नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। पहाड़ों पर बसा नेपाल बीते तीन दिनों से जल रहा है। सुंदर पहाड़ियों से बर्फीली हवा के बजाए अंगारे बरस रहे हैं। पर्यटन की धरती में पर्यटकों के बजाए नेपाली यूथ नजर आ रहे हैं। सड़कों पर सेना का ढेरा है तो सरकारी इमारतों पर विद्रोहियों का कब्जा। मारकाट की तस्वीरें अब भी काठमांडु से सामने आ रही हैं। यूथ किसी भी कीमत पर पीछे हटने को तैयार नहीं। स्टूडेंट्स की लॉबी हरहाल में कम्युनिस्टों को देश से बेदखल करने पर तुली है। उग्र लड़के-लड़कियां अपने करीबी को नेपाल के पीएम की कुर्सी पर बैठाने पर तुले हैं। अंदरखाने सेना से चर्चाओं का दौर भी शुरू हो गया है। ऐसी खबरें आ रही हैं कि काडमांडु के मेयर बालेंद्र शाह ही नेपालियों के अगले बॉस हो सकते हैं। सत्ता परिवर्तन के बीच हम आपको उस किरदार के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने ओली की कुर्सी छीनी। ओली को देश छोड़ने पर मजबूर किया। नेपाल में डॉलर के जरिए आग लगाई। पूरा पैटर्न अफगानिस्तान, श्रीलंका, पाकिस्तान और बांग्लादेश की तरह रचा गया। भारत के पांचों पड़ोसी देशों में तख्तापटल की कहानी सेम दिखी।
भारत के पड़ोसी देश बीते चार-पांच से अस्थिर बने हुए हैं। भारत के पड़ोसी देशों में सरकार के खिलाफ विद्रोह का पैटर्न एक जैसा है। सभी विद्रोह में युवाओं ने अहम रोल निभाया। विद्रोह के बाद सभी देशों में सेना का किरदार भी एक जैसा दिखा। शांति के बाद सेना के रहमोकरम पर इन देशों में सरकार का गठन हुआ और दूर से बैठा एक व्यक्ति पूरी सरकार को कंट्रोल करता हुआ पाया गया। तख्तापलट की शुरूआत सबे पहले अफगानिस्तान में हुई। यहां चुने हुए राष्ट्रपति को प्लेन के जरिए फरार होना पड़ा। अमेरिका के रहमोकरम पर तालिबान ने काबूल की कुर्सी पर कब्जा जमाया। कुछ ऐसा ही नाजारा श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अब नेपाल में भी देखने को मिला। यहां भी चार देशों की तरफ ही सत्ता परिवर्तन के लिए देशव्यापी प्रदर्शन हुआ। सोशल मीडिया बैन के खिलाफ शुरू हुए प्रोटेस्ट के बाद प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को पद से इस्तीफा देना पड़ा। प्रदर्शनकारियों ने नेपाल की संसद से लेकर सुप्रीम कोर्ट पर कब्जा कर लिया है और कई मंत्रियों के घरों पर आगजनी की गई है। पीएम ओली के इस्तीफे के बाद भी लोगों का गुस्सा शांत नहीं हो रहा है। यहां तक कि राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल के निजी आवास पर भी प्रदर्शनकारियों ने कब्जा कर लिया गया है।
दरअसल, नेपाल में सोशल मीडिया बैन, भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के विरोध में सोमवार को शुरू हुए प्रदर्शन के 30 घंटे के भीतर ही प्रधानमंत्री को अपना पद छोड़ना पड़ा है। लेकिन ऐसे ही हालात कुछ साल पहले भारत के अन्य पड़ोसी देशों में भी पनपे थे, जब सत्ता पर आसीन लोगों को जनाक्रोश के सामने सरेंडर करना पड़ा था। नेपाल जैसे हालात साल 2021 में अफगानिस्तान में भी पनपे थे। 