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Abortion Act : बिना शादी के गर्भपात करवाने को कोर्ट ने दी मंजूरी, जानें क्या..

Abortion Act : बिना शादी के गर्भपात करवाने को कोर्ट ने दी मंजूरी, जानें क्या कहता है कानून?

शादी से पहले अगर कोई लड़की प्रेगनेंट हो जाये तो उस से कितना कुछ सहना पड़ता हैं। फिर कोई भी लड़की एबॉर्शन करवाने का सोचती हैं। अगर कानूनी तौर से देखे तो कोई भी अविवाहित गर्भवती लड़की केवल 20 हफ्ते तक ही गर्भपात करवा सकती हैं. और विवाहित 24 हफ्तों तक एबॉर्शन करवा सकती हैं. पर अगर अविवाहित लड़की का गर्भ 20 हफ्तों से ज्यादा हो जाये तो वो क्या करेगी? क्योकि कानून तो उसे गर्भपात करने की इज़ाज़त नहीं देता।

अविवाहित 24 हफ्तों तक एबॉर्शन करवा सकती हैं

ऐसा ही एक मामला हाल ही में सामने आया हैं।जिसमे 25 साल की एक महिला को प्रेग्नेंसी के 24वें हफ्ते में अबॉर्शन करवाने की मंजूरी मिल गई है.इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने महिला के अबॉर्शन कराने की अर्जी को खारिज कर दिया था.भारत में अबॉर्शन यानी गर्भपात को ‘कानूनी मान्यता’ मिली हुई है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि इसकी छूट मिल गई है. आज भी भारत में अबॉर्शन को लेकर ‘मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ .प्रेग्नेंसी एक्ट’ है, जो 1971 से लागू है. इसमें 2021 में संशोधन हुआ था.

युवती ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका डाली

चलो तो आपको बताते हैं शुरू से कि कहानी हैं क्या। ये मामला 15 जुलाई 2022 को शुरू हुआ, जब मणिपुर की एक 25 वर्षीय युवती ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका डाली। साथ ही 24 हफ्ते पूरे होने से पहले गर्भपात की अनुमति कोर्ट से मांगी। युवती ने कोर्ट को बताया कि उनके पार्टनर ने प्रेग्नेंसी के बाद शादी करने से इनकार कर दिया। शुरू में वो इस बच्चे का गर्भपात नहीं करवाना चाहती थीं, लेकिन बाद में सामाजिक और अन्य पहलुओं को देखते हुए उसे ये फैसला लेने को मजबूर होना पड़ा।

सुप्रीम कोर्ट पहुंची.

क्योंकि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स 2003 के अनुसार वो अबॉर्शन नहीं करवा सकती. फिर इस पर हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि अबॉर्शन की अनुमति देना बच्चे की हत्या करने के बराबर हैं। लिहाजा कानून के तहत उसे अबॉर्शन कराने की अनुमति नहीं मिली। और जब हाईकोर्ट से याचिका खारिज हुई तो उस महिला ने हार नहीं मानी और बाद में वो सुप्रीम कोर्ट पहुंची.

भारत में अबॉर्शन को तीन कैटेगरी में बांटा

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उस महिला की बात पर गौर किया और कहा कि हाईकोर्ट ने गलत दृष्टिकोण अपनाया था. और महिला अविवाहित है इसलिए उसे अबॉर्शन कराने से नहीं रोका जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस फैसले में कहा और इस फैसले में ‘पति’ की जगह ‘पार्टनर’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है. ये इसलिए हुआ था ताकि ‘अविवाहित महिलाओं’ को भी इसके दायरे में लाया जा सके. इसके लिए कोर्ट ने भारत में अबॉर्शन को तीन कैटेगरी में बांटा –

प्रेग्नेंसी के 0 से 20 हफ्ते तक

अगर कोई महिला मां बनने के लिए मानसिक तौर से तैयार नहीं है या फिर कांट्रासेप्टिव मेथड या डिवाइस फेल हो गया हो और महिला न चाहते हुए भी गर्भवती हो जाए तो वो अबॉर्शन करवा सकती है. इसके लिए एक रजिस्टर्ड डॉक्टर का होना बेहद जरूरी है.

प्रेग्नेंसी के 20 से 24 हफ्ते तक

अगर मां या बच्चे के मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य को किसी भी तरह का खतरा है, तो इसके लिए महिला अबॉर्शन करवा सकती है. हालांकि ऐसे मामलों में दो डॉक्टरों का होना जरूरी है

प्रेग्नेंसी के 24 हफ्ते बाद

अगर महिला यौन उत्पीड़न या रेप का शिकार हुई हैं और वह इस वजह से प्रेग्नेंट हुई हो तो 24 हफ्ते बाद भी अबॉर्शन करवा सकती है.इसके अलावा अगर बच्चे के जिंदा रहने के चांस कम हैं या मां की जान को कोई खतरा हो या प्रेग्नेंसी के दौरान महिला का मेरिटल स्टेटस बदल जाए यानी उसका तलाक हो जाए या फिर विधवा हो जाए, तो भी अबॉर्शन करवा सकती है.

माता-पिता की अनुमति जरूरी होगी

इसके अलावा अगर प्रेग्नेंसी से गर्भवती की जान को खतरा है तो किसी भी स्टेज पर एक डॉक्टर की सलाह पर अबॉर्शन किया जा सकता है. लेकिन अबॉर्शन तभी होगा, जब महिला की लिखित अनुमति होगी. अगर कोई नाबालिग है या मानसिक रूप से बीमार है तो ऐसी स्थिति में माता-पिता की अनुमति जरूरी होगी.

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