लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। उत्तर प्रदेश की मिल्कीपुर विधानसभा सीट के लिए 5 फरवरी को वोटिंग होनी है। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर सपा ने पासी समाज के अजीत प्रसाद को प्रत्याशी बनाया है। बीजेपी ने अखिलेश यादव के सियासी दांव पर पलटवार किया है। सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी मिल्कीपुर से पासी समाज से आने वाले चंद्रभान पासवान को अपना प्रत्याशी घोषित किया है। जानकारों का कहना है कि बीजेपी के इस दांव से अब यहां के सियासी समीकरण बिगड़ चुके हैं। बीजेपी उपचुनाव में सपा को यहां पर कड़ी टक्कर देती हुई दिखाई पड़ रही है।
बीजेपी-सपा के बीच कांटे का मुकाबला
मिल्कीपुर विधानसभा सीट से बीजेपी टिकट की दौड़ में पूर्व विधायक बाबा गोरखनाथ, उप परिवहन आयुक्त सुरेन्द्र रावत समेत कुल पांच नाम चर्चा में थे। हालांकि, जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए चंद्रभान पासवान को पार्टी ने प्रत्याशी के रूप में चुना। जबकि सपा मिल्कीपुर से फैजाबाद सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे अजित प्रसाद के नाम की घोषणा कर चुकी है। मिल्कीपुर विधानसभा सीट एक सुरक्षित सीट है। सुरक्षित सीट होने की वजह से यहां पिछड़ी जातियां निर्णायक भूमिका निभाएंगी। अवधेश प्रसाद सिंह खुद बेटे अजित प्रसाद की जीत के लिए रणनीति बना रहे हैं।
कौन हैं बीजेपी उम्मीदवार चंद्रभान पासवान
चंद्रभान पासवान रुदौली से दो बार जिला पंचायत सदस्य चुने जा चुके हैं। वर्तमान में उनकी पत्नी जिला पंचायत सदस्य हैं। चंद्रभान पासवान का परिवार मुख्य रूप से सूरत की साड़ियों का कारोबार करता है। इस कारोबार में पूरा परिवार लगा हुआ है। रुदौली में भी उनका साड़ी का बिजनेस है। पिछले 2 साल से चंद्रभान पासवान मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर सक्रिय रहे थे। यूपी चुनाव 2022 में बीजेपी ने मिल्कीपुर सीट से गोरखनाथ को चुनावी मैदान में उतारा था। हालांकि, समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद से उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। चर्चा थी कि बीजेपी उपचुनाव में गोरखनाथ को फिर से टिकट देकर चुनाव के मैदान में उतारेगी। पर करीब 57 हजार पासी मतदाता (पीएम) के चलते बीजेपी ने पासी समाज के नेता को कमल का सिंबल देकर लड़ाई को रोचक बना दिया।
57 हजार पासी मतदाता
मिल्कीपुर में करीब 3.23 लाख मतदाता हैं। इनमें 1 लाख से ज्यादा दलित मतदाता हैं। दलितों में भी करीब 57 हजार पासी मतदाता (पीएम) हैं। इसके अलावा 30 हजार मुस्लिम और 55 हजार यादवों की तादाद है। मिल्कीपुर में सवर्ण बिरादरी में ब्राह्मण समाज के 60 हजार मतदाता हैं। क्षत्रियों और वैश्य समुदाय की तादाद क्रमशः 25 हजार और 20 हजार है। अन्य जातियों में कोरी 20 हजार, चौरसिया 18 हजार हैं। साथ ही पाल और मौर्य बिरादरी भी अहम हैं। पिछले कई चुनाव में पासी समाज का वोटर सपा के साथ रहा। यही वजह रही कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी को अयोध्या सीट में हार उठानी पड़ी। उपचुनाव में बीजेपी ने सपा को उसी के बनाए जाल में फांसने का सटीक प्लान, पायी कैंढीडेट देकर कर दिया है।
क्यों बीजेपी के लिए खास बनी मिल्कीपुर
फैजाबाद-अयोध्या लोकसभा सीट पर हार के बाद से मिल्कीपुर बीजेपी के लिए अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। पार्टी यहां पर जीत दर्ज कर लोकसभा चुनाव में हार के गम को बुलाने की कोशिश में है। पिछले दिनों 9 सीटों पर हुए विधानसभा उपचुनाव में 7 सीटों पर जीत दर्ज कर बीजेपी ने एक बार फिर प्रदेश में अपनी सशक्त स्थिति को दिखाया है। ऐसे में पार्टी मिल्कीपुर को भी जीतने की कोशिश में जुटी हुई है। दरअसल, अयोध्या राम मंदिर उद्घाटन के ठीक बाद हुए लोकसभा चुनाव में मिल्कीपुर से विधायक रहे अवधेश प्रसाद ने समाजवादी पार्टी के टिकट पर फैजाबाद से बीजेपी को करारी मात दे दी थी।
