S-500 प्रोमेथियस: क्या है यह प्रणाली?
S-500, जिसे 55R6M “ट्रायम्फेटर-एम” भी कहा जाता है, एक नई पीढ़ी की रूसी सतह से हवा में मार करने वाली और एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल प्रणाली है। इसे अल्माज़-एंटे एयर डिफेंस कंसर्न ने विकसित किया है, और इसका उद्देश्य S-400 और A-235 ABM जैसी प्रणालियों का पूरक बनना है।
मुख्य विशेषताएँ:
- रेंज:
- एंटी-बैलिस्टिक संचालन: 600 किमी
- वायु रक्षा: 500 किमी
- लक्ष्य गति: 7 किमी/सेकंड तक
- लक्ष्य संख्या: एक साथ 10 हाइपरसोनिक लक्ष्यों को भेदने की क्षमता
- लक्ष्य प्रकार:
- हाइपरसोनिक विमान और मिसाइलें
- लो-अर्थ ऑर्बिट (LEO) सैटेलाइट
- स्पेस-वेपन और UAV
तैनाती और परीक्षण:
पहली बार 13 अक्टूबर 2021 को मास्को में युद्ध ड्यूटी पर लगाया गया था। जून 2024 में यूक्रेन ने दावा किया कि S-500 को क्रीमिया में केर्च ब्रिज की रक्षा के लिए तैनात किया गया था। मई 2018 में सबसे लंबी दूरी का परीक्षण सफल रहा।
S-500 बनाम S-400: एक गहन तुलना
विशेषता | S-500 प्रोमेथियस | S-400 ट्रायम्फ |
---|---|---|
रेंज (वायु रक्षा) | 500 किमी | 400 किमी |
ABM रेंज | 600 किमी | सीमित |
हाइपरसोनिक रक्षा | सक्षम | सीमित |
लक्ष्य गति | 7 किमी/सेकंड | 4.8 किमी/सेकंड |
लक्ष्य प्रकार | सैटेलाइट, स्पेस हथियार, हाइपरसोनिक मिसाइल | विमान, क्रूज मिसाइलें |
एक साथ लक्ष्य | 10 तक | 6–8 अनुमानित |
लागत | $700M–$2.5B | लगभग $400M–$600M |
तैनाती | सीमित (रूस, संभावित भारत) | रूस, भारत, चीन, तुर्की आदि |
S-400 प्रणाली भारत में पहले ही सेवा में है, और इसकी डिलीवरी 2021 में शुरू हो गई थी। लेकिन S-500 के साथ, भारत को हाइपरसोनिक और स्पेस-आधारित खतरों के खिलाफ उच्च सुरक्षा प्राप्त हो सकती है।
वैश्विक तुलना: अन्य प्रमुख वायु रक्षा प्रणालियाँ
देश | प्रणाली | रेंज | हाइपरसोनिक रक्षा | विशेषता |
---|---|---|---|---|
अमेरिका | THAAD | 200 किमी | नहीं | टर्मिनल फेज बैलिस्टिक रक्षा |
चीन | HQ-19 | अनुमानित 300–400 किमी | सीमित जानकारी | ABM पर केंद्रित |
इज़राइल | Arrow-3 | 2,400 किमी | नहीं | एक्सो-एटमॉस्फेरिक इंटरसेप्टर |
इनमें से केवल S-500 ही व्यापक हाइपरसोनिक रक्षा, स्पेस-वेपन इंटरसेप्शन और मल्टी-टारगेट एंगेजमेंट जैसी क्षमताएं प्रदान करता है, जो इसे आज की सबसे उन्नत वायु रक्षा प्रणालियों में शामिल करता है।
भारत-रूस प्रस्ताव: रणनीतिक महत्व
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा के दौरान, रूस ने S-500 के संयुक्त उत्पादन का प्रस्ताव दिया। यह प्रस्ताव ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल परियोजना की सफलता की याद दिलाता है, जो भारत-रूस रक्षा सहयोग की मिसाल बनी।
संभावित लाभ:
- भारत की रक्षा तकनीक में आत्मनिर्भरता
- उन्नत रक्षा निर्यात क्षमता
- उच्च तकनीक हस्तांतरण
- क्षेत्रीय सैन्य संतुलन में बदलाव
चुनौतियाँ:
- उच्च लागत ($2.5B प्रति प्रणाली तक)
- रूस पर प्रतिबंधों के कारण आपूर्ति में बाधा
- भारत की रक्षा बजट प्राथमिकताओं में समायोजन
S-500 प्रोमेथियस एक रणनीतिक “गेम-चेंजर” है, जो हाइपरसोनिक युग के खतरे को रोकने में सक्षम है। रूस द्वारा भारत को इसके संयुक्त उत्पादन का प्रस्ताव, दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग के नए आयाम खोल सकता है। यदि यह प्रस्ताव व्यवहार में आता है, तो भारत भविष्य की युद्ध चुनौतियों का सामना और मजबूती से कर सकेगा। अब यह देखना शेष है कि आने वाले महीनों में यह प्रस्ताव किन दिशा में बढ़ता है और कैसे यह वैश्विक शक्ति संतुलन को प्रभावित करता है।