NCERT: कक्षा 12 की राजनीति विज्ञान की किताब को NCERT ने बदल दिया है। इस बदलाव में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बारहवीं कक्षा की राजनीति विज्ञान पुस्तक से बाबरी मस्जिद का नाम हटाया गया है। नई किताब में इसे बाबरी मस्जिद की जगह तीन गुंबद वाली संरचना बताया गया है। पुस्तक में अयोध्या का अध्याय चार पेज से कम करके दो पेज कर दिया गया है।
दरअसल, पुस्तक में बाबरी मस्जिद, हिंदुत्व की राजनीति, 2002 के गुजरात दंगे और अल्पसंख्यकों से संबंधित कुछ अध्याय नहीं हैं। अयोध्या पर अध्याय में कारसेवकों की भूमिका, बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद हुई हिंसा, राष्ट्रपति शासन और सोमनाथ से अयोध्या तक भाजपा की रथ यात्रा पर भी चर्चा की गई है। इस किताब NCERT को पाठ्यक्रम 2024-25 से लागू किया जाएगा। हाल ही में पुस्तकों से कई संवेदनशील विषयों को बाहर निकाला गया है।
क्या लिखा था पुरानी पुस्तक में
पुरानी पुस्तक में बाबरी मस्जिद को मुगल बादशाह बाबर के कमांडर मीर बाकी द्वारा निर्मित 16वीं शताब्दी की मस्जिद के रूप में पेश किया गया था। वहीं, अध्याय में इस बात का उल्लेख किया गया है कि श्री राम के जन्मस्थान पर 1528 में तीन गुंबद वाली संरचना बनाई गई थी। लेकिन संरचना के आंतरिक और बाहरी हिस्सों में हिंदू प्रतीकों और अवशेषों के निशान थे। इसके अलावा अंदर और बाहर की दीवारों पर मूर्तियां भी थीं।
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NCERT पुरानी किताब के दो पन्नों में बताया गया है कि 1986 में फैजाबाद जिला न्यायालय द्वारा मस्जिद खोलने के निर्णय के बाद क्या हुआ था। 1992 में राम मंदिर निर्माण के लिए रथ यात्रा और कार सेवा ने सांप्रदायिक तनाव पैदा किया, जिसके बाद 1993 में सांप्रदायिक दंगे हुए। भाजपा ने इस बार अयोध्या की घटनाओं पर दुख जताया है।
नई किताब में क्या
यहां नई पुस्तक में बताया गया है कि 1986 में फैजाबाद जिला न्यायालय ने लोगों को पूजा करने की अनुमति दी और तीन गुंबद वाली बाबरी मस्जिद को खोला गया। किताब में कहा गया है कि भगवान राम की जन्मस्थली पर यह तीन गुंबद वाला ढांचा बनाया गया था। बाद में राम मंदिर की आधारशिला बनाई गई, लेकिन मंदिर के आगे निर्माण नहीं हुआ।
ऐसे में हिंदू समुदाय को लगा कि उसकी आस्था के साथ छेड़छाड़ की जा रही है और मुस्लिम समुदाय को ढांचे को अपने पास रखने का अधिकार मिल रहा है। इसके बाद मालिकाना हक को लेकर दोनों समुदायों के बीच तनाव बढ़ गया, जिसके परिणामस्वरूप कई विवाद और कानूनी संघर्ष हुए। दोनों समुदाय लंबे समय से चले आ रहे इस मुद्दे का उचित समाधान चाहते हैं, लेकिन 1992 में ढांचा गिरने के बाद कई आलोचकों ने कहा था कि यह लोकतंत्र के सिद्धांतों के लिए बड़ी चुनौती साबित होगा।