उत्तराखंड के हल्द्वानी की वनभूलपुरा बस्ती चर्चा में है। जहां हाईकार्ट ने इसे रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण माना है। जहां एक तरफ प्रदेश में कड़ाके की ठंड के बीच रेलवे ने 50-60 हजार की आबादी को हटाने के लिए सात हजार पुलिसकर्मियों का इंतजाम किया गया है। वहीं रेलवे की तरफ से अतिक्रमण हटाने के लिए की जा रही कार्रवाई के खिलाफ स्थानीय कांग्रेस विधायक सुमित हृदयेश ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। जिसपर चीफ जस्टिस 5 जनवरी को सुनवाई करेंगे।
‘6 साल पहले जो जमीन राज्य सरकार की थी, वह रेलवे की कैसे हुई…’
बता दें कि 28 दिसंबर को प्रशासन और रेलवे ने अतिक्रमण हटाने के अभियान से पहले पिलर बंदी की गई। जिसके बाद हजारों महिला, बच्चे और बुजुर्ग विरोध में सड़कों पर उतर आए। पीड़ितों ने सरकार से कार्रवाई को रोककर हाई कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करने की मांग की थी। वहीं प्रदर्शन पीड़ितों ने सरकार को याद दिलाया 2016 में सरकार ने इस भूमि को नजूल की माना था। उनका कहना है कि 6 साल पहले जो जमीन राज्य सरकार के नियंत्रण में थी, वह अचानक रेलवे की कैसे हो गई।
जमीन को लेकर कहा से शुरू हुआ पूरा बखेड़ा
बड़ी बात तो ये है कि जिस जमीन को लेकर पूरा बखेड़ा हो गया है जिसे रेलवे अपनी बता रहा है और जिसे सरकार ने अतिक्रमण से मुक्त कराने के लिए पूरी तैयारी कर ली है। उसका मुद्दा तो रेलवे ने उठाया और न ही राज्य सरकार ने। यह पूरा बखेड़ा गौला नदी का पुल गिरने से खड़ा हुआ है। दरअसल समाजसेवी रविशंकर जोशी ने साल 2013 में नैनीताल हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की। उन्होंने आरोप लगाया था कि पुल के आसपास बस्तियां में रहने वाले लोग नदी में खनन करते हैं। पुल के पिलर्स के आसपास भी खनन किया गया है। जिस वजह से पुल गिर गया।

इस याचिका पर हाई कोर्ट ने रेलवे और प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया। रेलवे ने तब हलफनामा दिया कि गफूर और ढोलक बस्ती रेलवे की जमीन पर बसी हैं। विभाग ने तब कहा था कि कुल 29 एकड़ भूमि पर अवैध कब्जा है। वहीं सरकार ने दावा किया था कि यह जमीन नजूल की है इसपर राज्य सरकार इस का अधिकार है।
हाई कोर्ट ने 10 हफ्ते के भीतर अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया
जिसके चलते 9 नवंबर 2016 को हाई कोर्ट ने 10 हफ्ते के भीतर अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया। लेकिन कुछ लोग इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चले गए। शीर्ष अदालत ने अतिक्रमणकारियों का भी पक्ष सुनने और उनके कागज देखे जाने का आदेश दिया। इसके बाद रेलवे पीपी ऐक्ट यानी Public Premises (Eviction of Unauthorised Occupants) Act, 1971 के तहत नोटिस देकर जनसुनवाई की गई।
बहुत बड़ी आबादी को बेघर करने की तैयारी में प्रशासन
इसके बाद रेलवे ने अपना दावा और बढ़ा दिया। बस्ती बचाओ संघर्ष समिति के नसीम ने बताया कि पहले रेलवे ने 29 एकड़ जमीन पर अतिक्रमण बताया था। बाद में उसने 78 एकड़ भूमि पर कब्जा बताना शुरू कर दिया। 29 एकड़ जमीन में सिर्फ वनभूलपुरा की गफूर बस्ती और ढोलक बस्ती ही आ रही थी। लेकिन 78 एकड़ के दायरे में बहुत बड़ी आबादी आ रही है। हाई कोर्ट के आदेश के बाद प्रशासन बस्ती में रहने वाले लोगों को बेदखल करने की तैयारी में जुटा है। वहीं पीड़ितों का कहना है कि रेलवे ने सुनवाई के नाम पर महज खानापूर्ति की है। कायदे से उनका पक्ष नहीं सुना गया।
‘जो घर बाप-दादा ने बनवाया, उसे लेकर कहां अर्जी लगाएं’
स्थानीय निवासी रहमत खान ने आरोप लगाते हुए कहा है कि रेलवे गलत बोल रहा है। पीपी ऐक्ट में एक तरफा सुनवाई की गई है, हमारा पक्ष नहीं सुना गया। उन्होंने इसके खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की है। बरेली रेलवे कोर्ट में दो फरवरी को सुनवाई की जाएगी। वहीं जिला कोर्ट में भी मामला पर पांच फरवरी को सुनवाई होनी है। पीड़ित का कहना है कि जिला अदालत में एक हजार 178 प्रभावितों ने कागज लगाए हैं। उनका कहना है कि जो उनके घर बाप-दादा ने बनवाया, उसे लेकर कहां अर्जी लगाएं।