(मोहसिन खान) नोएडा डेस्क। उर्दू का एक मशहूर और मकबूल शेर है ‘हमें क्या बनाना था और हम क्या बना बैठे कहीं हिन्दु-कहीं मुस्लिम की हम तख्ती लगा बैठे परिंदों के यहां फिरकापरस्ती नहीं मिलती कभी मंदिर पर जा बैठे कभी मस्जिद पर जा बैठे’ लेकिन मौजूदा वक्त की राजनीति में परिंदों का ज़िक्र तो दूर की बात हो गई। क्योंकि अब तो सरकारें अपने हिसाब से तय कर रही है कि किस धर्म की बात करनी है और उनको कहां मुस्लिम और कहां हिन्दु की तख्ती लगाकर सियासत करनी है। सवाल तो यहीं है कि क्या अलग अलग धर्मो की बात करने वाले सियासी लोग ही समाज का बांटने का काम नहीं कर रहे क्या राजनीतिक दल ही हिन्दु और मुस्लिम के बीच में गहरी खाई को पाटने का काम नहीं कर रहे।
अयोध्या-काशी के बाद मथुरा की बारी.. एक बड़ी तैयारी
भाजपा शासित और गैर भाजपा शासित प्रदेशों में धर्म की राजनीति लगता है कि पिछले कुछ समय से उफान पर है और शायद यही वजह है वोट बैंक की राजनीति की खातिर सब अपने अपने फायदें की बात कर रहे है और एक सधे हुए तरीके से वोटों का साध रहे है। याद रहे कि मथुरा में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या और काशी का ज़िक्र करते हुए कहा था कि अब मथुरा की बारी है और एक बड़ी तैयारी है। यानि साफ है कि सीएम योगी के बयान के बाद सनातनियों में मथुरा को लेकर ना केवल उम्मीद जगी बल्कि उनकी खुशी भी दोगुनी हो गई। दरअसल मथुरा में भी पिछले लंबे समय से शाही ईदगाह का मुद्दा गर्माया हुआ है और ये मामला कोर्ट में विचाराधीन है। लिहाज़ा मौके की नज़ाकत को समझते हुए सीएम योगी ने बयानों का प्रहार कर दिया और कह दिया कि मथुरा का इंतज़ार भी जल्द ही खत्म हो जाएगा।
कर्नाटक सरकार के बजट में मुस्लिमों की बल्ले-बल्ले
दरअसल यूपी में सीएम योगी आदित्यनाथ मथुरा वाले बयान से हिन्दु वोट बैंक को साध रहे थे तो उधर कर्नाटक की कांग्रेस सरकार के बजट में मुस्लिमों के लिए पिटारा खुल रहा था यानि की एक ओर यूपी में हिन्दु राजनीति परवान चढ़ रही थी तो कर्नाटक में बजट मुस्लिमों पर फोकस था। सवाल उठना लाजिमी है कि समाज को बांटने का काम तो खुद राजनीतिक दल ही कर रहे है। अब कर्नाटक सरकार के बजट को देखिए जिसमें मुस्लिमों के लिए करीब 4700 करोड़ रुपए की योजनाओं की घोषणा की है। बजट में मस्जिद के इमाम को 6 हजार रुपए मासिक भत्ता, वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा के लिए 150 करोड़ रुपए, उर्दू स्कूलों के लिए 100 करोड़ रुपए और अल्पसंख्यक कल्याण के लिए 1 हजार करोड़ रुपए दिए गए हैं। साथ ही लोक निर्माण विभाग में 4 फीसदी ठेकेदारी मुस्लिम समुदाय के लिए रिजर्व करने की घोषणा की है। जिसके बाद कर्नाटक में राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया।
क्या सरकारी अधिकारी का बयान देना वाजिब है!
राजनीतिक उठापटक के बीच में सामाजिक ताने-बाने की क्यारी में नागफनी जैसी बयानबाजी क्या किसी सरकारी अधिकारी को शोभा देती है, ये अपने आप में एक बड़ा सवाल है। दरअसल सोशल मीडिया पर यूपी के संभल ज़िले में तैनात सीओ अनुज चौधरी का बयान तेज़ी के साथ वायरल हो रहा है। जिसमें सीओ संभल अनुज चौधरी कह रहे है कि जुमा तो साल भर में 52 बार आता है और होली का त्यौहार सिर्फ एक बार आता है अगर किसी को कोई आपत्ति है तो वो अपने घरों से बाहर ना निकले। सवाल इस बात का है कि जिस खाकी के कंधों पर पूरे समाज की सुरक्षा का दायित्व होता है जिस खाकी के उपर बिना किसी भेदभाव के सभी धर्मो का सम्मान करने की जिम्मेदारी होती है। क्या उस खाकी वर्दी को पहने डिप्टी एसपी स्तर के अधिकारी का समाज को बांटने वाला और माहौल को खराब करने वाला बयान देना उचित है क्या!