Legendary Bollywood choreographer Saroj Khan : जब भी बॉलीवुड में कोरियोग्राफर की बात होती है, तो सबसे पहले नाम आता है सरोज खान का। 3 जुलाई 2020 को 71 साल की उम्र में हार्ट अटैक से उनका निधन हुआ, लेकिन उनका जज़्बा, मेहनत और डांस आज भी लोगों के दिलों में ज़िंदा है। उन्होंने ज़िंदगी भर नाचते हुए, डांस को अपनी पहचान बना लिया।
असली नाम और शुरूआत की कहानी
सरोज खान का जन्म निर्मला नागपाल नाम से हुआ था। महज़ 3 साल की उम्र में उन्होंने फिल्म ‘नज़राना’ में एक बाल कलाकार के रूप में काम किया। धीरे-धीरे उनका मन डांस की ओर खिंचने लगा। शुरुआत में वो बैकग्राउंड डांसर रहीं और फिर 13 साल की उम्र में कोरियोग्राफी सीखनी शुरू की। उन्होंने मशहूर डांस मास्टर बी. सोहनलाल के साथ बतौर असिस्टेंट काम किया।
इंडिपेंडेंट कोरियोग्राफर बनने की राह
सरोज खान को पहला बड़ा मौका फिल्म ‘गीता मेरा नाम’ में इंडिपेंडेंट कोरियोग्राफर के रूप में मिला। लेकिन असली पहचान मिली 1986 की फिल्म ‘नगीना’ के गाने ‘मैं तेरी दुश्मन’ से। इसके बाद ‘मिस्टर इंडिया’ का ‘हवा हवाई’ और फिर 1988 की सुपरहिट फिल्म ‘तेजाब’ का गाना ‘एक दो तीन’ ने उन्हें कोरियोग्राफी की दुनिया में सुपरस्टार बना दिया।
गानों को बनाया यादगार
सरोज खान ने करीब 2,000 से ज्यादा गानों को कोरियोग्राफ किया। उनके हिट गानों में ‘चोली के पीछे’, ‘धक-धक करने लगा’, ‘डोला रे डोला’, ‘निंबूड़ा’, और ‘हमको आजकल है इंतज़ार’ जैसे गाने शामिल हैं। उन्होंने वैजयंतीमाला से लेकर करीना कपूर तक, लगभग हर मशहूर अभिनेत्री को डांस सिखाया।
भारतीय डांस को दी पहचान
सरोज खान सिर्फ स्टेप्स नहीं सिखाती थीं, वो भावनाएं सिखाती थीं। उनके मुताबिक, डांस आंखों और चेहरे से होना चाहिए, जिससे कहानी ज़ाहिर हो। उन्होंने इंडियन फोक और क्लासिकल डांस को फिल्मों में नई पहचान दी। उनका स्टाइल एकदम अलग था। सादा, भावुक और अनुशासित।
सख्त लेकिन ममतामयी
बॉस्को मार्टिस जैसे नए कोरियोग्राफर भी उनके गुस्से से डरते थे, क्योंकि वो भारतीय डांस की परंपरा की रक्षक थीं। लेकिन जब पास से जानते थे, तो महसूस करते कि वो उतनी ही स्नेही भी थीं। बॉस्को ने बताया कि उन्होंने सरोज जी से आशीर्वाद भी पाया और एक बार उनके डांस की तारीफ में उन्होंने उन्हें 100 रुपये का इनाम भी दिया था।
सम्मान और अवॉर्ड
सरोज खान को 3 बार नेशनल अवॉर्ड और 8 फिल्मफेयर अवॉर्ड मिले। उन्होंने टीवी शोज़ में भी जज बनकर उभरते कलाकारों को प्रोत्साहित किया। उन्होंने कोरियोग्राफी को सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि एक कला का दर्जा दिलाया।