School Negligence & Student Mental Health: देश के दो अलग-अलग शहरो जयपुर और दिल्ली में हुई दो दर्दनाक घटनाओं ने स्कूलों की लापरवाही और बच्चों की मानसिक स्थिति को नज़रअंदाज़ करने की गंभीर समस्या को सामने ला दिया है। जयपुर में 15 वर्षीय अमायरा की मौत और दिल्ली में 10वीं के छात्र शौर्य पाटिल की आत्महत्या की वजह स्कूल प्रशासन की संवेदनहीनता और समय रहते कदम न उठाना रहा।
जयपुर में अमायरा की घटना: शिकायतें सुनी ही नहीं गईं
CBSE की जांच रिपोर्ट में सामने आया कि अमायरा ने करीब 45 मिनट तक परेशान किए जाने की जानकारी दी थी, लेकिन स्कूल ने इस पर कोई कदम नहीं उठाया।
जांच में जिन गंभीर बातों का पता चला, वे इस प्रकार हैं।
एंटी-बुलिंग कमिटी ने शिकायतों पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया।
POCSO और बाल सुरक्षा नियमों का पालन नहीं किया गया।
अमायरा के मानसिक तनाव के संकेत मिलने के बावजूद काउंसलिंग नहीं कराई गई।
ऊपरी मंजिलों पर सुरक्षा जाल नहीं लगे थे।
घटना के बाद फॉरेंसिक सबूतों से छेड़छाड़ के भी आरोप लगे।
अमायरा के माता-पिता ने स्कूल की एफिलिएशन रद्द करने और जिम्मेदारों पर कड़ी कार्रवाई की मांग की है।
दिल्ली में शौर्य पाटिल की मौत: मानसिक प्रताड़ना की अनदेखी
दिल्ली में 10वीं के छात्र शौर्य पाटिल ने मेट्रो स्टेशन से कूदकर जान दे दी। वह लंबे समय से मानसिक तनाव में था। उसके सहपाठियों ने शिक्षक द्वारा अपमानित किए जाने की शिकायत स्कूल काउंसलर तक पहुंचाई थी, पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।
घटना वाले दिन शौर्य को स्कूल में डांटा गया और सबके सामने अपमानित किया गया।
शौर्य के पिता ने बताया कि
बेटे ने सुसाइड नोट में कुछ शिक्षकों पर मानसिक उत्पीड़न का आरोप लगाया।
परिवार से माफी मांगी और अंगदान की इच्छा जताई।
दिल्ली पुलिस ने स्कूल का DVR जब्त किया है, जिसमें ड्रामा क्लब के दौरान हुई घटना रिकॉर्ड होने का दावा है। कई सहपाठियों के बयान दर्ज किए जा चुके हैं। चार कर्मचारियों को अस्थायी रूप से निलंबित किया गया है, और अधिकारियों ने आरोपों की जांच के लिए विशेष समिति बनाई है।
शौर्य के पिता ने कहा कि केवल निलंबन पर्याप्त नहीं है और नामजद शिक्षकों की गिरफ्तारी की मांग की है।
बच्चों की सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य: क्या सीख मिलती है?
इन दोनों घटनाओं ने एक ही बात पर ज़ोर दिया है। बच्चों की छोटी शिकायतों को भी गंभीरता से लेना चाहिए।
किन बातों का रखे ध्यान
बच्चों की हर बात को ध्यान से सुना जाए।
स्कूलों में नियमित काउंसलिंग और मानसिक स्वास्थ्य मॉनिटरिंग हो।
एंटी-बुलिंग नीतियों को कठोरता से लागू किया जाए।
टीचर्स और अभिभावकों को बच्चों के व्यवहार में बदलाव को तुरंत समझना चाहिए।
स्पष्ट है कि संवेदनशीलता की कमी और लापरवाही जानलेवा साबित हो सकती है।

