करोड़ों हिंदुओं के लिए बद्रीनाथ और केदारनाथ धाम आस्था के केंद्र हैं। परंतु इन मंदिरों की व्यवस्था को संचालित करने वाली बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति (बीकेटीसी) इन दिनों चर्चा का विषय बन गई है। इस पर यह आरोप लग रहा है कि बीकेटीसी में चलने वालों, आर्थिक रूप से समझने वालों, नियुक्तियों में पर्यवेक्षकों का मामला सामने आया है। जहां समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय का एक पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिस पर सारा विवाद शुरु हुआ है। मंदिर समिति में कार्यरत एक कार्मिक राकेश सेमवाल की वरिष्ठता व एसीपी विवाद से जुड़ा हुआ है। राकेश सेमवाल का कहना है कि अध्यक्ष को गुमराह कर उन्हें झूठा फंसाया जा रहा है। वह हर प्रकार की जांच को तैयार हैं।
क्या है पुरा मामला ?
मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र ने प्रदेश के मुख्य सचिव को एक पत्र लिखकर समिति में कार्मिक राकेश सेमवाल के वरिष्ठता व एसीपी विवाद को लेकर जांच का अनुरोध किया गया है। पत्र में कहा गया है कि उक्त कार्मिक की वरिष्ठता व एसीपी विवाद को पूर्व में देवस्थानम बोर्ड के समय तत्कालीन मुख्य कार्याधिकारी व आयुक्त गढ़वाल के साथ ही तत्कालीन वित्त नियंत्रक ने निस्तारित कर दिया था। इसकी जानकारी संबंधित कर्मचारी को भी दे दी थी। इसके बावजूद कर्मचारी द्वारा लगातार विभिन माध्यमों से अपनी पदोन्नति के लिए दवाब बनाया जा रहा है। इसके लिए कभी वकील के माध्यम से नोटिस भेजकर और कभी ट्रिब्यूनल का सहारा लिया जा रहा है। पत्र में यह भी लिखा गया है कि कर्मचारी राकेश सेमवाल बीकेटीसी द्वारा की गयी कार्यवाही से संतुष्ट नहीं लगता। कार्मिक के रुख से बीकेटीसी के कामकाज में अनावश्यक गतिरोध पैदा हो रहा है, इसलिए शासन स्तर से ही इस प्रकरण की जांच की जाए।
राष्ट्रपति जी ने पत्र के माध्यम से मेरे पर आरोप लगाए- राकेश सेमवाल
इस पूरे मामले में अपनी बात रखते हुए राकेश सेमवाल ने कहा कि हो सकता है कि अध्यक्ष जी को विभाग ने कुछ ऐसी जानकारी दी हो जिसके कारण वह ये सब बोल रहे हों। अगर वह मुझसे मेरे बारे में पूछेंगे तो मैं सबको बता दूंगा। राष्ट्रपति जी ने पत्र के माध्यम से मेरे पर जो आरोप लगाए हैं, उसकी जांच कर सकते हैं। उत्तराखंड में स्थिति के अनुसार उसका एसीपी का प्रथम और द्वितीय लाभ मिला। इसके बाद भी अध्यक्ष अजेन्द्र अजय जी को अगर किसी प्रकार की कोई शंका है तो वह मेरी जांच कर सकते हैं। मैं इसके लिए भी कोर्ट जाउंगा, ट्रिब्यूनल भी जाउंगा और समझौते में भी अपनी बात रखूंगा।
मंदिर समिति के एक्ट की धज्जियां किस तरह से उड़ाई जा रही
एक्ट के मुताबिक, पद व वेतनमान स्वीकृत करने का अधिकार शासन के पास है। इसके बावजूद मंदिर समिति ने अपने स्तर से ही सेमवाल को उच्चीकृत वेतनमान दे डाला। यही नहीं, उच्चीकृत वेतनमान देने के साथ ही वैतनिक व पदीय लाभ के रूप में लाखों रूपये का एरियर पिछली तिथि से दे दिया गया था। वर्ष 2018 में सारे नियम कानूनों को ताक पर रखकर सेमवाल को 5400 का ग्रेड पे दे दिया गया। इसके लिए भी शासन से कोई स्वीकृति नहीं ली गयी। जो इस तस्वीर को बयां करती है कि मामले में मंदिर समिति के एक्ट की धज्जियां किस तरह से उड़ाई जा रही है।
सिस्टम पर सवाल उठाते ये आंकड़े
राकेश सेमवाल की नियुक्ति वर्ष 1996 में सीज़नल अनुचर/चौकीदार के रूप में हुई थी। नियुक्ति के एक साल बाद ही सेमवाल को एडमिनिस्ट्रेटर/अवर लिपिक के पद पर नियुक्ति दे दी गई। इसके बाद वर्ष 2006 में सेमवाल को ऐसा करने पर लिपिक बना दिया गया। वर्ष 2011 में उत्तराखंड सरकार ने मंदिर समिति के प्रशासकों के लिए गढ़वाल मंडल विकास निगम के तौर पर पेंशनमान लिए। उसके बाद उसके मुख्य कार्याधिकारी ने सेमवाल को 5400 का ग्रेड पे दिया गया। विभागीय रिपोर्ट के अनुसार उसकी शैक्षिक योग्यता केवल इंटरमीडिएट है।