Solah Shringar done before the funeral of a married woman : हिंदू धर्म में इंसान के जन्म से लेकर मृत्यु तक कुल 16 संस्कार बताए गए हैं। इनमें अंतिम संस्कार आखिरी और सबसे भावनात्मक संस्कार माना जाता है। खास बात ये है कि हर इंसान का अंतिम संस्कार एक जैसा नहीं होता। जैसे अगर किसी बच्चे की मौत हो जाए, तो उसका दाह संस्कार न करके उसे दफनाया जाता है। वहीं अगर किसी की असमय मौत हो जाए, तो आत्मा की शांति के लिए अलग से धार्मिक कर्मकांड किए जाते हैं। लेकिन जब किसी विवाहित महिला की मृत्यु होती है, तो उसकी अंतिम यात्रा से पहले उसे पूरे 16 श्रृंगारों से सजाया जाता है। यह एक पारंपरिक रिवाज है, जो कई वर्षों से निभाया जा रहा है।
क्यों किया जाता है सुहागिन महिला का सोलह श्रृंगार?
इस परंपरा की शुरुआत की बात करें, तो यह मान्यता रामायण काल से जुड़ी है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, जब माता सीता का विवाह हो रहा था, तब उनकी मां सुनैना ने उन्हें सोलह श्रृंगार का महत्व समझाया था। तभी से यह रिवाज प्रचलन में आया।
विवाहित महिला को सुहागिन कहा जाता है, और अगर उसकी मृत्यु शादीशुदा अवस्था में होती है, तो यह माना जाता है कि उसे उसी तरह विदा किया जाना चाहिए जैसे एक बेटी को विवाह के बाद ससुराल भेजा जाता है। सजाकर, संवारकर।
इसके पीछे की मान्यताएं
पुनर्जन्म में सौभाग्य: मान्यता है कि अगर किसी सुहागिन महिला को सोलह श्रृंगार के साथ अंतिम विदाई दी जाती है, तो अगले जन्म में उसे फिर से सौभाग्य और अच्छा जीवनसाथी प्राप्त होता है।
पारंपरिक महत्व: यह एक सदियों पुरानी परंपरा है, जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी निभाया जाता रहा है। यह सिर्फ एक रिवाज नहीं, बल्कि भावनात्मक सम्मान भी है।
सम्मान की भावना: श्रृंगार कर महिला को सम्मान देना और उसे सुंदरता और गरिमा के साथ विदा करना भारतीय संस्कृति का हिस्सा है।
सुहागिन महिला का अंतिम संस्कार सिर्फ एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि एक भावुक और सम्मानजनक विदाई होती है। यह परंपरा न सिर्फ मान्यताओं से जुड़ी है, बल्कि एक स्त्री के जीवन के हर रूप को सम्मान देने की सोच को भी दर्शाती है।
डिस्क्लेमर: यह लेख धार्मिक मान्यताओं और पारंपरिक विश्वासों पर आधारित है। News1India इसकी सत्यता या वैज्ञानिक पुष्टि का दावा नहीं करता। पाठक अपनी समझ अनुसार विचार करें।