बूथ से लेकर वोट तक… 2027 विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी, साप, कांग्रेस और बसपा में सियासी घमासान शुरू

UP Assembly Election 2027: 2027 के चुनाव भले ही दूर हों, लेकिन जमीनी तैयारी अभी से चरम पर है। अब यह साफ है कि यूपी में चुनाव महज़ हवा से नहीं, बल्कि बूथ की बिसात और संगठन के दम पर लड़े जाएंगे।

UP Assembly Election

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उत्तर प्रदेश में 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव में अभी लगभग डेढ़ साल का वक्त बाकी है, लेकिन राजनीतिक दलों की तैयारियों ने चुनावी पारा अभी से बढ़ा दिया है। एक ओर बीजेपी तीसरी बार सत्ता में वापसी की कोशिश में पूरी ताकत झोंक रही है, तो दूसरी ओर समाजवादी पार्टी के अंदर 10 साल का सूखा खत्म करने की बेचैनी साफ दिख रही है। लोकसभा चुनाव से जिंदा हुई कांग्रेस के हैंसले बुलंद दिख रहे हैं। दूसरी ओर दम तोड़ चुकी बसपा भी मैदान में उतरने की रणनीति को अंतिम रूप देने में जुट गई हैं। ऐसे में चुनावी राजणनीति में अब केवल जनसभाएं नहीं, बल्कि बूथ स्तर पर मैनेजमेंट ही जीत की असली कुंजी बन गई है। यही कारण है कि सभी दल ‘बूथ जीतो, चुनाव जीतो’ के मंत्र पर काम कर रहे हैं।

‘बूथ जीतो, चुनाव जीतो’
यूपी में भारतीय जनता पर्टी की रणनीति की धुरी एक बार फिर सीएम योगी के इर्द गिर्द ही घूम रही है। भले ही मुख्यमंत्री कई बार खुले मंच से खुद को फुल टाइम पॉलीटिशिन न बाताकर मठ के प्रति अपनी जिम्मेदारी जता चुके हैं। लेकिन पिछले दिनों लोकसभा में अमित शाह ने जीस तरह सपा मुखिया अखिलेश यादव से बहस के दौरान यूपी में ‘फिर योगी रिपीट होंगे’ जवाब दिया था। उससे सारी आशांकाओं पर विराम लग गया। वहीं, संगठनात्मक दृष्टि से देखे तो बीजेपी ने हर मंडल स्तर पर रिपोर्टिंग सिस्टम को मज़बूत किया है।

समाजवादी पार्टी का ‘PDA’ फॉर्मूला
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 2024 लोकसभा चुनाव में ‘PDA’ यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक वर्गों को साथ लेकर चलने की रणनीति अपनाई थी। अब पार्टी इसे 2027 तक और धार देने में जुटी है। कार्यकर्ताओं को ज़िला स्तर पर ट्रेनिंग दी जा रही है ताकि वे बूथ स्तर तक समाजवादी विचारधारा को पहुंचा सकें।

कांग्रेस का बूथ सशक्तिकरण प्लान
2024 लोकसभा चुनाव में यूपी में भले कांग्रेस को बहुत ज्यादा सफलता नहीं मिली, लेकिन रायबरेली की जीत और विपक्षी गठबंधन में अहम भूमिका निभाने के बाद पार्टी अब पूरी तैयारी से 2027 के विधानसभा चुनाव की तरफ बढ़ रही है। कांग्रेस अब परंपरागत ब्राह्मण-दलित-मुस्लिम समीकरण के साथ-साथ ओबीसी वर्ग में भी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है।

बसपा का संगठन ‘पुनर्गठन’
हालांकि बसपा का जनाधार पिछले कुछ चुनावों में काफी कमज़ोर हुआ है, लेकिन मायावती अभी भी मैदान छोड़ने के मूड में नहीं हैं। बीते कुछ महीनों में बसपा ने संगठन स्तर पर कई बदलाव किए हैं। इसमें ओबीसी वर्ग के साथ अलग से बैठक करना और आकाश आनंद को हटाना शामिल है। मायावती ने मंडल स्तर पर समीक्षा बैठकें तेज कर दी गई हैं। दलित वोट बैंक को दोबारा एकजुट करने की दिशा में पार्टी ज़ोर दे रही है।