बीजेपी ने झोकी पूरी ताकत
लोकसभा चुनाव के इस रिजल्ट पर राजनीति खूब गरमाई। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इसे बीजेपी के हिंदुत्व की हार के रूप में देशभर में पेश किया। तमाम अहम राजनीतिक मौकों पर अखिलेश यादव ने अवधेश प्रसाद को अपने समकक्ष बैठाकर बीजेपी की हिंदुत्व राजनीति की हार के रूप में पेश किया। इसी के चलते बीजेपी ने मिल्कीपुर में पूरी ताकत लगाई है। अयोध्या राम मंदिर निर्माण के बाद क्षेत्र में विकास कार्यों को काफी बढ़ावा दिया गया। इसके बाद भी लोकसभा में हार ने पार्टी के सामने चुनौती बढ़ाई है। बीजेपी की कोशिश मिल्कीपुर में जीत दर्ज करने की है।
सीएम योगी ने संभाली कमान
इनसब के बीच मिल्कीपुर उपचुनाव को लेकर सीएम योगी आदित्यनाथ स्वयं काफी एक्टिव हैं। उन्होंने लोकसभा चुनाव रिजल्ट के बाद से करीब आधा दर्जन बार अयोध्या का दौरा किया है। इसमें अधिकांश बार वे मिल्कीपुर में किसी ने किसी कार्यक्रम में जरूर शामिल हुए हैं। वहीं पार्टी लोगों को यह बताने की कोशिश कर रही है कि लोकसभा में समाजवादी पार्टी की जीत महज तुक्का थी। लोगों को संविधान के नाम पर बहका कर वोट हासिल किया गया। लोगों ने अब असलियत समझ ली है। हालांकि, यह सीट बीजेपी के लिए जीतना उतना आसान नहीं होने वाला है। ऐसे में पार्टी ने मिल्कीपुर में दलित चेहरे को उतार कर एक अलग रणनीतिक दांव खेला है।
9 बार चुने गए विधायक
पासी कार्ड से भले ही बीजेपी खुश है, लेकिन अवधेश प्रसाद के लिए यह कोई नया मामला नहीं है। अवधेश प्रसाद खुद पासी समाज से आते हैं। वह इससे पहले कई बार पासी फैक्टर को हराकर जीत हासिल की है। यह मामला साल 1985 से शुरू होता है, जब अवधेश प्रसाद ने सोहावल विधानसभा सीट से दूसरे पार्टी के द्वारा प्रयोग किए पासी फैक्टर को हराया था। दरअसल, साल 1974 से अवधेश प्रसाद करीब 13 विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं, जिनमें 9 बार जीत हासिल की है। इनमें से भी 7 बार वह सोहावल विधानसभा सीट के विधायक रहे, जबकि 2 बार मिल्कीपुर सीट से चुनाव लड़ कर जीत हासिल की।
1977 में पहली बार चुने गए विधायक
इन चुनावों में करीब 8 बार दूसरे दलों ने पासी उम्मीदवार उतारकर अवधेश प्रसाद को हराने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने आठों बार विपक्षी दलों की चाल नाकामयाब कर दी। साल 1974 की हार के बाद अवधेश प्रसाद ने अगला चुनाव साल 1977 में जनता पार्टी की तरफ से लड़ा था, जिसमें इन्होंने कांग्रेस को हराया और पहली बार विधायक बने। 1985 व 1989 अवधेश प्रसाद फिर विधायक बन गए। साल 1991 में पासी समाज के रामू प्रियदर्शी ने बीजेपी के सिंबल पर चुनाव लड़ा और अवधेश प्रसाद को हरा दिया। इसके बाद साल 1993, 1996, 2002 व 2007 में अवधेश प्रसाद लगातार जीते और विधायक पद पर बने रहे।
फिर भारी पड़े अवधेश प्रसाद
1993 से 2002 तक बीजेपी ने पासी समाज के रामू प्रियदर्शी पर दांव लगाया और हार का सामना किया। 2007 में पार्टी ने पासी समाज की ऊषा रावत को चुनावी मैदान में उतारा और फिर भी जीत हाथ नहीं लगी। साल 2012 में सुरक्षित सीट मिल्कीपुर बनी तो फिर अवधेश प्रसाद ने बीजेपी के रामू प्रियदर्शी को हार का मजा चखाया। इसके बाद 2017 में बीजेपी ने पासी समाज के गोरखनाथ बाबा पर दांव लगाया और कामयाब रहे। 2022 में फिर से पासा पलट गया है और अवधेश प्रसाद मिल्कीपुर सीट से विधायक चुने गए।