बाल यौन शोषण हमारे देश में काफी बढ़ गया है। बात अगर सोशल मीडिया की करें तो फेसबुक जिसका नाम बदल कर अब ‘मेटा (Meta)’ हो गया है, अपनी अहम भूमिका निभा रहा है। क्योंकि देखा जाए तो फेसबुक पर हर साल यौन शोषण से जुड़े मामले सामने आते है और ऐसे कंटेंट को फेसबुक कभी-कभी हटाने में भी सक्षम है। इस कंटेंट को फेसबुक छांटती है और फिर हटाती है। इसके चलते एक्सचेंज, जो फेसबुक से ऐसा कंटेंट छांटने और हटाने का काम करती है, सभी फोटो को रिपोर्ट नहीं कर पाती। मेटा ने अपनी डॉटर कंपनियों फेसबुक, इंस्टाग्राम, मैसेंजर और वॉट्सऐप को यही निर्देश दिया है। जब फेसबुक कम उम्र वाले बच्चों की पहचान नहीं कर पाते हैं तो उनको वयस्क मान लेते हैं।
कई बड़ी कंपनियां यौन शोषण के कंटेंट को रिपोर्ट करती हैं
बहुत सी कंपनियां है जो यौन शोषण के कंटेंट को रिपोर्ट भी करती है। कई स्टडीज ने यह खुलासा किया है कि बच्चों की उम्र छोटी होगी लेकिन शकल से वह बड़े दिखतें है और आज कल सभी फेसबुक जैसी ऐप पर एक्टिव भी है। ऐसे कम उम्र वाले बच्चों की फोटोज का फायदा उठा कर उन्हें शोषित करते है।
बता दें की कॉर्पोरेट ट्रेनिंग के एक डॉक्यूमेंट और इंटरव्यू में यह बात सामने आई है कि फेसबुक उम्र पहचानने के लिए टेनर स्टेजेस का पालन करती है। इन्हें ब्रिटिश पीडियाट्रिशियन डॉ. जेम्स एम. टेनर ने बनाया था। प्यूबर्टी के दौरान व्यक्ति में होने वाले बदलावों के आधार पर उन्होंने ये तय किया था।
उम्र में बड़ा दिखने के कारण बच्चों को वयस्क मान लिया जाता है, जिसके चलते उनके यौन शोषण की रिपोर्ट नहीं होती। एपल, स्नैपचैट और टिकटॉक जैसी कई बड़ी कंपनियां ऐसे सभी यौन शोषण के कंटेंट को रिपोर्ट करती हैं, जिनमें व्यक्ति की उम्र साफ जाहिर नहीं होती। वहीं, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और ट्विटर जैसी कंपनियों ने फिलहाल इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है।
3 साल में बाल यौन शोषण के 24 लाख मामले
भारत में 2017 से 2020 के बीच लगभग 24 लाख ऑनलाइन बाल यौन शोषण के मामले सामने आए। इनमें 80% लड़कियां तो 14 साल से कम उम्र की थीं। एक रिसर्च में यह भी सामने आया है कि हर दिन 1,16,000 बार चाइल्ड पोर्नोग्राफी का कंटेंट इंटरनेट पर खोजा जाता है।