लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में लोहड़ी पर्व यानी 13 जनवरी, 2025 से महाकुंभ की शुरुआत हुई थी, जिसका आखिरी अमृत स्नान महाशिवरात्रि यानी 26 फरवरी 2025 को किया जाएगा। एक सप्ताह के अंदर करीब 9 करोड़ से अधिक भक्तों ने त्रिवेणी में डुबकी लगाई है। एक अनुमान के मुताबिक इसबार करीब 45 से 50 करोड़ भक्त संगमनगरी पहुंच सकते हैं। सरकार ने भी भक्तों के लिए शानदार सुविधाएं मुहैया कराई हैं। इससे पहले 1882 में महाकुंभ का आयोजन इलाहाबाद में हुआ था। तब 10 लाख भक्तों ने संगम में स्नान कर पुण्ण कमाया था।
पहले जानें कुंभ के बारे में
पौराणिक कथा के मुताबिक, अमृत पाने के लिए देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन किया गया। इस मंथन के दौरान कई तरह के रत्न उत्पन्न हुए, जिन्हें देवताओं और असुरों ने बांट लिया। समुद्र मंथन के आखिर में भगवान धन्वंतरि अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए। अमृत पाने की लालसा में देवताओं और असुरों में युद्ध छिड़ गया। इस छीना-झपती में अमृत की कुछ बूंदें धरती के 4 स्थानों, प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिर गईं। माना जाता है कि तभी से इन चार स्थानों पर हर 12 साल के अंतराल में कुंभ का आयोजन होता है। पहली बार कुंभ का आयोजन कब हुआ, इसे लेकर कोई सटीक प्रमाण नहीं मिलता।
कुंभ का वर्णन
प्रथम कुंभ आयोजन की तारीख को लेकर अलग-अलग मत हैं। कुछ मान्यताओं के अनुसार, 7वीं शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के काल में चीनी तीर्थयात्री ह्वेनसांग ने अपने एक यात्रा विवरण में कुंभ का वर्णन किया है। इस यात्रा विवरण में उन्होंने प्रयागराज के कुंभ महोत्सव के दौरान संगम पर स्नान का उल्लेख करते हुए इसे पवित्र हिंदू तीर्थस्थल बताया है। वहीं कुछ लोगों का यह भी मानना है कि 8वीं शताब्दी में भारतीय गुरु तथा दार्शनिक आदि शंकराचार्य जी और उनके शिष्य सुरेश्वराचार्य ने दसनामी संन्यासी अखाड़ों के लिए संगम तट पर स्नान की व्यवस्था की थी। 2024 से पहले 1882 में महाकुंभ का आयोजन हुआ था। तब देश में अंग्रेजों की सरकार थी।
10 लाख लोग महाकुंभ में पहुंचे
144 साल पहले साल 1882 में महाकुंभ में पूरे देश से 10 लाख लोग महाकुंभ में स्नान करने पहुंचे थे। यह उस समय की कुल आबादी का 0.6 फीसदी था। रिकॉर्ड डॉक्यूमेंट के अनुसार उस समय देश की कुल आबादी करीब 25 करोड़ थी। वहीं इस साल 2025 में हो रहे महाकुंभ में 1882 की तुलना में करीब 35 फीसदी से अधिक हिंदू आबादी का इस महाकुंभ में पहुंचने का अनुमान है। सरकार के अनुमान के अनुसार यह संख्या करीब 45 करोड़ होगी। इतना ही नहीं इस महाकुंभ से सरकार को दो लाख करोड़ से अधिक आमदनी होने की उम्मीद है। एक न्यूज न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू के दौरान लखनऊ विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर एमके अग्रवाल ने कुंभ को लेकर कई जानकारियां दी हैं।
सिर्फ एक इंस्पेक्टर की निगरानी में महाकुंभ
अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर एमके अग्रवाल ने बताया साल 1882 में प्रयागराज में लगे महाकुंभ को जिला स्तर पर आयोजित किया गया था। उस समय इलाहाबाद के पुलिस इंस्पेक्टर की निगरानी में इसका आयोजन किया गया था। इसके अलावा मेडिकल फैसिलिटी की निगरानी इलाहाबाद के सिविल सर्जन डॉक्टर एचएस स्मिथ को सौपा गई थी। जबकि पूरे आयोजन की निगरानी निर्बानी, निरंजन, बजरंगी, निर्मोही, और दिगंबर जैसे अखाड़े ने अपने हाथ में ही ले रखी थी। प्रोफेसर अग्रवाल ने बताया कि उसे समय प्रयागराज में आने वाले अधिकतर श्रद्धालु पड़ोस के ही राज्यों से आए थे। हालांकि अंग्रेज सरकार को इस महाकुंभ से कितनी आमदनी हुई, इसका आंकड़ा नहीं है। बावजूद एक अनुमान के मुताबिक, तब अंग्रेज सरकार के खजाने में 80 हजार से अधिक रूपए गए थे।
500 पुलिसकर्मी किए गए थे तैनात
प्रोफेसर ने बताया कि रिकॉर्ड डॉक्यूमेंट के अनुसार 1882 में पूरे कुंभ को आयोजित करने के लिए 500 पुलिसकर्मी की तैनाती की गई थी, जबकि पूरे कुंभ के दौरान 50 केस चोरी के दर्ज हुए थे। 144 वर्ष पहले अंग्रेजों की तरफ से कुछ टैक्स भी लगाए गए थे। नाईयों को दुकानें खुलवाई गई और उनसे बतौर टैक्स पैसे लिए गए। कुंभ का आयोजन मुगलशासकों के दौर में भी हुआ करता था। अकबर खुद कुंभ में शामिल होने के लिए आया करते थे। हालांकि एक घटना के बाद अकबर ने कुंभ के आयोजन पर रोक लगा दी। संतों ने विरोध शुरू किया। जिसके बाद फिर से कुंभ का आयोजन शुरू हुआ।
कुंभ के बजट में बढ़ोतरी
प्रोफेसर एमके अग्रवाल ने बताया कि 2013 में हुए महाकुंभ में 1300 करोड़ रुपये खर्च किये गये थे। जबकि 2019 में लगे अर्द्धकुंभ में यह बजट बढ़ाकर तीन गुना बढ़कर 4200 करोड़ रुपये हो गया था। जबकि 2025 के महाकुंभ के आयोजन के लिए केंद्र और राज्य सरकार ने मिलकर 7000 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। प्रोफेसर अग्रवाल ने बताया कि 2013 की तुलना में 2025 में महंगाई अधिक हो गई है. इसलिए कुंभ का बजट भी बढ़ा है। प्रोफेसर ने कहा कि, महाकुंभ 2025 को अर्थशास्त्र की नजर से देखें तो कुंभ अब धार्मिक आयोजन के साथ आर्थिक आयोजन के तौर पर भी उभर कर सामने आया है।
जानें कितने पैसे हुए खर्च
प्रोफेसर एमके अग्रवाल ने बताया कि अपने रिसर्च में 2013 से लेकर 2025 के कुंभ में हुए बदलाव इसके खर्च और आय पर रिसर्च किया है। जो अभी कुंभ के चलने तक जारी रहेगी और इसकी रिपोर्ट तैयार कर उत्तर प्रदेश सरकार को सौंपी जाएगी। प्रोफेसर ने बताया कि 1882 में 0.6 फीसदी लोगों ने संगम में स्नान किया। जबकि 2013 में 6 फीसदी, 2019 में 20 फीसदी और 2024 में 30 से 35 फीसदी लोग संगमनगरी पहुंचेंगे। प्रोफेसर ने बताया कि 1882 मे हुए महाकुंभ में कितने पैसे खर्च हुए इसका आधिकारिक डेटा नहीं है। जबकि 2013 में 1300 करोड़, 2019 में 4200 करोड़ और 2025 में 7000 करोड़ रूपए कुंभ में सरकार खर्च कर रही है।
2 लाख करोड़ तक का सीधा फायदा
प्रोफेसर अग्रवाल ने बताया कि अभी तक के रिसर्च में यह सामने आया है कि करीब 60 से 7000 करोड़ प्रयागराज में वेंडर्स ऑटो चालक और दूसरे व्यवसाय से जुड़े लोगों को होने जा रहा है। उन्होंने बताया कि इसके अलावा प्रचार टैक्स, रेलवे ठेका पट्टी से उत्तर प्रदेश सरकार को अभी तक कुल 25 से 30 हजार करोड़ का सीधा फायदा हो चुका है। जो कुंभ के खत्म होने तक 2 लाख करोड़ तक हो जाएगा. इतना ही अनुमानित फायदा केंद्र सरकार को भी होने का अनुमान है। प्रोफेसर ने बताया कि कमाई का आंकड़ा चार लाख करोड़ पहुंच सकता है।