Thackeray Brothers Together Again: मुंबई के वर्ली डोम में शनिवार को महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा दृश्य देखने को मिला। करीब 20 साल बाद मनसे प्रमुख राज ठाकरे और शिवसेना (उद्धव गुट) के नेता उद्धव ठाकरे ने एक ही राजनीतिक मंच साझा किया। यह मौका था हिंदी अनिवार्यता के विरोध में आयोजित ‘विजय रैली’ का। इस रैली में राज ठाकरे ने राज्य सरकार द्वारा लागू किए गए त्रिभाषा फॉर्मूला पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि यह फॉर्मूला दरअसल मुंबई को महाराष्ट्र से अलग करने की योजना का हिस्सा था। उन्होंने अपने चचेरे भाई उद्धव ठाकरे की मौजूदगी में कहा कि मराठी लोगों की एकता ने सरकार को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया।
राज ठाकरे ने सोशल मीडिया पर मांगी माफी
रैली खत्म होने के बाद राज ठाकरे ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट कर उन लोगों से माफी मांगी, जिनका नाम वे मंच से नहीं ले पाए। उन्होंने अपने संदेश में लिखा।
“हिंदी अनिवार्यता के खिलाफ मराठी लोगों ने जो एकजुट होकर सरकार को झुका दिया, वो काबिल-ए-तारीफ है। इस विजय सभा में मैं कुछ महत्वपूर्ण लोगों का जिक्र नहीं कर पाया, इसके लिए माफ़ी चाहता हूं। मैं मराठी चैनलों, अखबारों, सामाजिक संगठनों, दबाव समूहों और कलाकारों का दिल से शुक्रिया अदा करता हूं, जिन्होंने मराठी पहचान के लिए आवाज़ उठाई। हमारी ये एकता ऐसे ही बनी रहे।”
क्या बोले राज ठाकरे और कुमार विश्वास?
रैली के दौरान राज ठाकरे ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने जो काम कर दिया, वो शायद बालासाहेब ठाकरे भी नहीं कर पाए। उन्होंने कहा कि सरकार की नीयत मुंबई को महाराष्ट्र से अलग करने की थी, लेकिन मराठी जनता की एकता के चलते उन्हें पीछे हटना पड़ा।
उधर, कवि और नेता कुमार विश्वास ने भी इस एकता पर चुटकी लेते हुए कहा “जो काम सियासत और विरासत नहीं कर सकी, वो वक्त ने कर दिखाया।”
BJP ने बताया चुनावी ड्रामा
इस रैली के तुरंत बाद बीजेपी नेता आशीष शेलार ने ठाकरे भाइयों पर तंज कसते हुए कहा कि ये कोई भाषाई आंदोलन नहीं बल्कि चुनाव जीतने की चाल है। उन्होंने ट्वीट कर कहा, “भाषा की आड़ में चुनावी खेल खेला जा रहा है। भाजपा से डर कर अब ये दोनों भाई भाई बन गए हैं।”
शेलार ने यह भी कहा कि ये लड़ाई मराठी भाषा के लिए नहीं बल्कि आगामी महानगरपालिका चुनावों में सत्ता हासिल करने के लिए है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह सब सत्ता पाने की हड़बड़ी है, न कि जनता की भावनाओं के लिए।