सिखाने का ऐलान किया था। 15 दिसंबर, 1996 की रात करीब 10 बजे कुसुमा नाइन की अगुवाई में करीब 15 डकैतों ने मेरे घर को घेर लिया। डकैत मुझे और मेरे घर पर सो रहे मित्र राजबहादुर समेत गांव के 6 लोगों को बंधक बनाकर गांव से 4 किलोमीटर दूर बीहड़ में ले गए। वहां डकैतों ने मेरे साथ बेरहमी से मारपीट की। इसके बाद धारदार हथियार से मेरी और राजबहादुर की आंखें फोड़ दीं। मेरे 4 साथी हम दोनों को किसी तरह गांव लेकर गए। इस घटना की रिपोर्ट राजबहादुर के भाई महलवान सिंह ने अयाना थाना में दर्ज कराई थी। डकैतों के विरोध में आंखें गंवाने वाले दोनों दोस्तों का कहना है कि डकैतों ने बीहड़ पर जमकर कहर बरपाया। जिससे आज तक बीहड़ उबर नहीं सका है।
2004 में कुसुमा नाइन ने किया था सरेंडर
डकैत पुतली बाई के बाद कुसुमा नाइन चंबल की सबसे बड़ी महिला डकैत बन चुकी थी। लेकिन फक्कड़ बाबा नाम के डकैत ने उसके अंदर छिपे साध्वी को जगा दिया। साल 2004 में कुसुमा नाइन और फक्कड़ बाबा ने अपनी पूरी गैंग के साथ सरेंडर करने का फैसला किया। कुसुमा ने शर्त रखी कि वह यूपी के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के सामने ही सरेंडर करेगी, लेकिन मुलायम व्यस्त थे और नहीं आ सके। इसके बावजूद, कुसुमा नाइन ने हथियार डाल दिए और जेल चली गई। वहां उसने 20 साल की सजा भी काटी। इटावा जेल में बंद थी। टीबी होने पर उसे सैफई मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया। हालत बिगड़ी तो लखनऊ केजी एमयू रेफर किया गया। यहां रविवार सुबह उसकी मौत हो गई।