नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। बिहार विधानसभा चुनाव के बीच एकबार मोकामा दहल उठा। मोकामा में एकबार फिर खूनी संघर्ष देखने को मिला। फिर से बाहुबली अनंत सिंह का हत्याकांड में नाम आया। आरोप है कि राजद नेता और जनसुराज समर्थक दुलारचंद की हत्या अनंत सिंह ने करवाई है। ऐसे में पुलिस एक्टिव होती है और अनंत सिंह को उनके घर से अरेस्ट कर सलाखों के पीछे भेज देती है। ऐसे में हम आपको अनंत सिंह के बारे में बताते हैं, जो बिहार के बाहुबली माने जाते हैं और उनका आपराधिक सफर काफी लंबा रहा है। अनंत सिंह को मोकामा का छोटे सरकार भी कहा जाता है। पिछले चार दशक से अनंत सिंह की इलाके में तूती बोलती आ रही है।
बिहार में कई बाहुबलियों ने राजनीति में अपनी धमक दिखाई है। कई अभी भी सक्रिय हैं। मोहम्मद शहाबुद्दीन, आनंद मोहन से रीत लाल यादव तक इस सूची में शामिल हैं। इस सूची में एक बड़ा नाम अनंत कुमार सिंह का भी है, जिन्हें बिहार की राजनीति में ’छोटे सरकार’ के नाम से जाना जाता है। अनंत सिंह पर पहली बार 8 साल की उम्र में एफआईआर दर्ज हुई थी। तब से लेकर अब तक अनंत कुमार पर दर्जनों केस हो चुके हैं। इनमें हत्या, हत्या की साजिश, असलहे रखने से जुड़े केस, अपहरण, वसूली, आदि शामिल हैं। इतना ही नहीं उन पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत भी केस दर्ज है।
बात अस्सी के दशक की है। अनंत सिंह के गांव के ही मुन्नी लाल सिंह से इनकी खूनी अदावत छिड़ गयी। इस अदावत में अनंत सिंह के बड़े भाई विरंची सिंह की मुन्नी लाल सिंह ने हत्या कर दी। इसके पूर्व अनंत सिंह पर भी मुन्नी लाल सिंह के कई परिवारवालों को मौत के घाट उतारने का आरोप लगा था। कहा जाता है कि मुन्नी- अनंत के बीच कई वर्षों तक खूनी अदावत बाढ़ की धरती को खून से सींचती रही। बेगूसराय के पास मुन्नी लाल सिंह की हत्या के बाद अनंत सिंह कुनबे का खौफ बाढ़ में इस कदर छा गया कि खिलाफ में जिसने भी आवाज निकाली, उसकी जुबान हमेशा के लिये खामोश कर दी गयी।
अस्सी के ही दशक में अनंत सिंह की अदावत मोकामा के महेश सिंह के साथ ठन गयी। आरोप है कि अनंत सिंह ने महेश सिंह को रास्ते से हटाने के लिये मोकामा के रंगरुट नरेश सिंह से हाथ मिला लिया और नगर के जेपी चौक पर 1985 में महेश सिंह की बम मारकर हत्या कर दी गयी। 1985 में अनंत सिंह के भाई दिलीप सिंह चुनाव हार गए। इसके बाद बाढ़ के राजपूत लड़ाकों से इनकी खूनी जंग छिड़ गयी। अनंत सिंह पर इस दौर में दर्जनों राजपूत युवकों की हत्या कर अपना वर्चस्व बनाने का आरोप लगा। 1995 के चुनाव में बाढ़ विधान सभा क्षेत्र से अनंत सिंह के भाई सच्चिदानंद सिंह उर्फ फाजो सिंह ने अपनी किस्मत तो आजमाई, लेकिन अपने ही वंश के विवेका पहलवान की चुनावी मौजूदगी में इनकी हार हो गयी
इस चुनाव में विजय कृष्ण की जीत हुई। फाजो सिंह की पराजय का ठीकरा अनंत सिंह ने विवेका पहलवान पर फोड़ दिया।परिणाम स्वरुप विवेका पहलवान को लदमा गांव छोड़ना पड़ा। विवेका पहलवान ने गांव तो छोड़ दिया, लेकिन अनंत सिंह से इनकी भीषण खूनी जंग छिड़ गयी। इस जंग में अनंत सिंह के कई शूटर और रिश्तेदारों की मौत हुई। बाद के दिनों में अनंत सिंह पर राजपूत समाज के दर्जनों लोगों की हत्या करने का आरोप लगा। अनंत सिंह के आतंक से हत्या की कई वारदातों की प्राथमिकी तक दर्ज नहीं हुई। खुद अपने ही गांव लदमा में भी अनंत सिंह ने कई लोगों की हत्या का आरोप है। 2000 के चुनाव में अपने भाई दिलीप सिंह को जिताने के लिए सूरजभान समर्थक भावनचक निवासी बच्चू सिंह को घर से खींच कर गोलियों से भूनने का आरोप लगा। इस मामले में बच्चू सिंह का सिर भी काटा गया था।
