शायद ही कोई ऐसा है हो जो ‘मदर टेरेसा’ (Mother Teresa) को नहीं जानता हो। उन्हें भारत रत्न से भी नवाजा गया है। लेकिन हाल ही में स्काई डॉक्यूमेंट्रीज (Sky Documentaries) ने जीवन पर प्रकाश डाला है। उन्होंने उनके जीवन से जुड़े अंधेरे पक्ष और और एनजीओ (NGO) ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ के काले सच को उजागर करने की कोशिश की है। मदर टेरेसा: फॉर द लव ऑफ गॉड (Mother Teresa: For the Love of God) नामक वृत्त चित्र जारी किया गया है। जो उनके सहयोगियों और दुश्मनों से आने वाली कहानियों को दिखाता है। जानकारी के अनुसार सालों तक ‘मदर’ टेरेसा’(Mother Teresa) पर धोखेबाज होने के आरोप लगते रहे हैं।
आदिम स्वास्थ्य प्रथाओं से जुड़ी समस्याओं से भरा उनका इतिहास और कमजोरों को ईसाई धर्म (Christianity) में परिवर्तित करने के लिए उनके इंजील उत्साह को लेकर उनके आलोचकों द्वारा अनवर आरोप लगाए जाते रहे हैं।
मदर टेरेसा: फॉर द लव ऑफ गॉड
रिपोर्ट्स के अनुसार, वृत्तचित्र (Documentary film) का दावा है कि विश्व स्तर पर ज्ञात ‘संत’ का एक गंभीर स्याह पक्ष था। उन्होंने धारावाहिक दुर्व्यवहार करने वालों व अपराधियों का बचाव किया। उन्होंने अपनी छवि को कैथोलिक चर्च (Catholic Church) के प्रचार उपकरण के रूप में इस्तेमाल करने की भी अनुमति दी।
मदर टेरेसा: फॉर द लव ऑफ गॉड, (Mother Teresa: For the Love of God) के द्वारा मदर टेरेसा के सच्चा का पता लगाने की एक कोशिश की गई है।
जो समकालीन इतिहास (contemporary history) में दुनिया की सबसे विवादास्पद (controversial) और जटिल शख्सियतों में से एक है। सीरियल गाली देने वालों का बचाव करता है और ननों के कल्याण की अनदेखी करने के कारण मदर टेरेसाल (Mother Teresa) को विवादों के केंद्र में भी रखती हैं।
इसकी मदद से कुछ सामान्य ज्ञात उदाहरणों पर एक नज़र डाली गई है। जिनका वृत्त चित्र (Documentary film) में उल्लेख किया गया है।
डेली मेल के एक लेख के मुताबिक
वहीं डेली मेल (daily Mail) के एक लेख के मुताबिक टेरेसा (Mother Teresa) का जन्म 1910 में स्कोप्जे, अब उत्तरी मैसेडोनिया (Macedonia) के एग्नेस गोंक्सा बोजाक्सीहु में हुआ था। आपको बता दें कि जब वह आठ साल की थी तब उनके पिता की मृत्यु हो गई थी। (Mother Teresa) गरीबी का सामना करते हुए बड़ी होती है। उन्होंने अपना जीवन चर्च में एकांत में बिताया और 12 वर्ष की उम्र में उसमें शामिल होने का फैसला किया।
इसके बाद (Mother Teresa) ने 18 वर्ष की उम्र में लोरेटो के कैथोलिक सिस्टर्स ऑफ ऑर्डर (sisters of order) में शामिल होने के लिए डबलिन (Dublin) गई। एक साल बाद वह शिक्षिका बनने के लिए कलकत्ता (Calcutta) आई। उन्होंने दावा किया कि 1946 में यीशु ने उसे गरीबों की मदद करने का मिशन दिया था। 1950 में उन्होंने गरीबों की सेवा के लिए तत्कालीन कलकत्ता में मिशनरीज ऑफ चैरिटी (Missionaries of Charity) की स्थापना की।
“द मिशनरी पोजीशन: मदर टेरेसा इन थ्योरी एंड प्रैक्टिस”
वृत्त चित्र (Documentary film) के अनुसार उनके साथ काम करने वालों का दावा है कि वह चीजों के बारे में अस्पष्ट विचार रखती थी। गरीबी और दर्द को आध्यात्मिकता (spirituality) के लिए एक आवश्यकता के रूप में देखती थी। वहीं क्रिस्टोफर हिचेन्स ने “द मिशनरी पोजीशन: मदर टेरेसा इन थ्योरी एंड प्रैक्टिस” (“The Missionary Position: Mother Teresa in Theory and Practice”) पुस्तक में दावा किया है कि टर्मिनल कैंसर से पीड़ित रोगियों को अक्सर दर्द निवारक दवाओं से वंचित किया जाता था। दर्द उनके काम का सिर्फ एक उपोत्पाद नहीं था।
बल्कि इसका एक अभिन्न हिस्सा था। जानकारी के अनुसार नन को खुद को कोड़े मारने और तार की जंजीरों को पहनने का निर्देश दिया गया था। कोलकाता (Calcutta) के एक पूर्व मेयर ने टेरेस (Mother Teresa) पर बीमारों का इलाज करने के बजाय उनसे फायदा उठाने का आरोप लगाया था। साथ ही उन पर कोलकाता को “कोढ़ी और भिखारियों के शहर” (“City of Lepers and Beggars”) के रूप में नकारात्मक छवि बनाने का कुत्सित प्रयास करने का आरोप लगाया.