2001 में अमेरिका के नेतृत्व में तालिबान को सत्ता से हटाया गया था और अशरफ गनी की सरकार बनी थी। लेकिन 20 साल के संघर्ष के बाद 2020 में अमेरिका-तालिबान समझौते के तहत विदेशी सेना की वापसी तय हुई। दूसरी तरफ तालिबान ने अपनी सैन्य ताकत बढ़ाई और अप्रैल 2021 आते-आते अफगानिस्तान में हमले तेज कर दिए। अगस्त 2021 में तालिबान ने अफगानिस्तान के प्रमुख शहरों को कब्जे में ले लिया। इसके बाद 15 अगस्त 2021 को तालिबान ने काबुल की तरफ कूच किया। जान बचाने के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर भाग गए और तालिबान ने राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया। अमेरिकी दूतावास से हेलीकॉप्टरों की मदद से लोगों को निकाला गया और इस दौरान काबुल एयरपोर्ट पर भगदड़ मच गई, जिसमें 170 से ज्यादा लोग मारे गए थे।
अफगानिस्तान में विद्रोह के एक साल बाद यानी साल 2022 तक श्रीलंका में आर्थिक संकट गंभीर हो गया। इसके विरोध में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन शुरू हो गए और धीरे-धीरे एक जनआंदोलन खड़ा हो गया। सड़कों पर आगजनी, राष्ट्रपति आवास, संसद सभी जगहों पर प्रदर्शनकारियों का कब्जा हो गया। यहां तक कि राष्ट्रपति भवन के पूल में प्रदर्शनकारियों के स्वीमिंग करते वीडियो भी सामने आए। राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को आधी रात में देश छोड़कर मालदीव भागना पड़ा। वहीं बांग्लादेश में पिछले साल यानी 2024 में छात्र आंदोलन की वजह से शेख हसीना सरकार गिर गई। बांग्लादेश में 2024 के छात्र आंदोलन को ’दूसरा स्वतंत्रता संग्राम’ तक कहा गया। इसमें सेना की भूमिका अहम थी और इसी वजह से हसीना सरकार का तख्तापलट हुआ। शेख हसीना की अवामी लीग सरकार 2009 से सत्ता में थी, लेकिन भ्रष्टाचार, मानवाधिकार उल्लंघन और आरक्षण नीति पर असंतोष को लेकर छात्रों का गुस्सा फूट पड़ा। जुलाई-अगस्त में प्रदर्शन ज्यादा हिंसक हो गए और सरकार ने गोलीबारी के आदेश दे दिए। इस फायरिंग में 300 से ज्यादा लोगों की मौत हुई। पांच अगस्त 2024 को शेख हसीना को पीएम पद से इस्तीफा देकर भारत आना पड़ा। सेना प्रमुख जनरल वाकर-उज-जमान ने अंतरिम सरकार का ऐलान किया। नोबेल विजेता मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का मुख्य सलाहकार बनाया गया।
इसी तरह पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी लगातार राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई है। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को अविश्वास प्रस्ताव के ज़रिए सत्ता से हटाने के बाद शुरू हुआ आंदोलन अब भी जारी है। पाकिस्तान में लगातार इमरान समर्थकों की तरफ विरोध प्रदर्शन, रैलियां और जनसभाएं आयोजित की जा रही हैं। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) जैसे गुटे ने उत्तर-पश्चिम पाकिस्तान और बलूचिस्तान में हमले तेज़ कर दिए हैं, अक्सर ड्रोन हमले किए जाते हैं। उधर, बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) जैसे अलगाववादी गुट भी पाकिस्तान की शहबाज सरकार के लिए ख़तरा बना हुआ है, जिसने बलूचिस्तान को आजाद मुल्क घोषित कर दिया है। मालदीव में भी नवंबर 2023 में मोहम्मद मुइज़्ज़ू के राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद राजनीतिक माहौल बदल गया है। उन्होंने ’भारत विरोधी’ रुख़ सहित राष्ट्रवादी वादों पर चुनाव प्रचार किया और पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन को दरकिनार कर दिया, जिन्होंने पीपुल्स नेशनल फ्रंट नाम से एक नई पार्टी बनाई। मुइज़्ज़ू की नीतियों, जिनमें चीन के साथ मजबूत संबंध भी शामिल हैं, ने भारत के साथ संबंधों को तनावपूर्ण बना दिया है। घरेलू स्तर पर, उनकी सरकार अपनी पिछली सरकार की तुलना में ज्यादा रूढ़िवादी है। इसी तरह म्यांमार में भी लोकतंत्र समर्थक नेता आंग सान सू की को सेना ने जबरन साल 2021 में सत्ता से बेदखल कर दिया था।
