UP electricity crisis: उत्तर प्रदेश में एक बार फिर भीषण बिजली संकट का खतरा मंडराता दिखाई दे रहा है। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने राज्य सरकार के बिजली वितरण निजीकरण के फैसले के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। कर्मचारियों का कहना है कि निजीकरण से आम जनता को भारी समस्याओं का सामना करना पड़ेगा, जबकि सरकार इसे सुधारने का एकमात्र रास्ता मान रही है। समिति ने 4 दिसंबर को वाराणसी में जन पंचायत आयोजित करने का ऐलान किया है। इसके अलावा, प्रदेश सरकार ने डीएम, कमिश्नर और पुलिस कप्तानों को स्थिति पर नज़र रखने और संभावित हड़ताल के लिए तैयारी करने का निर्देश दिया है।
यूपी के विद्युत कर्मचारी संगठनों ने सरकार के निजीकरण फैसले के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। बिजली कर्मचारियों की संयुक्त संघर्ष समिति ने 4 दिसंबर को वाराणसी से जन पंचायत का ऐलान किया है, जिसमें निजीकरण के खिलाफ व्यापक जन जागरण अभियान चलाने की योजना है। कर्मचारी संगठन सरकार के फैसले को जनहित में नहीं मानते और इससे आम उपभोक्ताओं को परेशानियों का सामना करने की चेतावनी दे रहे हैं। मार्च 2023 और दिसंबर 2022 में हुई हड़तालों की तरह, यदि निजीकरण के खिलाफ संघर्ष तेज़ हुआ तो स्थिति और भी बिगड़ सकती है।
UP सरकार ने स्थिति को संभालने के लिए सभी जिलों के डीएम, कमिश्नर और पुलिस कप्तानों को अलर्ट किया है। शासन ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे पहले से ही बिजली कर्मचारियों की हड़ताल से उत्पन्न होने वाली समस्याओं से निपटने के लिए एहतियाती कदम उठाएं। इसके तहत, आवश्यक मैनपावर का चिन्हीकरण और तैनाती सुनिश्चित करने का आदेश दिया गया है। UP सरकार ने यह भी निर्देशित किया है कि संवेदनशील स्थानों जैसे अस्पताल, जल आपूर्ति प्रणाली, और सरकारी कार्यालयों में वैकल्पिक ऊर्जा की व्यवस्था की जाए।
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UP पावर कारपोरेशन लिमिटेड के चेयरमैन, डॉ. आशीष कुमार गोयल ने निजीकरण के फैसले का समर्थन करते हुए अधिकारियों से कहा है कि वे बिजली वितरण के निजीकरण की आवश्यकता को समझाएं। उन्होंने बताया कि सरकार घाटे के आंकड़ों के कारण बिजली वितरण को पीपीपी (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल पर लाने की योजना बना रही है। हालांकि, कर्मचारी संगठनों ने इन आंकड़ों को भ्रामक बताते हुए कहा कि निजीकरण से केवल निजी कंपनियों को लाभ होगा, और आम जनता को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
कर्मचारी संगठनों का कहना है कि निजीकरण के फैसले से आरक्षण व्यवस्था भी प्रभावित हो सकती है, और उन्होंने इसके खिलाफ संवैधानिक लड़ाई लड़ने की धमकी दी है। कई कर्मचारियों का यह भी मानना है कि यह वही फ्लॉप मॉडल है, जिसे सपा सरकार में लागू करने की कोशिश की गई थी, लेकिन भारी विरोध के बाद उसे वापस ले लिया गया था।
इस बीच, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपील की गई है कि वे निजीकरण के फैसले को वापस लें और कर्मचारियों के हितों की रक्षा करें। उत्तर प्रदेश में इस मुद्दे को लेकर एक और हड़ताल की संभावना को देखते हुए, सरकार की तैयारियों और कर्मचारियों के विरोध की स्थिति से हालात बिगड़ सकते हैं।