आज छठा नवरात्र है। आज के दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। मां कात्यायनी दुर्गा के नौ रूपों में छठे स्वरूप के रूप में पूज्य मानी जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि माता ने ये रूप अपने भक्त ऋषि कात्यायन के लिए धारण किया था। दरअसल देवी भागवत पुराण में ऐसी कथा है कि ऋषि कात्यायन मां आदिशक्ति के परम भक्त हुआ करते थे। मां कात्यायनी की इच्छा थी कि देवी उनकी पुत्री के रूप में उनके घर पर पधारें। इसके लिए ऋषि कात्यायन ने देवी की वर्षों तक कठोर तपस्या की।
परम भक्त के तप से प्रसन्न होकर देवी कात्यायन के घर पर उनकी पुत्री रूप में प्रकट हुई। कात्यायन की पुत्री होने के कारण माता रानी कात्यायनी कहलाई। सबसे पहले देवी पूजा स्वयं महर्षि कात्यायन ने ही की थी। देवी तीन दिन तक ऋषि की के पर रही। तीन दिनों तक उनकी पूजा स्वीकार करने के बाद देवी ने ऋषि कत्यायन से विदा ली और महिषासुर को युद्ध में ललकार कर उसका अंत किया। इसलिए देवी को महिषासुर मर्दनी के नाम से भी जाना जाता है।
मां कात्यायनी चार भुजाधारी हैं। जिनके एक भुजा में शत्रुओं का अंत करने वाली तलवार है, तो वहीं देवी के दूसरी भुजा में पुष्प है जो भक्तों के प्रति माता के स्नेह को दर्शाता है। देवी की तीसरी भुजा अभय मुद्रा में है जो भक्तों को भय मुक्त करती है। चौथी भुजा देवी का वर मुद्रा में है जो भक्तों को उनकी भक्ति का वरदान देने के लिए है।
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