Kanpur News: पाकिस्तान के लिए जासूसी में कानपुर में पकड़ा गया आयुध फैक्टरी अधिकारी, उस तक कैसे पहुंची एटीएस

यूपी एटीएस ने कानपुर की आयुध फैक्टरी के अधिकारी कुमार विकास को गिरफ्तार किया है। वह पाकिस्तान से जुड़े आईएसआई एजेंटों से संपर्क में था और गोपनीय जानकारियां साझा कर रहा था।

Kanpur News: कानपुर की आयुध फैक्टरी के अधिकारी कुमार विकास को पकड़ने में यूपी एटीएस को बड़ी सफलता मिली है। एटीएस की नजर पिछले कुछ समय से पाकिस्तान से आ रही संदिग्ध कॉल्स पर थी। फोन कॉल के गेटवे पर नजर रखकर एजेंसी उन लोगों को चिह्नित कर रही थी, जो पाकिस्तान के हिमायती और मददगार हो सकते थे। इसी जांच के दौरान एजेंसी विकास तक पहुंच गई।

पाकिस्तान से आ रही कॉल्स पर थी नजर

पिछले कुछ महीनों से पाकिस्तान से भारत में कई अनजान कॉल आ रही थीं। एटीएस लगातार इन कॉल्स की निगरानी कर रही थी। जब एजेंसी ने इन कॉल्स की तहकीकात की, तो पता चला कि कॉल करने वालों के संबंध पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से जुड़े हुए थे। इसके बाद जिन लोगों को ये कॉल्स की जा रही थीं, उनके फोन रिकॉर्ड और संपर्कों की भी गहराई से जांच की गई।

 

विकास तक ऐसे पहुंची एटीएस

इसी जांच के दौरान कुमार विकास पर एजेंसी की नजर पड़ी। जब उससे पूछताछ की गई, तो उसने स्वीकार किया कि उसकी नेहा शर्मा नाम की महिला से बातचीत होती थी। विकास ने बताया कि नेहा ने खुद को एक सरकारी संस्थान की अधिकारी बताया था। इसी झांसे में आकर उसने कई गोपनीय सूचनाएं साझा कर दीं।

पहले भी हुई वैज्ञानिकों को फंसाने की कोशिश

यह पहला मामला नहीं है, जब आईएसआई ने किसी सरकारी कर्मचारी को अपने जाल में फंसाने की कोशिश की हो। सात साल पहले कानपुर स्थित डीआरडीओ (रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन) की रक्षा सामग्री एवं भंडार अनुसंधान एवं विकास स्थापना (डीएमएसआरडीई) में तैनात दो वैज्ञानिकों को भी निशाना बनाने की कोशिश हुई थी।

ब्रह्मोस यूनिट से भी जुड़े थे तार

साल 2018 में एटीएस ने नागपुर स्थित डीआरडीओ की ब्रह्मोस यूनिट में तैनात एक वैज्ञानिक को गिरफ्तार किया था। इसी जांच के दौरान कानपुर की डीएमएसआरडीई में तैनात एक महिला और एक पुरुष वैज्ञानिक के नाम भी सामने आए थे।

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सोशल मीडिया से बनाई गई थी दोस्ती

जांच में पता चला कि आईएसआई एजेंटों ने “नेहा” और “काजल” नाम की फर्जी फेसबुक आईडी से वैज्ञानिकों को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी थी। रिक्वेस्ट स्वीकार होने के बाद इन वैज्ञानिकों से बातचीत भी शुरू हो गई थी। हालांकि, वैज्ञानिकों के सोशल मीडिया अकाउंट, मोबाइल रिकॉर्ड और लैपटॉप की जांच के बाद कोई गोपनीय जानकारी साझा करने के सबूत नहीं मिले।

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