जानकारी के अनुसार धन (Funds) होने के बावजूद स्वच्छता (hygiene) की कमी, बुनियादी सुविधा से रहित निर्मल हृदय (pure heart,) कोलकाता में मरने वालों के लिए एक धर्मशाला (Hospice) और मिशनरीज ऑफ चैरिटी (Missionaries of Charity) का खराब प्रबंधन, अस्वच्छ जीवन स्थितियों के साथ-साथ बुनियादी सुविधाओं की कमी के लिए विवादों का केंद्र रहा है। ऐसी कई जांच रिपोर्ट्स सामने आई हैं। जहां स्वयंसेवकों (volunteers) ने मरीजों की देखभाल करने वाली नर्सों या स्वयंसेवकों (volunteers) के लिए गर्म पानी और चिकित्सा प्रशिक्षण की कमी जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी की शिकायत की है।
मैरी लाउडन ने दी गवाही
इसी बीच हिचेन्स (hitchens) ने अपनी किताब में बताया है कि कैसे घरों में रहने वाले मरीजों ने देखभाल की कमी का अनुभव किया । मैरी लाउडन (Mary Loudon) नामक एक स्वयंसेवक (volunteers) की गवाही का हवाला देते हुए हिचेन्स का कहा कि निर्मल हृदय में सुइयों का पुन: उपयोग किया जाता था। क्यूबा में जन्मे मियामी रियल-एस्टेट ब्रोकर हेमली गोंजालेज (hemley Gonzalez) ने 2008 में निर्मल हृदय में एक स्वयंसेवक (volunteers) के रूप में काम किया था। वो एक सच्ची तस्वीर पेश करते हुए वृत्त चित्र (Documentary film) इन और ऐसे कई अन्य आरोपों की समीक्षा करता है.
कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि मदर टेरेसा (Mother Teresa) के लिए पैसा कभी कोई मुद्दा नहीं था। 1980 के दशक के मध्य तक चैरिटी को 100 मिलियन पाउंड (million pounds) का दान मिल रहा था। लेकिन इसका अधिकांश हिस्सा वेटिकन बैंक (Vatican Bank) को दान कर दिया गया था। वहीं (Mother Teresa) ने तानाशाहों, दोषियों, दुर्व्यवहारियों की कई मौकों पर प्रशंसा की। जिन्होंने जबरन श्रम शिविर चलाए और असंतुष्टों को मार डाला तथा धर्म को गैरकानूनी घोषित कर दिया।
मदर टेरेसा: द फाइनल वर्डिक्ट
अरूप चटर्जी (Arup Chatterjee) ने कथित तौर पर अपनी पुस्तक मदर टेरेसा: द फाइनल वर्डिक्ट (Mother Teresa: The Final Verdict ) में लिखा है कि इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) द्वारा भारत में आपातकाल की घोषणा के बाद उन्होंने कहा था- “लोग खुश हैं, अधिक नौकरियां हैं। कोई हड़ताल नहीं है.” 1980 में गांधी (Indira Gandhi) ने टेरेसा (Mother Teresa) को उनके मानवीय कार्यों के लिए सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किय। डॉक्यूमेंट्री (Documentary) का दावा है कि मदर टेरेसा (Mother Teresa) ने चर्च द्वारा की गई कई ज्यादतियों को दफनाने में मदद की है। जिसमें सीरियल चाइल्ड मोलेस्टर रेवरेंड डोनाल्ड मैकगायर (Child Molester Reverend Donald McGuire )के खिलाफ दुर्व्यवहार के आरोपों को खारिज करना भी शामिल है।