सीएम योगी आदित्यनाथ के शहर गोरखपुर में एक ऐसी मस्जिद है जहां उसके निर्माण (करीब 400 साल) से आज तक किसी ने नमाज़ अदा नहीं की है। जी हां आज आपको एक ऐसे मस्जिद के बारे में बताने जा रहें हैं, जिसे आज से पहले आपने कभी देखा और सूना नहीं होगा, कहा जाता है कि इस मस्जिद का निर्माण एक तवायफ ने करवाया था। हालांकि अब ये मस्जिद खंडहर में तब्दील हो चुकी है।
गोरखपुर के नसीराबाद इलाके में खंडहर में तब्दिल हो चुकी इस मस्जिद मे आज तक किसी ने नमाज़ नहीं पढ़ी. वहां के लोगो का कहना है की 200 साल पुरानी इस मस्जिद को एक तवाय़क ने बनावाया था. मोहल्ला नसीराबाद आबादी की कदीम मस्जिद आज भी वीरान और नमाज से महरूम है। तारीख के शफाअत में जहां का इंद्राज बतौर मस्जिद दर्ज है. इलाके के बुजुर्ग भी बताते हैं- “उन्हें नहीं मालूम की इस मस्जिद में कभी नमाज पढ़ी गई है या नहीं। लेकिन मस्जिद में नमाज पढ़ी गयी उससे इंकार नहीं किया जा सकता है। क्योंकि अगर उस वक्त के उलेमा किराम की जानिब से इस की मुखालफत की गयी होती, तो तारीख में इसका जिक्र आता, जबकि इस तरह की मुखालफत का कोई सबूत और गवाही मौजूद नहीं है, गौर की बात है, कि जब तवायफ मस्जिद बनवा रही थी, तब उस वक्त कोई आवाज नहीं उठी | अगर उस समय आवाज उठी होती तो तामीर मुकम्मल ही नहीं होता है, लेकिन मस्जिद के हालात बता रहे हैं, कि मस्जिद मुकम्मल हुई थी |
क्या कहना है जानकारों का
जानकारों का कहना हैं की सदियों से देखभाल न होने के कारण भले ही वीरानी छायी हुई है, लेकिन मस्जिद की रूहानियत भी यहां पर एक अलग तरह का अहसास होता है, चूंकि उस जमाने में मस्जिद बनाने के लिए अच्छी खासी रकम अदा करनी पड़ी होगी, इसके अलावा मस्जिद के लिए काबे का रूख वगैरह भी तय करना पड़ा होगा | इसलिए इस बात को तकवियत मिलती है, कि खातून के नाम पर जायदाद वगैरह रही होगी | जिस को फरोख्त करके यह मस्जिद तामीर की गयी, मस्जिद बनाने वालों को भी इस तकद्दुस मालूम होता है। जब इस मस्जिद में घुसा तो उसे इन दीवारों में कई एहम चीजे भी नजर आई, लेकिन वो वक्त के साथ धुंधली हो चुंकी है, जानकारों की माने तो मस्जिद के वीरानी में जरूर कोई ना कोई अहम राज छुपा हुआ है, जो वक्त के आगोश में गुम हो चुका है। गुजश्तिा एक तवील अरसे के जिस तरह यह उजाड़ है, उस की एक अहम वजह मुहल्ले में मुस्लिम आबादी का ना होना भी है, वहीं इसके वारिसों का कोई अता पता नहीं है। सरकारी बंदोबस्त (मुहल्ले के नक्शे) जो सन् 1914 में हुआ उसमें ये मस्जिद आज भी दर्ज है। इससे अंदाजा होता है, कि ये मस्जिद कितनी कदीम (200 साल पुरानी) होगी। इसकी बनावट और इसमें इस्तेमाल में लायी गयी ईंट और चूना भी इसके कदीम होने पर गवाही देता है। इसके तामीर में वहीं चीजें लगी है जो उर्दू बाजार की जामा मस्जिद, बसंतपुरसराय में इस्तेमाल किया गया है।
इससे एक अंदाजा लगाया जा सकता है कि मस्जिद लगभग 400 साल से ज्यादा पुरानी है। तकरीबन 1200 स्कवायर फिट में मौजूद इस मस्जिद की जगह पर साल 2000 में कुछ शरारती तत्वों के जरिए कब्जा करने की कोशिश की गयी थी, लेकिन मुसलमानों के विरोध के कारण यह मुमकिन नहीं हो सका। कुछ माह बाद मस्जिद के आगे खाली जमीन पर दुकानें बनवा दी गईं और इसकी देखरेख की जिम्मेदारी रिटायर्ड हाईडिल अफसर मोबिनुल हक को सौंप दी गयी ताकि इस जगह की हिफाजत हो सके। फिलहाल यहां दुकान हैं और उसमें कारोबार भी किया जा रहा है।