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Supreme Court : पत्नी की हत्या के दोषी को 12 साल जेल में बिताने के बाद क्यों किया बरी

सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी की हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा काट रहे व्यक्ति को बरी कर दिया। कोर्ट ने पाया कि मृतक के बयान में विरोधाभास था और आरोपी के खिलाफ कोई अन्य ठोस सबूत नहीं था।

SYED BUSHRA by SYED BUSHRA
March 12, 2025
in राष्ट्रीय
Supreme Court acquittal case
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 Supreme Court acquittal case सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि मरने से पहले दिए गए बयान में विरोधाभास हो या उस पर संदेह किया जाए, तो अदालत को अन्य साक्ष्यों पर भी विचार करना चाहिए। यह तय करना जरूरी है कि मृतक के किस बयान को सही माना जाए। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में अतिरिक्त सतर्कता बरतने की जरूरत होती है, क्योंकि किसी को गलत तरीके से दोषी ठहराना न्याय नहीं होगा।

आरोपी के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिला

सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस एहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने पाया कि मृतक ने अपने दो अलग-अलग बयान दिए थे, जिनमें काफी अंतर था। एक बयान न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने दिया गया था, जिसे ही सबसे महत्वपूर्ण साक्ष्य माना गया और उसी आधार पर आरोपी को दोषी करार दिया गया। लेकिन कोर्ट ने कहा कि अगर आखिरी बयान में विरोधाभास हो और अन्य सबूत न हों, तो सिर्फ इस आधार पर किसी को सजा नहीं दी जा सकती।

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क्या कहता है कानून

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कानून के तहत मृतक का बयान एक महत्वपूर्ण साक्ष्य होता है और कई मामलों में इसे ही आधार बनाकर दोषी ठहराया जाता है। लेकिन यह भी जरूरी है कि बयान को सही तरीके से जांचा जाए। यदि बयान में गंभीर विरोधाभास हो, तो इसे पूरी तरह से विश्वसनीय नहीं माना जा सकता।

मामले की मुख्य बातें

मृतक ने अपने पहले बयान में कहा था कि खाना बनाते समय आग लग गई और उसने अपने पति पर कोई आरोप नहीं लगाया था।

बाद में मजिस्ट्रेट को दिए गए बयान में उसने कहा कि पति ने उस पर केरोसिन डालकर आग लगाई।

गवाहों की जांच में पता चला कि जब मृतक को अस्पताल लाया गया, तो उसके शरीर से केरोसिन की गंध नहीं आ रही थी।

इन तथ्यों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस केस में आरोपी के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं था, और मृतक के बयानों में विरोधाभास था। इसलिए सिर्फ बयान के आधार पर सजा नहीं दी जा सकती। कोर्ट का यह फैसला बताता है कि कानूनी प्रक्रिया में निष्पक्षता जरूरी है और बिना ठोस सबूत के किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

Tags: legal justicepreme Court verdict
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