धोखेबाजी में सबसे आगे रहने वाला चीन अपनी हरकतों से एक बार फिर बाज नहीं आ रहा है। तवांग में चीनी सैनिकों से झड़प के बाद लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC ) का मुद्दा फिर से चर्चा में है। आपको बता दें, 9 दिसंबर को अरुणाचल प्रदेश के यांगत्से इलाके में चीनी सैनिकों ने घुसपैठ करने की कोशिश की। करीब 300 चीनी जवानों ने भारत की पोस्ट पर एक साथ कब्जा करने का लक्ष्य रखा। पर हमारे भारतीय सैनिकों ने उनके सभी मंसूबों को फेल कर दिया। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर चीन अरुणाचल प्रदेश में इतना सक्रिय क्यों हो रहा है?
अरुणाचल को लेकर चीन आखिर क्यों इतना परेशान?
अगर हमे तवांग पर चीन की महत्वाकांक्षा को समझना है तो ब्रिटिश शासन काल की तरफ जाना जरुरी होगा। जब अंग्रेज भारत पर शासन कर रहे थे तभी चीन मैकमोहन रेखा को लेकर एकदम खामोश रहा लेकिन जैसे ही सन् 1947 में यह शासन खत्म हुआ, तो चीन बेचैन हो गया। जिसके बाद उसकी नजरें अरुणाचल प्रदेश पर जा टिकी जिसे वह दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताता है। इतिहास में ऐसी कोई घटना या किस्सा नहीं है जो यह साबित कर सके कि अरुणाचल प्रदेश, तिब्बत या फिर चीन का हिस्सा है। चीन हमेशा से अपने और भारत के बीच अरुणाचल प्रदेश को तनाव का मसला बनाता आया है। सन् 1952 में जब बांडुंग सम्मेलन हुआ तो पंचशील सिद्धांतों पर चीन राजी हुआ। लेकिन सन् 1961 से ही चीन, अरुणाचल प्रदेश पर आक्रामक बना हुआ है।
9 दिसंबर वाली घटना से फिर बढ़ा तनाव
अगर हम 9 दिसंबर वाली घटना की बात करें तो तवांग में भारतीय पोस्ट को हटवाने के लिए चीनी सैनिक आए थे। तभी भारतीय जवानों तुरंत मोर्चा हाथ में लेते हुए चीनी सैना से भिड़ गए। जब चीनी सैनिको ने भारतीय जवानों को भारी पड़ता देख वे वहां से पीछे हट गये। इस हिंसक घटना में 6 भारतीय जवान घायल हुए हैं, चीन की तरफ से कोई आंकड़ा जारी नहीं हुआ है लेकिन बड़ी संख्या में उसके जवान जख्मी हैं।
गलवान के बाद लगातार कर रहे जंग की अपील
जानकारी के मुताबिक, हाल ही में हुई राष्ट्रीय कांग्रेस के दौरान जिनपिंग ने अपनी चीनी सेना को युद्ध के लिए तैयार रहने को कहा है।साल 2020 में गलवान घाटी में हुई हिंसा के बाद से ही जिनपिंग ने अपनी सेना को तैयार रहने के लिए कहा। आपको बताते चलें की चीन की अर्थव्यवस्था इस समय मुश्किल दौर से गुजर रही है। जीरो कोविड नीति के सख्त नियमों के कारण जनता पहले ही जिनपिंग का विरोध कर रही है। अपनी सत्ता को बरकरार रखने की चाहत रखने वाले जिनपिंग देश की मुश्किलों से ध्यान हटाने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में एलएसी पर भारत को उलझाने के अलावा उन्हें कोई बेहतर विकल्प नहीं मिल सकता है।
आखिर राष्ट्रपति बनते ही कैसे बदले जिनपिंग के सुर
साल 2013 में जब जिनपिंग ने बतौर राष्ट्रपति जिम्मेदारी संभाली थी तो उन्होंने तिब्बत का दौरा किया था। साल 2011 में जब वह उपराष्ट्रपति थे तो हमेशा भारत के साथ सीमा विवाद को शांति के साथ सुलझाने की वकालत करते थे। लेकिन राष्ट्रपति बनते ही उनके सुर बदल गए। इस साल अक्टूबर में जब चीन की राष्ट्रीय कांग्रेस हुई तो जिनपिंग ने एलएसी का अनुभव रखने वाले तीन जनरलों को टॉप पीएलए पोस्ट्स से नवाजा।