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हैट्रिक लगाने की ओर बीजेपी 
2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी उत्तर प्रदेश में कमजोर स्थिति में थी और सिर्फ 47 सीटें जीत पाई थी। हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव में मिली जबरदस्त सफलता के बाद पार्टी ने 2017 में ऐतिहासिक वापसी की। 2017 के चुनाव में बीजेपी ने 312 सीटों पर जीत हासिल कर बहुमत से सरकार बनाई। 2022 में भी पार्टी ने सत्ता बरकरार रखते हुए 273 सीटों पर जीत दर्ज की, हालांकि पिछली बार की तुलना में सीटें कुछ कम रहीं। इसके बावजूद यह लगातार दूसरी बार सत्ता में आने वाली पहली गैर-कांग्रेस सरकार बनी।

सपा की मजबूत वापसी 
2012 का विधानसभा चुनाव सपा के लिए सबसे बड़ी जीत लेकर आया, जब पार्टी ने 224 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने। हालांकि 2017 में बीजेपी की सुनामी के सामने सपा महज़ 47 सीटों पर सिमट गई। 2022 में पार्टी ने मजबूत वापसी की और अपने गठबंधन के साथ 125 सीटों पर जीत हासिल की।

गिरता गया कांग्रेस का ग्राफ
2012 में कांग्रेस ने रालोद के साथ गठबंधन कर 28 सीटें हासिल की थीं, लेकिन 2017 में सपा के साथ गठबंधन के बावजूद कांग्रेस का प्रदर्शन गिरा और पार्टी सिर्फ 7 सीटों पर सीमीत रह गई। 2022 में कांग्रेस का ग्राफ और नीचे चला गया और उसे महज़ 2 सीटों से ही संतोष करना पड़ा। हालांकि अब पार्टी 2027 के लिए बूथ स्तर पर नई रणनीति बना रही है।

बसपा की बेहद चिंताजनक स्थिति
मायावती की अगुवाई वाली बसपा ने 2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी, लेकिन 2012 में वह 80 सीटों पर सिमट गई। 2017 के चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन और भी खराब रहा और बसपा को सिर्फ 19 सीटें मिलीं। 2022 में स्थिति बेहद चिंताजनक रही, जहां पार्टी केवल 1 सीट पर ही जीत दर्ज कर सकी। लगातार गिरते ग्राफ को देखते हुए अब बसपा संगठन को मजबूत करने पर फोकस कर रही है।

क्या है राजनीतिक विश्लेषक की राय?
इस बारे में न्यूज वन इंडिया के कंसल्टिंग एडिटर आशुतोष अग्निहोत्री कहते हैं कि पिछले कई चुनाव में उत्तर प्रदेश की जनता के मूड को देखा जाए तो जनता ने किसी एक दल के ऊपर बार-बार भरोसा नहीं जताया है। वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव में सभी राजनीतिक दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़े। बसपा और भाजपा ने मिलकर सरकार बनाई, लेकिन बसपा ने सरकार से समर्थन वापस लिया और भाजपा ने मुलायम सिंह यादव को बाहर से समर्थन दिया। 2007 में बसपा ब्राह्मण दलित गठजोड़ के सहारे पूर्ण बहुमत के साथ सपा सत्ता में आई और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने। लेकिन 2017 के चुनाव आते-आते अखिलेश सरकार भी अपने फैसलों और पारिवारिक कलह के बीच फंस गई और नतीजा 2017 के चुनाव में जनता ने पूरी तरह से सपा को नकार दिया और भारतीय जनता पार्टी को बहुमत सौंप दिया। भारतीय जनता पार्टी के पास उस समय कोई चेहरा नहीं था, लेकिन योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद जिस तरह से उन्होंने प्रदेश को संभाल और कानून व्यवस्था पर बेहतरीन काम किया उसका फल जनता ने 2022 के विधानसभा चुनाव में बहुमत के साथ जीत के रूप में योगी आदित्यनाथ को दिया। आज के समय में योगी आदित्यनाथ जिस तरीके से यूपी में काम कर रहे हैं उनके उदाहरण दूसरे प्रदेशों में भी अपनाए जा रहे हैं। योगी अपने नाम और काम से विपक्षी दलों से कहीं आगे हैं। अगर आने वाले चुनाव में बीजेपी योगी के सहारे फिर से चुनाव में जाती है तो जीत की हैट्रिक भी लगा सकती है।

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