लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। उत्तर प्रदेश में अगला विधानसभा चुनाव 2027 में होगा। उससे पहले प्रदेश की जनता गांव की सरकार को लेकर मतदान करेगी। पंचायत चुनाव 2026 में होने हैं। ऐसे में सभी राजनीतिक दल इसे सेमीफाइनल के तौर पर देख रहे हैं। समाजवादी पार्टी भी मिशन लिटमस टेस्ट को सक्सेसफुल बनाने के लिए सियासी मैदान में उतर चुकी है। वाररूम में बैठकर रणनीति बनाई जा रही है। इसी कड़ी में बीतेदिनों समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के निर्देश पर राज्य में कुशीनगर को छोड़कर सभी जिलों की कार्यकारिणी को भंग कर दिया गया है। आने वाले दिनों में सपा की नई टीम का ऐलान पार्टी की तरफ से किया जाएगा। जिसको लेकर जमीन से इनपुट लेने का काम भी शुरू हो गया है।
उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले पंचायत चुनाव को 2027 का सेमीफाइनल माना जा रहा है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव पंचायत चुनाव को 2027 का लिटमस टेस्ट मानकर सियासी बिसात बिछाने में जुट गए हैं। इसी कड़ी में उन्होंने यूपी की कार्यकारणी को भंग कर दिया। समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष श्याम लाल पाल ने खुद इसकी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि समाजवादी पार्टी ने जनपद कुशीनगर के जिलाध्यक्ष को छोड़कर समाजवादी पार्टी की जिला कार्यकारिणी, विधान सभा अध्यक्षों सहित विधान सभा कार्यकारिणी तथा अन्य फ्रन्टल संगठन के जिलाध्यक्षों सहित जिला कार्यकारिणी को तत्काल प्रभाव से भंग कर दिया है। जानकार बताते हैं कि सपा ने ये फैसला पंचायत और विधानसभा चुनाव को देखते हुए लिया है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार यह माना जा रहा है कि बीते कई दिनों से सपा के अंदर इस पर चर्चा हो रही थी। लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद इसे सपा की ओवरहॉलिंग माना जा रहा है। कई जिलों में विधायक और सांसद, खुद अध्यक्ष भी थे और संवैधानिक पद पर भी विराजमान थे। ऐसे में माना जा रहा है कि कुछ जगहों पर एक व्यक्ति एक पद ही रहेगा। जानकार बताते हैं कि जून य जुलाई के पहले सप्ताह में सपा की नई टीम का ऐलान हो सकता है। इस टीम में अखिलेश यादव के ‘पीडीए’ की झलख देखने को मिल सकती है। जानकार बताते हैं कि सपा की नई टीम में युवाओं को ज्यादा मौका मिल सकता है। नई टीम के गठन में शिवपाल यादव भी अहम रोल निभाएंगे। शिवपाल को संगठन के संचालन में महारथ हासिल है।
दरअसल, सपा का पूरा फोकस इस वक्त पंचायत चुनाव को लेकर है। उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से करीब दो-तिहाई (269) सीटें ग्रामीण क्षेत्रों की हैं। यही वजह है कि अखिलेश यादव ने पूरी गंभीरता के साथ पंचायत चुनाव लड़ने की स्ट्रैटेजी बनाई है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने पंचायत आरक्षण और परिसीमन के डाटा पर नजर रखने का दिशा-निर्देश दिया, ताकि सत्ताधारी दल कोई गड़बड़ी न कर सके। इसके लिए उन्होंने हर जिले में पदाधिकारियों को जिम्मेदारी दी गई है। इसके अलावा सपा ने प्रदेश मुख्यालय स्तर पर कुछ वरिष्ठ नेताओं की एक टीम बनाकर लगाई है ताकि कहीं से कोई गड़बड़ी की जानकारी मिलने पर उसे तत्काल चुनाव आयोग तक पहुंचाया जा सके। सपा ने पंचायत चुनाव को लेकर लखनऊ में एक टीम का गठन भी किया है, जो हर गतविधि पर 24 घंटे नजर रखेगी।
