Supreme Court News: शुक्रवार, 24 मई को सुप्रीम कोर्ट में बूथ-वाइज वोटर्स का डाटा सार्वजनिक करने के मामले की सुनवाई हुई। शीर्ष अदालत ने याचिकाओं में कहा कि लोकसभा चुनाव के प्रत्येक चरण की वोटिंग के बाद 48 घंटे के भीतर चुनाव आयोग को बूथ-वाइज वोटर टर्नआउट डाटा को अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने का आदेश दिया जाए। विपक्ष ने दावा किया है कि चुनाव आयोग की जारी सूचनाओं को बदनाम किया जा रहा है।
वहीं, चुनाव आयोग के वकील मनिंदर सिंह ने सुनवाई के दौरान कहा कि 26 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता एडीआर की एक याचिका खारिज कर दी। 9 मई को उसकी जानकारी छिपाकर एक नई याचिका दाखिल की गई। यह तथ्य कोर्ट से छिपाने का मामला है। नई याचिका इसलिए सुनवाई के लायक नहीं है। उनका दावा था कि वोटिंग पर्सेंटेज के बारे में भ्रम फैलाया जा रहा है, जो मतदाताओं को मतदान नहीं करने के लिए प्रेरित करेगा।
मतदान के अधिक आंकड़े गलत हैं: चुनाव प्राधिकरण
चुनाव आयोग के वकील ने बताया कि 26 अप्रैल के फैसले में वर्तमान याचिका में उठाए गए मुद्दों के अलावा अन्य मुद्दों पर भी चर्चा हुई। यह भी कहा गया कि सिर्फ आशंकाओं के आधार पर याचिका नहीं सुन सकते। फिर भी, याचिकाकर्ता ने चुनाव के बीच लोगों को भ्रम में डालने के लिए फिर से याचिका दाखिल की। भारी हर्जाना लगाते हुए इनकी याचिका खारिज होनी चाहिए।
उनका दावा था कि चुनाव प्रक्रिया को लेकर कोई याचिका नहीं सुनवाई जाती है। यह एक नियम है। यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि अंतिम मतदान आंकड़ा पांच से छह प्रतिशत अधिक है। बिल्कुल गलत है। मतदान के दिन ऐप पर दिखाया गया आंकड़ा बिल्कुल सही नहीं है। बाद में, वेरिफिकेशन के बाद अंतिम आंकड़ा मिलता है। इस तरह की व्यवस्था पहले से ही रही है।
ऐसी याचिकाओं से वोटर्स का उत्साह कम होता है: चुनाव प्राधिकरण
वकील मनिंदर सिंह ने कहा कि इस तरह की याचिकाएं लोगों को मतदान करने के लिए भी कम उत्साहित करती हैं। साथ ही मतदान प्रतिशत में भी कमी आती है। देश भर में दस लाख से अधिक बूथों और आठ हजार से अधिक प्रत्याशी हैं, उन्होंने कहा। हर बूथ पर प्रत्याशी का एजेंट होता है, यानी लाखों प्रत्याशी इस प्रक्रिया में शामिल होते हैं। उसी दिन उन्हें फॉर्म 17C उपलब्ध कराया जाता है।
सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग के वकील ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 26 अप्रैल के फैसले में याचिकाकर्ता एडीआर की मंशा पर सवाल उठाया है। फिर उन्होंने एक और याचिका दाखिल की। उनका दावा था कि वे जानबूझकर उस फैसले की नकल को नई याचिका में नहीं डालते थे।
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ये सवाल जस्टिस ने एडीआर के वकील से पूछे
हमारे कुछ सवाल हैं, जस्टिस दीपांकर दत्ता एडीआर के वकील दुष्यंत दवे ने कहा। तुम्हारी प्रेयर क्या है? 2019 की आपकी मूल याचिका में भी इसका समावेश है। बीच चुनाव में अंतरिम आवेदन से ऐसी मांग कैसे पूरी की जा सकती है? बीच में घटनाक्रम बदल जाए तो न्यायालय क्या करेगा? 2019 में आपने रखी मांग को 26 अप्रैल से पहले क्यों नहीं पूरी की और फैसले के बाद आपने एक नया अंतरिम आवेदन दाखिल क्यों किया?
SC ने लंबित याचिका के बीच अंतरिम आवेदन क्यों दाखिल किया?
यह जनहित याचिका है, एडीआर के वकील दुष्यंत दवे ने कहा। इसमें कठोर नियम नहीं दिखाई देते। जस्टिस दत्ता ने कहा कि यह सही है, लेकिन हमें प्रक्रिया के दुरुपयोग की निगरानी करनी है। हम अभी यह नहीं कह रहे कि आपकी मांग सुनने योग्य नहीं है, लेकिन 2019 से लंबित याचिका पर आपने अचानक अंतरिम आवेदन क्यों किया? आप मुख्य मुद्दा लड़ रहे हैं। आप भी सफल हो सकते हैं।
वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि हम आए क्योंकि चुनाव आयोग ने बीच में आंकड़े बदले। वहीं, जस्टिस दत्ता ने कहा कि आप या अभिषेक मनु सिंघवी पिछले EVM-VVPAT मामले में पेश नहीं हुए थे। आप ऐप में आने वाले आंकड़े और बाद में हुए बदलाव पर कोर्ट ने चुनाव आयोग के अधिकारी से पूछा था।
आपकी शिकायत, “आ बैल मुझे मार जैसे”: सुप्रीम कोर्ट का फैसला
जस्टिस दत्ता ने यह भी कहा कि चुनाव आयोग ने 17C को वेबसाइट पर डालने की कोई कानूनी आवश्यकता नहीं बताई। कोर्ट ने इसका उल्लेख किया था। “आ बैल मुझे मार जैसी” आपकी नवीनतम याचिका है। हम भी चुनाव आयोग पर भरोसा नहीं करते, वकील दुष्यंत दवे ने कहा। चुनाव आयोग के वकील मनिंदर सिंह ने उनके इस बयान पर कहा कि आप कोर्ट के बाहर आयोग का मजाक उड़ाते हैं।
छुट्टियों के बाद सुप्रीम कोर्ट याचिका पर सुनवाई करेगा
TMC नेता महुआ मोइत्रा के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि मैं मानता हूँ कि दोनों याचिकाओं में एक ही प्रेयर है. उन्होंने कहा कि मेरी मुवक्किल को उनकी याचिका के दस्तावेज भी नहीं मिल सके क्योंकि पहले जिनके पास थे, वे अब उनसे नहीं जुड़े हैं।
जस्टिस दत्ता ने कहा कि हम फिलहाल कोई राहत नहीं देंगे। याचिकाओं को खारिज नहीं किया जा रहा है। सिर्फ विस्तृत सुनवाई के लिए बाद में इसे लंबित रख रहे हैं। छुट्टी के बाद मामला सुनवाई के लिए भेजा जाए। न्यायालय ने यह भी कहा कि चुनाव के सात में से पांच चरण पूरे हो चुके हैं। बीच चुनाव में चुनाव प्रक्रिया को बदलने के लिए आयोग पर दबाव डालना अनुचित होगा।