37 दिन की कड़ी तलाश, तय किया सैकड़ों किलोमीटर का सफर, दिल्ली पुलिस ने मां-बेटी का मिलन करवाया भावुक अंदाज़ में!

7 अक्टूबर को जब परिवार IHBAS अस्पताल पहुंचा, तो जैसे ही महिला ने अपनी मां को देखा, उसकी आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े। उस पल अस्पताल के कमरे में भावनाओं का सैलाब उमड़ पड़ा — 37 दिन की जुदाई का अंत आखिरकार हो गया।

Delhi Police

Delhi Police : कभी-कभी इंसानियत के छोटे-छोटे कदम भी किसी की पूरी ज़िंदगी बदल देते हैं। ऐसी ही एक मिसाल पेश की है दिल्ली पुलिस के शाहदरा जिले की सीलमपुर थाना टीम ने, जिसने 37 दिनों की अथक कोशिशों के बाद एक मानसिक रूप से अस्वस्थ महिला को उसके परिवार से दोबारा मिलवाया। 7 अक्टूबर 2025 को जब यह महिला IHBAS अस्पताल में अपनी मां और परिजनों से मिली, तो वहां मौजूद हर आंख नम हो उठी।

सड़क पर बेसहारा मिली गर्भवती महिला

डीसीपी शाहदरा प्रशांत गौतम के अनुसार, 1 सितंबर 2025 को सीलमपुर थाने को सूचना मिली कि एक गर्भवती महिला असहाय हालत में सड़कों पर घूम रही है। पुलिस ने मौके पर पहुंचकर उसे सुरक्षित थाने लाया। जांच में पता चला कि वह मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले के रानीखेड़ा गांव की 21 वर्षीय निवासी है। थाना प्रभारी (एसएचओ) ने तुरंत कार्रवाई करते हुए महिला को मेडिकल जांच के लिए जीटीबी अस्पताल भेजा। वहां इलाज के बाद 4 सितंबर को उसे कोर्ट में पेश किया गया।

कोर्ट ने उसके मानसिक स्वास्थ्य को देखते हुए उसे IHBAS (इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड अलाइड साइंसेज) में भर्ती कराने का आदेश दिया, जहां उसकी देखभाल शुरू हुई। इसी बीच, सब-इंस्पेक्टर अनुपम और हेड कांस्टेबल अंकुश ने महिला के परिवार की तलाश शुरू की। सबसे पहले वे उसके गांव रानीखेड़ा पहुंचे, लेकिन वहां कोई जानकारी नहीं मिली। टीम ने हार नहीं मानी — महिला की तस्वीर और जानकारी स्थानीय व राष्ट्रीय अखबारों में प्रकाशित कराई, ताकि किसी तरह उसका परिवार खबर देख सके।

नवजात ने तोड़ी सांसें

7 सितंबर को IHBAS से सूचना आई कि महिला ने एक प्री-मैच्योर बच्चे को जन्म दिया है। नवजात की हालत नाज़ुक थी, उसे एसडीएन अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद वह जिंदगी की जंग हार गया।
इस दुखद मोड़ के बावजूद पुलिस टीम ने अपनी खोज जारी रखी — क्योंकि उनके सामने अब एक जिम्मेदारी थी, उस मां को उसके परिवार से मिलाने की।

बागेश्वर धाम में मिली उम्मीद की नई राह

पुलिस की उम्मीद की डोर बागेश्वर धाम से जुड़ी। हेड कांस्टेबल अंकुश और कांस्टेबल राज वहां पहुंचे, पोस्टर लगाए और स्थानीय लोगों से बातचीत की। कुछ भिखारियों ने महिला को पहचान लिया। छोटे-छोटे सुरागों को जोड़ते हुए आखिरकार पुलिस महिला के परिवार तक पहुंच गई — और 37 दिनों की मेहनत रंग लाई।

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7 अक्टूबर को जब महिला के परिजन IHBAS अस्पताल पहुंचे, तो जैसे ही बेटी की नज़र अपनी मां पर पड़ी, उसकी आंखों से आंसू छलक पड़े। अस्पताल के कमरे में एक ऐसा पल बना जिसने हर मौजूद इंसान को भावुक कर दिया।
37 दिन की तलाश, उम्मीद, दर्द और समर्पण आखिरकार उस एक आलिंगन में समा गए।

कोर्ट ने की दिल्ली पुलिस की सराहना

महिला को उसके परिवार सहित अदालत के सामने पेश किया गया। कोर्ट ने आदेश में लिखा — “एसएचओ, जांच अधिकारी एसआई अनुपम और हेड कांस्टेबल अंकुश ने इस प्रकरण को संवेदनशीलता और समर्पण के साथ संभाला। उनके प्रयास अनुकरणीय हैं।” कोर्ट ने आदेश की प्रति डीसीपी शाहदरा को भेजते हुए पुलिस टीम को सम्मानित करने की अनुशंसा भी की। यह कहानी सिर्फ पुलिस की कार्यकुशलता की नहीं, बल्कि मानवता की भी मिसाल है। ऐसे समय में जब संवेदनाएं अक्सर खो जाती हैं, शाहदरा पुलिस ने दिखाया कि अगर नीयत सच्ची हो, तो किसी भी “खोई हुई कहानी” को “मिलन की कहानी” बनाया जा सकता है।

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