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कहाँ से शुरु हुई भ्रष्टाचार के टावर को गिराने की कहानी, जानिए

Noida Twin Towers: कहाँ से शुरु हुई भ्रष्टाचार के टावर को गिराने की कहानी, जानिए

Noida Twin Towers: नोएडा के सेक्टर-93ए स्थित सुपरटेक ट्विन टावर को ध्वस्त करने का काउंडाउन शुरू हो चुका है. आज दोपहर दो बजकर 30 मिनट पर यह जमींदोज हो जाएगा. अब सभी के मन में सवाल उठ रहा होगा कि आखिर कुतुब मिनार से भी ऊंची इस 40 मंजिला इमारत को क्यों ढहाया जा रहा है. इसे गिराने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लंबी लड़ाई लड़ी गई. सुपरटेक बिल्डर की तरफ से नामी वकील इस केस को लड़े लेकिन वह ध्वस्त होने से नहीं बचा सके. इसकी मुख्य वजह थी गैरकानूनी तरीके से बनाई गई यह बिल्डिंग. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में नोएडा अथॉरिटी के सीनियर अधिकारियों पर सख्त टिप्पणी की थी. मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक कह दिया था कि नोएडा अथॉरिटी एक भ्रष्ट निकाय है. इसकी आंख, नाक, कान और यहां तक कि चेहरे तक भ्रष्टाचार टपकता है. अब समझ सकते हैं सुप्रीम कोर्ट ने आखिर ऐसी टिप्पणी क्यों की थी

तो चलिए आपको बताते हैं की आखिर ट्विन टावर की इमारत खड़ी कैसे हो गई?

कहानी 23 नंवबर 2004 से शुरू होती है। जब नोएडा अथॉरिटी ने सेक्टर-93ए स्थित प्लॉट नंबर-4 को एमराल्ड कोर्ट के लिए आवंटित किया। आवंटन के साथ ग्राउंड फ्लोर समेत 9 मंजिल तक मकान बनाने की अनुमति मिली। दो साल बाद 29 दिसंबर 2006 को अनुमति में संसोधन कर दिया गया। नोएडा अथॉरिटी ने संसोधन करके सुपरटेक को नौ की जगह 11 मंजिल तक फ्लैट बनाने की अनुमति दे दी। इसके बाद अथॉरिटी ने टावर बनने की संख्या में भी इजाफा कर दिया। पहले 14 टावर बनने थे, जिन्हें बढ़ाकर पहले 15 फिर इन्हें 16 कर दिया गया। 2009 में इसमें फिर से इजाफा किया गया। 26 नवंबर 2009 को नोएडा अथॉरिटी ने फिर से 17 टावर बनाने का नक्शा पास कर दिया।

दो मार्च 2012 को टावर 16 और 17 के लिए एफआर में फिर बदलाव किया। इस संशोधन के बाद इन दोनों टावर को 40 मंजिल तक करने की अनुमति मिल गई। इसकी ऊंचाई 121 मीटर तय की गई। दोनों टावर के बीच की दूरी महज नौ मीटर रखी गई। जबकि, नियम के मुताबिक दो टावरों के बीच की ये दूरी कम से कम 16 मीटर होनी चाहिए।

अनुमति मिलने के बाद सुपरटेक समूह ने एक टावर में 32 मंजिल तक जबकि, दूसरे में 29 मंजिल तक का निर्माण भी पूरा कर दिया। इसके बाद मामला कोर्ट पहुंचा और ऐसा पहुंचा कि टावर बनाने में हुए भ्रष्टाचार की परतें एक के बाद एक खुलती गईं। ऐसी खुलीं की आज इन टावरों को जमींदोज करने की नौबत आ गई।

कैसे पहुंचा कोर्ट तक मामला?

फ्लैट बायर्स ने 2009 में आरडब्ल्यू बनाया। इसी आरडब्ल्यू ने सुपरटेक के खिलाफ कानूनी लड़ाई की शुरुआत की। ट्विन टावर के अवैध निर्माण को लेकर आरडब्ल्यू ने पहले नोएडा अथॉरिटी मे गुहार लगाई। अथॉरिटी में कोई सुनवाई नहीं होने पर आरडब्ल्यू इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा।

2014 में हाईकोर्ट ने ट्विन टावर तोड़ने का आदेश जारी किया। शुरुआती जांच में नोएडा अथॉरिटी के करीब 15 अधिकारी और कर्मचारी दोषी माने गए। इसके बाद एक हाई लेवल जांच कमेटी ने मामले की पूरी जांच की। इसकी जांच रिपोर्ट के बाद अथॉरिटी के 24 अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई।

जब हाई कोर्ट ने 2014 में टावर गिराने का आदेश दे दिया था तो इसे गिराने में आठ साल क्यों लग गए?

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुपरटेक सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। सुप्रीम कोर्ट में सात साल चली लड़ाई के बाद 31 अगस्त 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को बरकार रखा। सुप्रीम कोर्ट ने तीन महीने के अंदर ट्विन टावर को गिराने का आदेश दिया। इसके बाद इस तारीख को आगे बढ़ाकर 22 मई 2022 कर दिया गया। हालांकि, समय सीमा में तैयारी पूरी नहीं हो पाने के कारण तारीख को फिर बढ़ा दी गई। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत 28 अगस्त को दोपहर ढाई बजे ट्विन टावर को गिरा दिया जाएगा।

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