Azam Khan News: रामपुर की एक अदालत ने समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आजम खान और उनके बेटे, पूर्व विधायक अब्दुल्ला आजम को दो पैन कार्ड के इस्तेमाल से जुड़े एक महत्वपूर्ण धोखाधड़ी मामले में सात-सात साल की सजा सुनाकर उत्तर प्रदेश की राजनीति में हलचल मचा दी है। यह फैसला आजम खान के खिलाफ दर्ज 104 मुकदमों की लंबी फेहरिस्त में से एक है, जिसमें अदालत ने अब तक 11 मामलों में निर्णय सुनाया है, जिनमें से यह उनका सातवाँ दोषसिद्धि है।
इस मामले में दोषी ठहराए जाने के तुरंत बाद, रामपुर पुलिस ने पिता-पुत्र दोनों नेताओं को अपनी हिरासत में ले लिया। अदालत ने सजा के साथ ही दोनों पर 50,000-50,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया है। यह मुकदमा भाजपा विधायक आकाश सक्सेना द्वारा दर्ज कराया गया था, जो फैसले के समय खुद कोर्ट में मौजूद थे। इस हाई-प्रोफाइल मामले के कारण कचहरी परिसर में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे, और बड़ी संख्या में सपा और भाजपा कार्यकर्ताओं की भीड़ जमा थी।
धोखाधड़ी के आरोप और कोर्ट का फैसला
यह मामला मुख्य रूप से अब्दुल्ला आजम पर फर्जीवाड़ा करने के आरोप से संबंधित है। अब्दुल्ला आजम पर आरोप है कि उन्होंने चुनाव लड़ने की न्यूनतम आयु पूरी न होने के बावजूद विधायक बनने के लिए अपनी उम्र को अधिक दिखाने के इरादे से दूसरा पैन कार्ड बनवाया। इस कृत्य को Azam Khan द्वारा बढ़ावा देने और इसमें साजिश रचने का आरोप लगा।
फैसले की घोषणा के दौरान कचहरी परिसर को एक किले में तब्दील कर दिया गया था। किसी भी संभावित अप्रिय घटना को रोकने के लिए सुरक्षाकर्मियों की भारी तैनाती की गई थी। वादी, भाजपा विधायक आकाश सक्सेना, की उपस्थिति ने इस कानूनी लड़ाई की गंभीरता को उजागर किया।
कानूनी पृष्ठभूमि और पूर्व के मामले
यह दोषसिद्धि Azam Khan के कानूनी संघर्षों की श्रृंखला का एक हिस्सा है। उनके खिलाफ दर्ज 104 मुकदमों में से, यह अदालत द्वारा फैसला सुनाया गया 11वाँ मामला है। इन फैसलों में से, उन्हें अब तक सात मामलों में सजा मिल चुकी है, जबकि पांच अन्य मामलों में उन्हें बरी कर दिया गया है।
गौरतलब है कि पिछले साल दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट ने अब्दुल्ला आजम की उस याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें उन्होंने पासपोर्ट बनवाने के लिए फर्जी दस्तावेज इस्तेमाल करने और दो पैन कार्ड रखने के आरोप में दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने तब कहा था कि एफआईआर रद्द करने का कोई वाजिब कारण दिखाई नहीं देता। अदालत के ताजा फैसले ने अब इस कानूनी लड़ाई पर अंतिम मुहर लगा दी है, जिससे सपा के इन दोनों नेताओं की राजनीतिक मुश्किलें और बढ़ गई हैं।