अनंत कुमार सिंह का जन्म 1961 में पटना जिले के बाढ़ प्रखंड में आने वाले नदावां गांव में एक भूमिहार परिवार में हुआ। चार भाइयों में वे सबसे छोटे थे। अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह 1985 में मोकामा सीट से निर्दलीय मैदान में उतरे। इस चुनाव में उन्हें कांग्रेस के श्याम सुंदर सिंह ‘धीरज’ से हार मिली। धीरज इससे पहले 1980 में भी मोकामा से जीते थे। 1990 का विधानसभा चुनाव आया तो दिलीप सिंह को जनता दल से टिकट मिल गया। जनता दल से चुनाव लड़े दिलीप सिंह ने इस चुनाव में जीत दर्ज की। 1995 में वे फिर मोकामा सीट से विधायक चुने गए। साल 2000 में दिलीप सिंह ने जनता दल से अलग होकर बने लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल से चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें एक और बाहुबली सूरजभान सिंह के हाथों हार मिली। दिलीप सिंह तो इसके बाद पटना से एमएलसी बनकर विधान परिषद चले गए। 2005 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो मोकामा से अनंत सिंह पहली बार चुनाव मैदान में उतरे।
अनंत सिंह के चुनावी हलफनामे पर नजर डालने पर ही उनके ऊपर लगे केसों की आगे की जानकारी मिलती है। इसके मुताबिक, उन पर 2020 विधानसभा चुनाव से पहले तक कुल 38 मामले दर्ज थे। हालांकि, एक मीडिया समूह ने कुछ समय पहले ही पटना हाईकोर्ट के दस्तावेजों के हवाले से दावा किया था कि अनंत सिंह पर 50 से ज्यादा केस दर्ज हैं। 2015 और 2019 में उन्हें दो मामलों में दोषी भी पाया जा चुका है। 2015 में एक मामले में पटना पुलिस ने अनंत सिंह के घर पर छापेमारी की थी। यह रेड 17 जून को चार युवाओं के अपहरण के मामले के बाद डाली गई थी। इसमें अनंत सिंह के घर से इंसास राइफल, बुलेटप्रूफ जैकेट और खून से सने कपड़े मिले थे। अगले दिन पुतुष यादव नाम के एक अपह््रत का शव अनंत सिंह के पैतृक गांव नदवां से मिला था। इस मामले में बाद में अनंत सिंह का नाम केस में जुट गया।
2014 में अनंत सिंह पर बिहटा इलाके में एक बिल्डर के अपहरण का मामला दर्ज हुआ था और वे बाद में जेल भेजे गए थे। ऐसा ही एक केस है 2019 का। जब अगस्त में पुलिस ने एक बार फिर अनंत सिंह के घर पर छापा मारा। यहां पुलिस को उनके घर से हैंड ग्रेनेड मिले। हालांकि, अनंत सिंह खुद गिरफ्तारी से बच निकले और एक हफ्ते बाद नाटकीय ढंग से दिल्ली की एक स्थानीय अदालत में सरेंडर करने में सफल रहे। इस केस में अनंत सिंह को 22 महीने बाद जमानत मिली। 2015 और 2019 के मामलों में अनंत सिंह को सजा हुई। हालांकि, जहां 2015 के मामले में उनके घर से अवैध हथियार मिलने के मामले में 10 साल की सजा हुई, वहीं 2019 के मामले में उनके घर से एके-47 मिलने के केस में उन्हें दोषी पाया गया। हालांकि, चार्जशीट में उन पर से यूएपीए की धारओं को हटा लिया गया था।
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, भले ही ही दिलीप सिंह राजनीति में एक बड़ा चेहरा थे, लेकिन पर्दे के पीछे अनंत सिंह ही उनकी राजनीतिक गतिविधियों और समर्थन जुटाने से जुड़े फैसले लेते थे। ऐसे में जब राजद से चुनाव लड़ रहे दिलीप सिंह को लोजपा के सूरजभान सिंह, जो कि उस वक्त खुद बड़े बाहुबली थे, से हार मिली तो अनंत सिंह ने खुद राजनीति में उतरने की ठानी। उन्होंने मोकामा से ही अपना काम जारी रखा। एक किस्सा यह है कि जब 2004 का लोकसभा चुनाव होने वाला था, तब नीतीश कुमार ने दिलीप सिंह और अनंत सिंह से मुलाकात की थी। दरअसल, नीतीश यहां की बाढ़ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे, जो कि भूमिहारों का गढ़ मानी जाती है। इसलिए नीतीश कुमार, सिंह भाइयों का समर्थन जुटाने के लिए उनसे मिले।
नीतीश बाढ़ सीट से जीत दर्ज करने में तो नाकाम रहे, लेकिन अनंत सिंह से मुलाकात के बाद उन्हें अंदाजा हो गया कि आगे भी सवर्ण वोटों को जदयू के पाले में लाने में वे अहम भूमिका निभाते रहेंगे। इस साल नीतीश नालंदा सीट से सांसद बने थे। फिर साल आया 2005, जब बिहार में दो बार विधानसभा चुनाव हुए। फरवरी और अक्तूबर में। अनंत सिंह को इस दौर तक अंदाजा हो चुका था कि लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व को नीतीश कुमार चुनौती दे सकते हैं। ऐसे में उन्होंने न सिर्फ 2004 के लोकसभा चुनाव में जदयू को जिताने के लिए जोर लगाया, बल्कि अक्तूबर 2005 के विधानसभा चुनाव में जदयू के टिकट पर उतरे और जीत हासिल की। राजनीतिक हलकों में इससे जुड़ी एक घटना की चर्चा होती है कि जब अनंत सिंह चुनाव में जीते थे, तब वे नए-नए मुख्यमंत्री बने नीतीश कुमार को अपने विधानसभा क्षेत्र में लाए और उन्हें चांदी से तौल दिया। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जाता है कि अनंत ने नीतीश को चांदी नहीं, बल्कि सोने से तौला था।
