Delhi High Court ने कहा: “छुट्टी (फर्लो) मांगने का अधिकार पूर्ण नहीं, केवल कानूनी शर्तों के अधीन”
दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को यह स्पष्ट किया कि जेल यात्री को छुट्टी (फर्लो) मांगने का अधिकार एक पूर्ण और स्वचालित अधिकार नहीं है बल्कि यह उन कानूनी प्रावधानों तथा नियमों के अधीन है, जो Delhi Prisons Act, 2000 व Delhi Prisons Rules, 2018 में निहित हैं।
मामले में एक दंडित व्यक्ति ने अपनी अपील खारिज होने के बाद फर्लो की अनुमति मांगी थी, लेकिन जेल प्रशासन ने नियमों के आधार पर उसे अस्वीकार कर दिया। उच्च न्यायालय ने इस निर्णय को वैध माना और कहा कि ऐसे मामलों में कैदियों को नियमों के अनुसार ही फर्लो की अनुमति दी जा सकती है।
मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला ने दीपक श्रीवास्तव की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया। श्रीवास्तव को दहेज हत्या और अपनी पत्नी के प्रति क्रूरता का दोषी ठहराया गया था और दिसंबर 2003 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
फरवरी 2006 में उनकी अपील लंबित रहने के दौरान उच्च न्यायालय ने उनकी सज़ा निलंबित कर दी थी, लेकिन अगस्त 2017 में उनकी दोषसिद्धि बरकरार रखी गई। इसके बाद श्रीवास्तव ने सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया, जिसने उन्हें अपील की अवधि के लिए ज़मानत दे दी। अक्टूबर 2024 में, सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी दोषसिद्धि बरकरार रखी, लेकिन उनकी सज़ा को आजीवन कारावास से घटाकर 10 साल कर दिया, और उन्हें तीन हफ़्तों के भीतर आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया, जो उन्होंने 13 नवंबर, 2024 को किया।
इसके बाद, श्रीवास्तव ने दिसंबर 2024 में फर्लो के लिए आवेदन किया, यह दावा करते हुए कि वह पहले ही सात साल की कैद काट चुके हैं। हालाँकि, महानिदेशक (कारागार) ने 23 जुलाई, 2025 को 2019 के स्थायी आदेश का हवाला देते हुए उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया। जेल अधिकारियों ने कहा कि श्रीवास्तव 13 नवंबर के बाद ही फर्लो के लिए आवेदन कर सकते हैं।









