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UP power privatization: बिजली कटौती से मिलेगी राहत… पीपीपी मॉडल से होगा सुधार, योगी सरकार का मॉडल

यूपी की बिजली निजीकरण की ओर: पीपीपी मॉडल सबसे पहले पूर्वांचल और दक्षिणांचल में लागू होगा। घाटे में चल रहे क्षेत्रों को सुधारने के लिए पावर कॉरपोरेशन ने निजी कंपनियों के साथ साझेदारी का फैसला लिया है। कर्मचारियों और संगठनों ने इसका विरोध शुरू कर दिया है।

Mayank Yadav by Mayank Yadav
November 26, 2024
in TOP NEWS, उत्तर प्रदेश
UP power
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UP power privatization: उत्तर प्रदेश में बिजली के निजीकरण की प्रक्रिया को लेकर तैयारियां जोरों पर हैं। हाल ही में पावर कॉरपोरेशन की वित्तीय समीक्षा बैठक में घाटे में चल रहे क्षेत्रों में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल लागू करने पर सहमति जताई गई। सबसे पहले पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड के क्षेत्रों में यह मॉडल लागू किया जाएगा। प्रबंध निदेशक निजी कंपनियों के प्रतिनिधि होंगे जबकि अध्यक्ष सरकार का प्रतिनिधित्व करेंगे। इस कदम का उद्देश्य घाटे को नियंत्रित करना है, लेकिन इससे कर्मचारियों और संगठनों में असंतोष भी बढ़ा है। पावर कॉरपोरेशन ने भरोसा दिलाया है कि कर्मचारियों के हित सुरक्षित रखे जाएंगे और उन्हें स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) का विकल्प भी मिलेगा।

घाटे में सुधार की कोशिश

UP power कॉरपोरेशन के अधिकारियों के अनुसार, घाटे वाले क्षेत्रों में पीपीपी मॉडल से सुधार लाने की योजना बनाई गई है। 50-50 साझेदारी के तहत निजी क्षेत्र को जोड़ा जाएगा। इसमें पेंशन और अन्य सेवा लाभ सुनिश्चित किए जाएंगे। फिलहाल, यूपी में बिजली कंपनियों का घाटा एक लाख 10 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। इस साल ही पावर कॉरपोरेशन को सरकार से 46,130 करोड़ रुपये की जरूरत पड़ी। अगले साल यह मांग 50 से 55 हजार करोड़ तक बढ़ सकती है। अधिकारियों का मानना है कि निजी सहभागिता से घाटे पर नियंत्रण और व्यवस्था में सुधार संभव होगा।

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कर्मचारियों के लिए विकल्प

UP power कॉरपोरेशन का कहना है कि निजीकरण की प्रक्रिया में कर्मचारियों को तीन विकल्प दिए जाएंगे। वे या तो मौजूदा स्थान पर बने रह सकते हैं, ऊर्जा निगम के अन्य क्षेत्रों में जा सकते हैं, या फिर आकर्षक वीआरएस योजना का चयन कर सकते हैं। पावर कॉरपोरेशन ने स्पष्ट किया कि सेवा शर्तों और रिटायरमेंट लाभों में कोई कटौती नहीं होगी। संविदा कर्मियों के हितों का भी पूरा ध्यान रखा जाएगा।

विरोध और चिंता

बिजली संगठनों और उपभोक्ता परिषद ने निजीकरण का विरोध जताते हुए इसे उपभोक्ताओं और कर्मचारियों के हितों के खिलाफ बताया। उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि सरकारी नीतियां बिजली क्षेत्र के घाटे के लिए जिम्मेदार हैं। संगठनों का तर्क है कि घाटा कम करने के प्रयासों में पारदर्शिता नहीं है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि बड़े कॉरपोरेट घरानों को लाभ पहुंचाने की मंशा से यह कदम उठाया जा रहा है।

निजीकरण की पुरानी कोशिशें

उत्तर प्रदेश में 2009 से बिजली कंपनियों के निजीकरण के कई प्रयास हुए हैं, लेकिन विरोध के चलते उन्हें रोक दिया गया। हालांकि, आगरा में 2010 में टोरेंट पावर को बिजली व्यवस्था सौंपी गई थी। 2020 में भी पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम का निजीकरण प्रस्तावित था, लेकिन विरोध के चलते इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था।

UP power कॉरपोरेशन ने स्पष्ट किया है कि यह निजीकरण नहीं, बल्कि घाटे वाले क्षेत्रों में सुधार के लिए साझेदारी है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह कदम उपभोक्ताओं और कर्मचारियों के हितों के साथ न्याय कर पाएगा?

यहां पढ़ें: Aditya Singh : कौन हैं जज आदित्य सिंह जिन्होंने संभल की शाही मस्जिद सर्वे का आदेश दिया?
Tags: PPP modelUP power privatization
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