CEC की नियुक्ति पर कांग्रेस का विरोध
ज्ञानेश कुमार का नाम, जो पहले चुनाव आयुक्त के तौर पर कार्यरत थे, पीएम मोदी की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में सीईसी पद के लिए मंजूर किया गया। इस बैठक में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी भी शामिल थे। हालांकि, राहुल गांधी ने इस नियुक्ति को तब तक स्थगित करने की मांग की, जब तक सुप्रीम कोर्ट नई नियुक्ति प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला नहीं कर लेता।
कांग्रेस ने इस फैसले को संविधान की भावना के खिलाफ बताते हुए आरोप लगाया है कि मोदी सरकार संवैधानिक संस्थाओं पर नियंत्रण बनाने की कोशिश कर रही है। पार्टी का कहना है कि इस प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी है, क्योंकि CEC की नियुक्ति पैनल से भारत के मुख्य न्यायधीश को बाहर किया गया है। यह कदम सरकार ने पिछले साल संसद से एक नया कानून पारित कर उठाया था, जिसके तहत अब सीईसी की नियुक्ति के लिए चयन पैनल में मुख्य न्यायधीश को शामिल नहीं किया गया है।
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार का यह कदम स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावी प्रक्रिया पर सवाल उठाता है, और इसे संविधान के अनुरूप नहीं माना जा सकता। कांग्रेस ने यह भी कहा कि राहुल गांधी ने एक विरोध पत्र पेश कर यह सुझाव दिया था कि नए सीईसी का चयन सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक स्थगित कर दिया जाना चाहिए था।
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क्या है सुप्रीम कोर्ट में मामला?
सुप्रीम कोर्ट में इस समय उस नए कानून के खिलाफ याचिकाएं दायर की गई हैं, जिसमें CEC की नियुक्ति से भारत के मुख्य न्यायधीश को बाहर रखा गया है। अदालत में यह सवाल उठाया गया है कि क्या इस संशोधित कानून से चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर 19 फरवरी को सुनवाई की तारीख तय की है, और विपक्षी दलों का कहना है कि इस फैसले से पहले सीईसी की नियुक्ति की प्रक्रिया को रोका जाना चाहिए था।
कांग्रेस ने अपने बयान में कहा, “यह सरकार का कदम संविधान की आत्मा के खिलाफ है और यह दिखाता है कि सरकार चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश कर रही है।” पार्टी के नेता अभिषेक सिंघवी ने यह भी कहा, “इस फैसले से सरकार ने यह साबित कर दिया है कि वह चुनाव आयोग जैसे संवैधानिक संस्थाओं पर अपना नियंत्रण स्थापित करना चाहती है।”
केंद्र सरकार का रुख
केंद्र सरकार ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि यह नियुक्ति पूरी तरह से कानूनी और संवैधानिक प्रक्रियाओं के तहत की गई है। सरकार का तर्क है कि चयन समिति के तीन सदस्य—प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता—ने मिलकर यह फैसला लिया है और इसके बाद राष्ट्रपति से मंजूरी प्राप्त की गई है। सरकार का यह भी कहना है कि सीईसी की नियुक्ति में किसी भी प्रकार की राजनीतिक दखलंदाजी नहीं की गई है और यह एक पारदर्शी प्रक्रिया है।
नए CEC के बारे में जानें
CEC ज्ञानेश कुमार का जन्म 27 जनवरी 1964 को उत्तर प्रदेश के आगरा में हुआ था। वह 1988 बैच के केरल कैडर के आईएएस अधिकारी हैं और उन्होंने आईआईटी कानपुर से सिविल इंजीनियरिंग में बी.टेक, आईसीएफएआई से बिजनेस फाइनेंस में पोस्ट ग्रेजुएशन और हार्वर्ड विश्वविद्यालय से एनवायरनमेंटल इकोनॉमिक्स में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की है।
ज्ञानेश कुमार ने कई महत्वपूर्ण प्रशासनिक पदों पर कार्य किया है, जिनमें केरल के विभिन्न जिलों में असिस्टेंट कलेक्टर और डिप्टी कलेक्टर के पद शामिल हैं। वह भारत सरकार में रक्षा मंत्रालय, गृह मंत्रालय, और सहकारिता मंत्रालय में विभिन्न उच्च पदों पर कार्य कर चुके हैं। इसके अलावा, वह राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट में केंद्र के प्रतिनिधि भी रहे हैं।
CEC ज्ञानेश कुमार 31 जनवरी 2024 को भारत सरकार के सहकारिता सचिव के पद से सेवानिवृत्त हुए थे और 14 मार्च 2024 को उन्हें चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया था। अब वह देश के अगले मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में कार्य करेंगे। उनका कार्यकाल 26 जनवरी 2029 तक रहेगा और संभावना है कि वह आगामी लोकसभा चुनावों के दौरान चुनाव आयोग के प्रमुख के तौर पर काम करेंगे।
विवेक जोशी का चुनाव आयुक्त के रूप में चयन
ज्ञानेश कुमार के साथ ही, विवेक जोशी को चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया है। विवेक जोशी 1989 बैच के हरियाणा कैडर के आईएएस अधिकारी हैं और उन्होंने केंद्रीय वित्त मंत्रालय में सेक्रेटरी के रूप में काम किया है। उनका कार्यकाल 2031 तक रहेगा।
चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि मोदी सरकार चुनावी प्रक्रिया को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा, “इस तरह के फैसले से यह स्पष्ट होता है कि सरकार चुनावी प्रक्रिया को नष्ट कर रही है और अपने राजनीतिक लाभ के लिए चुनाव आयोग को प्रभावित करना चाहती है।”
कांग्रेस ने इस मामले में यह भी कहा कि सरकार ने सीईसी की नियुक्ति के लिए इतनी जल्दी क्यों की, जबकि सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर विचार कर रहा था। पार्टी ने यह सुझाव दिया कि अगर सरकार का इरादा सही था तो वह सुप्रीम कोर्ट से इस मामले की त्वरित सुनवाई के लिए आवेदन कर सकती थी।
सुप्रीम कोर्ट में चल रहे इस मामले का निर्णय CEC की नियुक्ति की प्रक्रिया के भविष्य को प्रभावित कर सकता है। विपक्षी दलों का कहना है कि सीईसी की नियुक्ति में पारदर्शिता की कमी है और सरकार संविधान की भावना को नजरअंदाज कर रही है। अब यह देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या फैसला सुनाता है, और क्या सरकार अपनी नियुक्ति प्रक्रिया में कोई बदलाव करती है।