Rahul Gandhi: राहुल गांधी के हालिया बयानों ने राजनीतिक और सामाजिक हलचल मचा दी है। उनका सवाल, जिसमें उन्होंने संसद में 2024-25 के बजट बनाने वाले अधिकारियों की संपत्ति की स्थिति पर सवाल उठाया, ने सामाजिक न्याय की पुरानी बहस को फिर से प्रासंगिक बना दिया है। इससे यह प्रश्न उठता है कि क्या सामाजिक न्याय का मुद्दा, विशेषकर संपत्ति असमानता पर ध्यान केंद्रित करके, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के हिंदुत्व के प्रबल नैरेटिव को चुनौती देने में प्रभावी हो सकता है।
संपत्ति असमानता और राजनीतिक प्रतिक्रिया
Rahul Gandhi के सवाल ने व्यापक प्रतिक्रिया प्राप्त की। उन्होंने यह सवाल उठाया कि बजट में पिछड़े वर्गों को (Rahul Gandhi) उचित प्रतिनिधित्व कैसे मिल सकता है, जब उसे तैयार करने वाले अधिकारी समाज के सबसे अमीर वर्ग से आते हैं। भाजपा ने उनके बयान को “विभाजनकारी” करार दिया, लेकिन आरएसएस ने संपत्ति की जांच के विचार का समर्थन किया।
आरएसएस और संपत्ति की कहानी की मांग
आरएसएस का यह समर्थन एक नए प्रकार की राजनीतिक रणनीति का संकेत हो सकता है, जहां संपत्ति के आधार पर असमानता का मुद्दा भी भाजपा के हिंदुत्व के नैरेटिव के समानांतर स्थापित किया जा सकता है। आरएसएस का यह कहना कि भारत को संपत्ति के असमान वितरण की सच्चाई जाननी चाहिए, इस बात की ओर इशारा करता है कि वे सामाजिक न्याय के इस पहलू को भी ध्यान में रखना चाहते हैं।
सामाजिक न्याय बनाम हिंदुत्व: एक अवसर
राहुल गांधी का यह कदम सामाजिक न्याय के समर्थकों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर हो सकता है। यदि (Rahul Gandhi) संपत्ति की असमानता का मुद्दा सही तरह से उठाया गया तो यह भाजपा के हिंदुत्व-आधारित सहयोगी राजनीति के मॉडल को कमजोर करने वाला एक प्रमुख हथियार बन सकता है। भाजपा के हिंदुत्व मॉडल ने तकनीकी चालाकी और धार्मिक भावना का उपयोग कर सत्ता में बड़ी पकड़ बनाई है, लेकिन संपत्ति असमानता और सामाजिक न्याय का मुद्दा इन भावनाओं को चुनौती दे सकता है।
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हिंदुत्व की रणनीति और उसकी जड़ें
हिंदुत्व का उदय आरएसएस के 1925 में गठन के साथ शुरू हुआ। हिंदुत्व के आदर्शों ने हिंदू धर्म की विकेंद्रित प्रकृति को फिर से परिभाषित किया और इसे एक महाशक्ति के रूप में प्रस्तुत किया। इसका उद्देश्य भारत को एक ऐसे समाज के रूप में देखना था, जहां हिंदू सर्वोच्च होंगे। लेकिन हिंदुत्व के समर्थक इस विचार को बढ़ावा दे रहे हैं कि हिंदू धर्म की खुली और बहुलतावादी प्रकृति उसकी कमजोरी है, जबकि यह हिंदू धर्म की सबसे बड़ी ताकत रही है।
घृणा और विभाजनकारी राजनीति
हिंदुत्व आंदोलन ने अपनी नीति के तहत गैर-हिंदुओं के प्रति घृणा और अविश्वास को बढ़ावा दिया। इस विचारधारा ने हिंदू समाज में एक शक्तिशाली लेकिन संकीर्ण समूह का निर्माण किया है, जिसने भाजपा के वोट बैंक का बड़ा हिस्सा बना लिया है।
संपत्ति के सवाल का राजनीतिकरण
हिंदुत्व विचारधारा के नेताओं ने लंबे समय से हिंदू समाज की विखंडित प्रकृति को एक बड़ी समस्या के रूप में देखा है। खासतौर पर निचले तबकों के उदय ने उच्च वर्गों में अस्थिरता और डर को जन्म दिया। 20वीं शताब्दी में जब आरएसएस का गठन हुआ था, तब बीआर अंबेडकर और ज्योतिराव फुले के विचारों ने निम्न वर्गों को प्रेरित करना शुरू कर दिया था। हिंदुत्व के समर्थकों ने मुस्लिमों और ईसाइयों को विरोधी के रूप में प्रस्तुत कर इस आंतरिक चुनौती को कमजोर करने का प्रयास किया।