क्या आप जानते हैं कि देश में एक ऐसी जगह है जहां आत्मा की शांति के लिए पिंडदान नहीं बल्कि शिवलिंग दान किया जाता है। चौंक गये ना जी हां, वाराणसी के जंगमवाड़ी मठ में सैकड़ों सालों से ये प्रथा चली आ रही है। सैकड़ों सालों से चली आ रही इस परंपरा के चलते यहां एक छत के नीचे दस लाख से भी ज़्यादा शिवलिंग विराजमान है। यहां सावन के महीने में सबसे ज़्यादा शिवलिंगों की स्थापना होती है। इस मठ में ये परंपरा पिछले 250 साल से चल आ रही है।
वाराणसी में स्थित ‘जंगमवाड़ी मठ’ यहाँ का सबसे पुराना मठ है। जंगम का अर्थ होता है ‘शिव को जानने वाला’ और वाड़ी का अर्थ होता है ‘रहने का स्थान’। ये मठ करीब 5 हजार स्क्वायर फ़ीट में फैला हुआ है। राजा जयचंद द्वारा दान की गयी भूमि पर बने इस मठ में अबतक 86 जगतगुरु हो चुके हैं| जो अपनी इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। इस मठ में शिवलिंगों की स्थापना को लेकर एक विचित्र परंपरा चली आ रही है। यहाँ आत्मा की शान्ति के लिए पिंडदान नहीं बल्कि शिवलिंग का दान होता है।
‘जंगमवाड़ी मठ’ में मृत लोगों की मुक्ति और आत्मा की शान्ति के लिए शिवलिंग स्थापित किये जाते हैं। कई सालों से चली आ रही इस परंपरा के चलते यहाँ एक दो नहीं बल्कि 10 लाख से भी ज्यादा शिवलिंग स्थापित किये जा चुके हैं। हिन्दू धर्म में जिस तरीके से और विधि-विधान से पिंड का दान किया जाता है। ठीक उसी तरह से मंत्रोचारण के साथ यहां शिवलिंग स्थापित किया जाता है।
एक साल में कई हजार शिवलिंगों की स्थापना श्रद्धालुओं द्वारा यहाँ की जाती है और जो शिवलिंग ख़राब अवस्था में होने लगते हैं उनको मठ में ही सुरक्षित स्थान पर रख दिया जाता है। शिवलिंग दान के अलावा जब यहाँ कोई महिला पांच महीने के पेट से होती है तब उसके कमर में बच्चे की रक्षा के लिए छोटा सा शिवलिंग बांधा जाता है।
इतना ही नहीं बच्चे के जन्म के कुछ महीनों बाद वहीं शिवलिंग गले में बांधा जाता है और माँ दूसरा शिवलिंग धारण कर लेती है, जो जीवनभर उसके साथ रहता है। ‘जंगमवाड़ी मठ’ दक्षिण भारतियों का है। जिस तरह से हिन्दू धर्म में लोग अपने पूर्वजों के लिए पिंडदान किया करते हैं, उसी तरह से वीरशैव संप्रदाय के लोग अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए शिवलिंग का दान करते हैं।
पिछले करीब 250 सालों से चली आ रही इस अनवरत परंपरा में सबसे ज्यादा सावन के महीनों में शिवलिंगों की स्थापना होती है।