सेना को अंदाजा भी नहीं था कि इस सैन्य तख्तापलट के खिलाफ जनता बड़ी तादाद में सड़कों पर उतर आएगी। लोकतंत्र समर्थक लाखों लोगों ने म्यांमार में प्रदर्शन किए तो जवाब में सेना ने जनसंहार शुरू कर दिया। विरोध करने वालों को गोलियों से भून दिया गया। इसी वजह से आम जनता ने भी सेना का मुकाबले करने के लिए हथियार उठा लिए और संघर्ष शुरू कर दिया। म्यांमार में आज कई ऐसे छोटे-बड़े गुट हैं, जो जंगलों में रहकर सेना के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं। इन विद्रोहियों को खत्म करने के लिए सेना देश के किसी भी हिस्से में कभी भी एयर स्ट्राइक कर देती है। इन्हीं देशों की तरह ही नेपाल भी जला। ओली सरकार का विद्रोहियों ने तख्तापलट कर दिया। जानकार बताते हैं कि भारत के पड़ोसी देशों में अमेरिका की डीप स्टेट का अहम रोल है। वह भारत को स्तिर करने के चलते पड़ोसी देशों में सरकारों को गिरा रहा है। पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश में अमेरिका की डीप स्टेट का हाथ सामने आ चुका है। म्यामार में भी अमेरिका की सीआईए का दखल है। जानकार बताते हैं कि डीप स्टेट ने नेपाल में फंडिंग की। सोशल मीडिया के जरिए पूरे आंदोलन का खड़ा किया। इस आंदोलन में नेपाल के कुछ नेता भी शामिल हैं। जानकार बताते हैं कि नेपाल में हुए आंदोलन में बांग्लादेश की तरह यहां भी सेना ने सरेंडर कर दिया। जानकार बताते हैं कि कहीं न कहीं सेना भी किसी के इशारे पर काम कर रही है।
जानकार बताते हैं कि करीब 6,301 करोड़ डॉलर के बजट वाली अमेरिकी सरकार की कथित विकास एजेंसी- यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएड) का प्रमुख काम दूसरे देशों से कूटनीतिक जुड़ाव के लिए मदद करना है। इतिहास इस बात गवाह है कि जिस भी देश में यूएसएड की तरफ से मदद जाती है, वहां राजनीतिक अस्थिरता पैदा होती है। विशेषज्ञों के मुताबिक, इसका काम अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के साथ मिलकर अमेरिकी हितों की रक्षा के लिए विदेशों में अपने लिए मोहरे तैयार करना रहता है। बांग्लादेश के मामले में यूएसएड ने बार्क और जमात-ए-इस्लमी को अपना जरिया बनाया है। जानकार बताते हैं कि बार्क को अमेरिका से करीब 20 करोड़ डॉलर की मदद मिली थी, जो आगे बढ़कर 100 करोड़ डॉलर तक पहुंच गई थी। भू-राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि जब बात अमेरिका के निजी हितों की आती है, तो वह किसी भी रणनीतिक साझेदार या सहयोगी की परवाह नहीं करता है। अतीत में अनेक बार ऐसा हो चुका है। मौजूदा परिस्थितियों में अमेरिका के लिए चीन के खिलाफ भारत के मजबूत कंधों की जरूरत है, लेकिन अमेरिका यह कभी नहीं चाहता है कि भारत की भुजाएं इतनी ताकतवर हो जाएं कि अमेरिका उन्हें मरोड़ न पाए। यही वजह है कि अमेरिका बांग्लादेश में भारत के रणनीतिक हितों को कुचलते पाकिस्तान जैसी राजनीतिक व्यवस्था को मंजूरी दे सकता है, जहां अमेरिका के साथ चीन भी मजबूत स्थिति में है और भारत के साथ संबंधों में तनाव रहे।