सपा पंचायत चुनाव के सीटों के आरक्षण पर पूरी नजर रखने की स्ट्रैटेजी बनाई है। सपा इस पर भी नजर रखेगी कि न सिर्फ आरक्षण का पालन हो, बल्कि इसमें किसी तरह का खेल भी न हो सके। इसके लिए सपा कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित भी किया जा रहा है, जिससे वे अपने ग्राम, क्षेत्र और जिलास्तर पर अधिकारियों के सामने अपना पक्ष मजबूती से कर सकें। सपा नेतृत्व का कहना है कि अगर कहीं कोई गड़बड़ी होती हुई दिखी तो चुनाव आयोग से लेकर कोर्ट तक का विकल्प अपनाया जाएगा। सपा के प्रदेश सचिव व विधायक अताउर्रहमान का मानना है कि ग्राम प्रधान, ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्षों का नेटवर्क ग्रामीण मतदाताओं को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए पार्टी इस चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंकने की तैयारी में है। इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि हम जमीनी स्तर पर तैयारी कर रहे हैं ताकि पंचायत चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीत सके।
सपा ने 2024 के लोकसभा चुनाव में अपने विनिंग फॉर्मूले पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) को पंचायत चुनाव में भी आधार बनाकर लड़ने की स्ट्रैटेजी बनाई है। अताउर्रहमान ने बताया कि सपा का मूल पीडीए हैं, अब हर चुनाव इसी फॉर्मूले पर लड़ेंगे। लोकसभा चुनाव में पीडीए ने ही बीजेपी को शिकस्त देने में सफल रहा है। सपा इस फॉर्मूले को पंचायत चुनाव में भी दोहराने की कोशिश करेगी। ऐसे में साफ है कि पंचायत चुनाव के जरिए सपा 2027 के विधानसभा चुनाव में ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी सियासी ताकत को मजबूत करने की रणनीति है। सपा का सियासी आधार ग्रामीण इलाके में ही रहा है। अखिलेश का पीडीए फॉर्मूला भी ग्रामीण इलाके में भी सबसे ज्यादा कारगर 2024 के चुनाव में रहा। इसी का नतीजा था कि सपा ग्रामीण अंचल वाली सीटें ही जीतने में सफल रही है।
पंचायत चुनाव के बहाने सपा संगठनात्मक स्तर पर बूथ मैनेजमेंट और मतदाता जागरूकता कर लोगों तक पहुंचना चाहती है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में पार्टी की पैठ और मजबूत की जा सके। सपा ने इसके जरिए विधानसभा चुनाव 2027 में अपनी पैठ और मजबूत करने की रणनीति पर काम कर रही है। पंचायत चुनाव को 2027 के विधानसभा चुनाव का रिहर्सल मान रही हैं क्योंकि इस चुनाव के बाद सीधे विधानसभा चुनाव होने हैं। खुद अखिलेश यादव ने भी कहा है कि पार्टी के कार्यकर्ता 42 डिग्री के तापमान पर बीजेपी से दो-दो हाथ कर रहे हैं। सपा पहले बीजेपी को पंचायत चुनाव में पटखनी देगी। फिर 2027 में सूबे से बीजेपी का सूफड़ा साफ करेगी। अखिलेश यादव ने कहा कि बीजेपी चुनावी मशीनरी का दुरप्रयोग कर सकती है। ऐसे में अभी से कार्यकर्ता जुट जाएं।
दरअसल, यूपी की दो तिहाई विधानसभा सीटें ग्रामीण इलाके से आती हैं, जहां पर पंचायत चुनाव होते हैं। राजनीतिक दलों को पंचायत चुनाव के जरिए अपनी सियासी ताकत के आकलन करते हैं। यूपी में औसतन चार से छह जिला पंचायत सदस्यों को मिलाकर विधानसभा का एक क्षेत्र हो जाता है। एक विधानसभा क्षेत्र में चार से पांच ब्लाक भी होते हैं। यही वजह है कि सपा ने पंचायत चुनाव के लिए अभी से ही तैयारी शुरू कर दी है ताकि बेहतर चुनौती बीजेपी के सामने पेश कर सके। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो जिला पंचायत के सदस्यों और बीडीसी सदस्यों मिलने वाले वोट का आधार बनाकर राजनीतिक दलों इस बात का यह एहसास होता है कि वो कितने पानी में है। इससे यह भी पता चल जाएगा कि 2022 विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव की तुलना में कितने मतों में बढ़ोतरी या कमी का आकलन करती है।