लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। उत्तर प्रदेश की धरती से जरायम की दुनिया में एक से बढ़कर एक विलेन पैदा हुए। किसी ने बंदूक के दम पर जंगल से बैठकर खुद की सरकार चलाई तो किसी ने सफेद कपड़ा धारण कर माफियागिरी के जरिए अपनी तिजोरी भरी। पर सूबे में एक ऐसा अपराधी हुआ, जिसे ’किडनैपिंग किंग’ कहा जाता है। उस डॉन का नाम राजू भटनागर था। राजू भटनागर ने एक वक्त सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के अपहरण की साजिश रची। डॉन के बनाए प्लान में लगभग-लगभग अमिताभ बच्चन फंस भी गए थे। उन्हें राजू भटनागर ने एक कार्यक्रम में आने का निमंत्रण दिया था। पर अमिताभ बच्चन व्यस्थता के चलते उस कार्यक्रम में शमिल नहीं हुए और आखिर में राजू भटनागर के बिछाए जाल में वह नहीं फंसे।
उसका नाम राजू भटनागर था
80 का दशक था और तेजी से प्रदेश बदल रहा था। जैसे-जैसे समाज बदल रहा था, अपराधी व अपराध के तरीके में भी तलबली आ रही थी। डकैत अब गुजरे जने की बात हो चले थे और यही तब था जब फिरौती वसूलने के लिए डकैतों की ’पकड़’ की जगह ’अपहरण’ संगठित अपराध करने वालों का एक नया हथियार बना। सूबे में इस हथियार का इस्तेमाल सबसे पहले माफिया जगत में जिस अपराधी ने किया, वह राजू भटनागर था। एक ऐसा अपराधी, जिसने ’फिरौती के लिए अपहरण’ को धंधे में तडिल कर दिया। उसके नक्शे कदम पर चलकर बबलू श्रीवास्तव जैसे कई चर्चित अपराधी जुर्म की दुनिया में बेताज बादशाह हो गए। वह शहरी इलाके का पहला डॉन था, जिसने अपहरण की तार्थतोड़ वारदातों को अंजाम देकर पूरे सूबे मेँ खलबली मचा दी थी।
झांसी का रहने वाला था राजू भटनागर
राजू मूलतः झांसी का रहना वाला था। इंटर तक की पढ़ाई करने के बाद उसने लखनऊ विश्वविद्यालय में बीएससी में दाखिला लिया। तभी पढ़े लिखे, खूबसूरत और जहीन नौजवान राजू भटनागर ने अपराध की दुनिया में कदम रखा। तेज दिमाग और बेरहम अन्दाज की बदौलत वो देखते ही देखते बड़ा सरगना बन गया। राजू भटनागर बहुत चालाकी से अपना शिकार चुनता था। अक्सर बड़े व्यापारी, उद्योगपति और डॉक्टर उसका निशाना होते थे। राजू की जुर्म की फिलोसॉफी बहुत साफ थी। बड़ी मछली का शिकार करो। फिरौती में इतना पैसा वसूलो कि इंकमटैक्स विभाग के डर से पैसा देने के बाद भी शिकार, न मुंह खोले न पुलिस तक न जाए। महज कुछ सालों के अंदर राजू भटनागर का नाम किडनैपिंग किंग के नाम से मशहूर हो गया। कुख्यात राजू ने लखनऊ, कानपुर के साथ ही इलाहाबाद को भी ठिकाना बना रखा था। राजू की पकड़ बॉलीवुड में थी।
अमिताभ बच्चन के अपहरण का बनाया प्लान
पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने एक न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू के दौरान बताया कि पुलिस ने राजू भटनागर को अरेस्ट किया। उसे जेल भेजा गया। पूछताछ में राजू भटनागर ने कई खुलासे किए। राजू भटनागर ने पुलिस को बताया था कि उसके टारगेट पर अमिताभ बच्चन थे। अमिताभ बच्चन के अपहरण का पूरा खाका तैयार कर लिया गया था। बॉलीवुड में एक युवती जो फिल्में में काम करती थी उसे अपनी गिरोह में शामिल किया। फिर मुम्बई में जाकर फ्लैट लिया। उसी महिला अभिनेत्री के जरिए अमिताभ बच्चने से मिलने का समय मांगा। राजू भटनागर ने पुलिस को बताया था कि उसने अमिताभ बच्चन को एक कार्यक्रम में बुलाने का प्लान बनाया था। कार्यक्रम प्रयागराज में होना था। अमिताभ बच्चन ने कार्यक्रम में शामिल होने की मंजूरी भी दे दी थी। सबकुछ तय हो गया था। पर तभी अमिताभ बच्चन ने कार्यक्रम में आने से इंकार कर दिया, जिसके कारण उनका अपहरण हमलोग नहीं कर पाए।
