एक ओर जहां वक्त के साथ पुलिस और अपराधियों के बीच तकनीक को लेकर एक प्रतिस्पर्धा सी दिखने लगी है। तो वहीं पुलिस महकमा भी खुद को तकनीकी रूप से मजबूत करने में जुटा हुआ है। लेकिन अगर बात करें उत्तराखंड की तो यहां पुलिस के लिए सबसे बड़ी परेशानी है पर्याप्त रूप में बजट का ना मिलना। केंद्र सरकार द्वारा पुलिस मॉर्डनाइजेशन स्कीम के तहत उत्तराखंड को दी जाने वाली बजट में कटौती की है।जिसकी वजह से उत्तराखंड में मॉर्डन पुलिसिंग के सपने को बड़ा झटका लगा है।
उत्तराखंड में अपराधों की संख्या बढ़ रही
उत्तराखंड में अपराधों की संख्या साल दर साल बढ़ने लगी है। जिसके चलते अपराधियों ने अपराध के तरीकों को भी बदला है। अगर बात अपराधिक आंकड़ों की करें तो राज्य में 2021 के दौरान कुल 34875 मामले दर्ज हुए, 2020 में ये आंकड़ा 57332 था तो 2019 में 29268 मामले दर्ज किए गए थे। इन बढ़ते अपराधों के आंकड़ों के बावजूद जरूरत के लिहाज से प्रदेश में पुलिसिंग को लेकर बजट की उपलब्धता नहीं दिखाई दे रही। वहीं केंद्र सरकार ने भी पुलिस मॉर्डनाइजेशन के तहत केंद्र से मिलने वाले बजट पर कैंची चला दी है।
केंद्र सरकार प्राथमिकता के आधार पर बजट पास करती
उत्तराखंड पुलिस महानिदेशक वी मुरुगेशन का कहना हैं कि केंद्र सरकार राज्यों को प्राथमिकता के आधार पर बजट का आवंटन करती है और जिन राज्यों को केंद्र सिक्योरिटी के लिहाज से अधिक संवेदनशील समझता है उन्हें उसी लिहाज से बजट दिया जाता है।
उत्तराखंड में आपराधिक गतिविधियां, तस्करी जैसे गंभीर मामलें
आपको बता दें, उत्तराखंड संवेदनशील राज्यों में शुमार है। क्योंकि चीन और नेपाल की अंतरराष्ट्रीय सीमाएं उत्तराखंड से जुड़ती है। जिसके चलते विभिन्न आपराधिक गतिविधियां, तस्करी जैसे गंभीर मामलों पर उत्तराखंड काफी संवेदनशील है। इस वजह से प्रदेश पुलिस में बजट को पर्याप्त रूप में मिलना अति आवश्यक है।
पुलिस को 3 सालों में नाम मात्र बजट हासिल
राज्य को एसडीआरएफ और बॉर्डर एरिया डेवलपमेंट प्रोग्राम के तहत तो बजट मिला लेकिन पुलिस को मॉडर्न करने के रूप में पिछले 3 सालों में सिर्फ नाम मात्र बजट हासिल हो पाया है। ऐसे मौजूदा जरूरतों के रूप में देखे तो ऐसी कई बातें हैं जिस पर पुलिस को सक्षम बनाने की जरूरत है।