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मकर संक्रांति पर बन रहा है खास स्नान का योग, जानिए स्नान-दान का क्या है शुभ मुहूर्त 

Makar Sankranti 2023: मकर संक्रांति पर बन रहा है खास स्नान का योग, जानिए स्नान-दान का क्या है शुभ मुहूर्त 

मकर संक्रांति सबसे शुभ हिंदू त्योहारे में से एक है जिसका बहुत महत्व हैं और इसे बहुत धूम धाम से मनाया जाता है। वहीं देश के अलग -अलग राज्यों में मकर संक्रांति को कई नामों से जाना जाता है, जैसे पोंगल, उत्तरायण, खिचड़ी आदि। हिंदु धर्म में इस त्यौहार का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान सूर्य दक्षिणायण से उत्तराणय होते हैं। इस दिन स्नान-दान का विशेष महत्व है। वहीं इस साल मकर संक्रांती के दिन कुछ ऐसे शुभ मुहूर्त बन रहे हैं, जिस मुहूर्त में किया गया स्नान-दान बहुत शुभ होता है।

इस साल 15 जनवरी को मनाई जाएगी मकर संक्रांति

हर वर्ष मकर संक्रांति का त्योहार 14 जनवरी को मनाया जाता है। लेकिन इस बार हिंदू पंचांग के अनुसार, सूर्य 14 जनवरी की रात 8 बजकर 45 मिनट पर मकर राशि में गोचर करेगा। उदया तिथि 15 जनवरी को प्राप्त हो रही है। ऐसे में मकर संक्रांति इस साल 15 जनवरी को मनाई जाएगी।मकर संक्रांति पर पवित्र नदियों आदि में स्नान करने का विशेष महत्व बताया गया है। इस बार मकर संक्रांति पर स्नान का पुण्य काल 15 जनवरी को सुबह 4 बजकर 17 मिनट से शाम 5 बजकर 55 मिनट तक है। जबकि महा पुण्य काल 15 जनवरी को सुबह 7 बजकर 17 मिनट से सुबह 9 बजकर 04 मिनट तक रहेगा। पं. देवेन्द्र शुक्ल शास्त्री के मुताबिक इस दिन भगवान सूर्य दक्षिण से उत्तर दिशा में प्रवेश करते हैं। इस दिन से विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत संस्कार जैसे मांगलिक कार्य पुनः शुरू हो जाते हैं। मकर संक्रांति के दिन खासकर स्नान, दान का विशेष महत्व होता है। इस दिन नदियों में स्नान करने से सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिलती है। स्नान के पश्चात तिल, गर्म वस्त्र, मिष्ठान, फल आदि दान करने का विशेष महत्व बताया गया है।

कहा जाता है कि महाभारत काल में भीष्म पितामह ने बाणों की शैय्या पर लेटकर उत्तरायण का इंतजार किया था और मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होने के बाद ही अपने प्राणों को त्यागा था। इस दिन गंगा सागर में दर्शन व स्नान करने का भी महत्व बताया गया है। मकर संक्रांति के साथ ही दिन के समय में वृद्धि व रात का समय कम होने लगता है।

स्नान करने के बाद सूर्य देव की करें पूजा

आपको बता दें कि नदी के तट पर स्नान के बाद सूर्य देव की पूजा करते है। ऐसा करने से इंसान की हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है। साथ ही मकर संक्रांति के दिन सूर्य देवता दक्षिणायन से उत्तरायण होते है और इसी से देवताओं के दिन शुरू हो जाते हैं। मकर संक्रांति के साथ ही खरमस्त समाप्त हो जाता है और शादी विवाह जैसे शुभ व मांगलिक कार्य भी शुरू हो जाते है।

मकर संक्रांति के दिन क्यों बनती है खिचड़ी

मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी बनाने और इसके दान को लेकर बाबा गोरखनाथ की एक प्रथा प्रचलित है। कहा जाता है कि जब खिलजी ने आक्रमण किया था, तब चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था। नाथ योगियों को युद्ध के दौरान भोजन बनाने का समय नहीं मिलता था तो ऐसे में भोजन न मिलने से वो कमज़ोर होते जा रहे थे। वहीं उस समय बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जियों को एक साथ मिलाकर पकाने की सलाह दी। ये आसानी से जल्दी पक जाता था और इससे शरीर को पोषक तत्व भी मिल जाते थे और योगियों का पेट भी भर जाता था। बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम खिचड़ी रखा।

खिलजी से मुक्त होने के बाद मकर संक्रांति के दिन योगियों ने उत्सव मनाया और इस दिन इस खिचड़ी को लोगों के बीच बांटा। उस दिन से मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी बनाकर खाने और इसे बांटने की प्रथा शुरू हो गई। मकर संक्रांति के मौके पर गोरखपुर के बाबा गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी मेला भी लगता है। इस दिन बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है और लोगों में इसे प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं।

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