तिहाड़ से फरार हो गया था राजू भटनागर
अपराध की दुनिया में बेहद कम वक्त में बहुत तेजी से ऊपर उठने की वजह यह भी थी कि कुख्यात राजू का दिमाग था। उसने अपराधियों की कब्रगाह माने जाने वाले तिहाड़ जेल की सुरक्षा में भी उसने सेन्ध डाल दी। 1985-86 की बात थी, जब उसे गिरफ्तार करने के बाद तिहाड़ जेल में रखा गया था। यहां तमिलनाडु पुलिस, पैरामिलिट्री व दिल्ली पुलिस का त्रिस्तरीय सुरक्षा घेरा भी उसके सामने नाकाफी साबित हुआ। एक दिन बड़े आराम से राजू जेल से फरार हो गया और किसी को इसकी भनक तक नहीं लगी। बाद में जानकारी पर सभी ने अपना माथा पकड़ लिया। बात इतने पर ही खत्म नहीं हुई। एक साल बाद उसने एक बार फिर तिहाड़ की सुरक्षा में सेंध लगाई। लेकिन इस बार उन्होंने यह काम खुद के लिए नहीं बल्कि आंतरिक अपराधी चार्ल्स शोभराज को जेल से बाहर निकालने के लिए किया। जेल में रहते हुए न सिर्फ उसने चार्ल्स शोभराज को जेल की दीवारों से बाहर भेज दिया बल्कि शहर और देश से बाहर जाने में भी मदद की।
हां ऐसा भी था राजू भटनागर
राजू भटनागर को लेकर जानकार बताते हैं कि जब उसने अपहरण की सुपारी देने वाले व्यापारी के ही बेटे को उठा लिया था। ये कहानी यूपी के एक शहर की है जहां अगल-बगल के बंगले में रहने वाले दो व्यापारियों में, बीच की जमीन को लेकर ठनी थी। सबक सिखाने के लिए एक व्यापारी ने दूसरे के बच्चे के अपहरण का ठेका राजू को दे दिया। एक दिन राजू भटनागर ने अपने साथियों के साथ उसके पड़ोसी के घर धावा बोल दिया। वो उस व्यापारी के बच्चे को छीन कर जा ही रहा था कि चीख पुकार सुन कर बंगले के अंदर से एक बुजुर्ग बाहर आ गए।
सुपारी देने वाले के बेटे का किया अपहरण
बुजुर्ग से आंखे मिलते ही राजू चौंक पड़ा। वो बुजुर्ग उसके स्कूल के टीचर थे जिनकी वो बहुत इज्जत करता था। राजू ने फौरन उनके पैर छुए। बुजुर्ग टीचर का गुस्सा कम नहीं हुआ। उन्होंने राजू को झिड़कते हुए कहा कि उसने स्कूल, गांव सबकी इज्जत मिट्टी मिला दी और अब वो उनके ही पोते का अपहरण करना चाहता है। शर्मिंदा राजू ने अपने टीचर को बताया कि उसे उनके पड़ोसी ने ही अपहरण की सुपारी दी थी। राजू ने माफी मांगी और अपने साथियों के साथ वहां से निकल गया। इसके बाद राजू भटनागर और उसके साथियों ने अपहरण का ठेका देने वाले व्यापारी के घर ही धावा बोल दिया। उसके लड़के को लेकर राजू का गैंग वहां से निकल गया। बाद में व्यापारी को अपने बेटे को वापस पाने के लिए फिरौती में बड़ी रकम देनी पड़ी।
1988 में मारा गया राजू भटनागर
10 जनवरी 1988 को लखनऊ पुलिस ने राजू भटनागर को इलाहाबाद के जार्जटाउन इलाके में एक गैराज के पास हुए एनकाउंटर में मार गिराया। इस एनकाउंटर में बबलू श्रीवास्तव भी घायल हो गया था। उसे और गैंग के दूसरे सदस्य बृज मोहन को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। राजू भटनागर को मुठभेड़ में मार गिराने वाले लखनऊ के तत्कालीन एसपी सिटी एसएन सिंह आईजी पद से रिटायर हो चुके हैं उन्होंने एक अखबार को बताया था कि हम 6 लोगों ने राजू भटनागर को घेर लिया। खुद को घिरता देख ाजू ने उन्हें निशाना बनाते हुए पहला फायर झोंक दिया था। जिस पर टीम में शामिल पुलिसकर्मियों के कदम गैराज के गेट के पास ही ठिठक गए थे। इसके बाद आत्मरक्षार्थ फायरिंग की गई जिसमें राजू मारा गया।