मां कात्यायनी मां दुर्गा का छठा स्वरूप है। माता कात्यायनी को ब्रजभूमि की अधिष्ठात्री देवी के रूप में भी जाना जाता है। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि ब्रजभूमि की कन्याओं ने श्रीकृष्ण के प्रेम को पाने के लिए देवी की आराधना की थी। वहीं भगवान श्रीकृष्ण ने खुद देवी कात्यायनी की पूजा की थी। माता कात्यायनी को मधुयुक्त पान अत्यंत प्रिय है। इसलिए इन्हें प्रसाद में फल और मिठाई के साथ शहद युक्त पान अर्पित करें।
माना जाता है कि माता का प्रभाव कुंडलिनी चक्र के आज्ञा चक्र पर है। नवग्रहों की बात करें तो माता कात्यायनी शुक्र को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा करने से वैवाहिक जीवन के सुख की प्राप्ति होती है। माता माता कात्यायनी विवाह में आ रही बाधा आ रही हो दूर करती है।
माता कात्यायनी की आरती
जय-जय अम्बे जय कात्यायनी
जय जगमाता जग की महारानी
बैजनाथ स्थान तुम्हारा
वहा वरदाती नाम पुकारा
कई नाम है कई धाम है
यह स्थान भी तो सुखधाम है
हर मंदिर में ज्योत तुम्हारी
कही योगेश्वरी महिमा न्यारी
हर जगह उत्सव होते रहते
हर मंदिर में भगत हैं कहते
कत्यानी रक्षक काया की
ग्रंथि काटे मोह माया की
झूठे मोह से छुडाने वाली
अपना नाम जपाने वाली
बृहस्पतिवार को पूजा करिए
ध्यान कात्यायनी का धरिए
हर संकट को दूर करेगी
भंडारे भरपूर करेगी
जो भी भक्त मां को पुकारे
कात्यायनी सब कष्ट निवारे।।
जय जय अम्बे, जय कात्यायनी।
जय जगमाता, जग की महारानी।
माता कात्यायनी का मंत्र
चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दूलवर वाहना। कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानव घातिनी॥
इस मंत्र का उचारण करके नवरात्र के छठे देवी की पूजा करनी चाहिए।
ये भी पढ़े-Navratri 2022: मां दुर्गा क्यों कहलाई माता कात्यायनी, जानें माता के छठे स्वरूप की कहानी