दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस जसमीत सिंह 23 जनवरी 2022 को एक केस की सुनवाई के दौरान अचानक हंसने लगे। उन्होंने हैरान होकर पूछा कि ये क्या है। क्या ट्रायल कोर्ट के जज ने अपना जरा भी दिमाग नहीं लगाया। क्योंकि घरेलू हिंसा कानून 2005 के तहत महिला को आरोपी नहीं ठहराया जा सकता।
दरअसल जस्टिस जसमीत 23 जनवरी दिल्ली की एक महिला की याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। महिला ने कड़कड़डूमा कोर्ट के एक फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। जिसमें उसे घरेलू हिंसा के आरोप में समन जारी किया गया था।
क्या है पूरा केस
मिली जानकारी के अनुसार फरवरी 2008 में महिला सान्या की शादी राहुल से हुई। शादी के 14 साल बाद सान्या और राहुल के बीच अनबन होने लगी, जो धीरे-धीरे मारपीट में बदल गई। फिर 24 अगस्त 2022 को राहुल ने पत्नी से तलाक के लिए कोर्ट में याचिका दायर की। इसके अलावा राहुल ने घरेलू हिंसा कानून की धारा 18, 20, 21 के तहत सान्या के खिलाफ केस भी दर्ज करवाय।
राहुल ने अपनी शिकायत में कहा कि उसकी पत्नी दबंग प्रकृति की है। साथ ही उसका 52 लोगों के साथ एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर हैं। इनमें से दो प्रेमियों के नाम भी इस केस में भी शामिल किए गए हैं। युवक ने घरेलू हिंसा कानून 2005 की धारा 22 के तहत पत्नी से 36 लाख मुआवजे की मांग भी की है।
पत्नी ने मुआवजे में मांगे 2 करोड़
वहीं सान्या ने भी 19 अक्टूबर 2022 को पति के खिलाफ शिकायत दर्ज कराते हुए आरोप लगाया कि उसके पति और ससुराल वालों ने उसे मौखिक, शारीरिक और भावनात्मक तौर पर प्रताड़ित किया है। इसके अलाव सान्या ने मुआवजे के तौर पर 2 करोड़ की मांग की है।
इस मामले में दिल्ली के कड़कड़डूमा कोर्ट ने सान्या के खिलाफ समन जारी कर दिया गया, जिसे उसने दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी। इस मामले पर सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट के जज ने कहा कि घरेलू हिंसा कानून 2005 के तहत महिला को आरोपी नहीं बनाया जा सकता। जिसके बाद कोर्ट ने मामले की सुनवाई पर रोक लगा दी है।
क्या है घरेलू हिंसा कानून 2005
बता दें कि केंद्र सरकार ने साल 2005 में घरेलू हिंसा को रोकने के लिए एक कानून बनाया था। जिसे घरेलू हिंसा कानून 2005 या फिर घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम 2005 के नाम से जाना जाता हैं। इस कानून के अनुसार घरेलू हिंसा का सिर्फ पति का पत्नी को पीटना और जलील करना नहीं, बल्कि किसी महिला को पति या उसके परिवार की ओर से फिजिकल, मेंटल, सेक्सुअल या फिर फाइनेंशियल यातना देना भी घरेलू हिंसा के अंदर आता है। घरेलू
हिंसा कानून 2005 के तहत महिला को आरोपी नहीं बनाया जा सकता क्यों
इस कानून के तहत कोई भी महिला घरेलू हिंसा की शिकार होने पर मजिस्ट्रेट के पास जा सकती है। धारा 2(A) में सिर्फ महिला को पीड़ित माना गया है। इसलिए वह आरोपी नहीं हो सकती।
इस कानून के आधार पर हर जिले में ‘सेफ हाउस’ बनाने और प्रोटेक्शन ऑफिसर नियुक्त करने की भी व्यवस्था की गई है। कानून में कहा गया है कि किसी भी हाल में महिला को परिवार वाले घर से नहीं निकाल सकते।
इस कानून की खास बात ये है कि इसके अनुसार एक बच्चा भी अपने पिता के खिलाफ शिकायत दर्ज करवा सकता है। अगर उसको लगता है कि उसका पिता उसकी मां के साथ मारपीट या उसे प्रताड़ित कर रहा है
घरेलू हिंसा के शिकार पुरुष इस कानून के तहत केस दर्ज करवाए
सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता ने बताया कि अगर पुरुष के साथ पत्नी घरेलू हिंसा करती हैं तो उसके पास दो विकल्प हैं
1. वह तलाक के लिए कोर्ट में अर्जी लगाए।
2. अगर पत्नी किसी और के साथ मिलकर पति से मारपीट या उसे चोट या मानसिक रूप से प्रताड़ित करती है और जानबूझकर समाज में पति की प्रतिष्ठा को कम करती है तो ऐसे में पति IPC की अलग-अलग धाराओं के तहत पत्नी के खिलाफ केस दर्ज करवा सकता है। जैसे कि
- पति को जान से मारने की धमकी देने पर- IPC की धारा 506
- पति से मारपीट करने पर- IPC की धारा 323
- पति से गाली-गलौज करने पर- IPC की धारा 294
क्या घरेलू हिंसा कानून 2005 पुरुष विरोधी है?
एडवोकेट विराग गुप्ता का कहना है कि जब कोई कानून समाज के एक वर्ग की सुरक्षा के लिए बनाया जाता है तो दूसरे वर्ग को लगता है कि ये कानून उसके खिलाफ है। हालांकि, ये बात सही नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि घरेलू हिंसा कानून 2005 महिलाओं को सुरक्षा देने के लिए बनाया गया है न कि पुरुषों के खिलाफ भेदभाव या आक्रमता को बढ़ाने के लिए है। जैसे- समाज में SC/ST से होने वाले भेदभाव को कम करने के लिए अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम है। उसी तरह से महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए ये कानून है।