Delhi Red Fort car explosion: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली 1990 के दशक के उत्तरार्ध से लेकर 2008 तक आतंकवाद के क्रूर निशाने पर रही है, जिसमें प्रमुख आतंकी समूहों द्वारा किए गए 20 से अधिक बड़े विस्फोट शहर की सुरक्षा व्यवस्था को लगातार चुनौती देते रहे। इन आतंकी वारदातों की श्रृंखला, जो 1997 में आईटीओ से शुरू हुई और 2008 के सीरियल ब्लास्ट तक चली, में 200 से अधिक मौतें और हजारों लोग घायल हुए। इस भयावह दौर में, 2005 की दिवाली से पहले हुए सीरियल ब्लास्ट (सरोजिनी नगर, पहाड़गंज) और 2008 के इंडियन मुजाहिदीन द्वारा किए गए सीरियल ब्लास्ट सबसे घातक साबित हुए, जिन्होंने शहर के दिल को दहला दिया। इन हमलों ने देश की सुरक्षा एजेंसियों को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने और राजधानी की सुरक्षा को अभूतपूर्व तरीके से मजबूत करने के लिए मजबूर किया।
लाल किले के पास कार में भीषण धमाका: 2-3 लोग घायल, तकनीकी खराबी का संदेह
#BREAKING: Red Fort area after explosion reported inside a car few minutes ago. Many vehicles in the area completely destroyed and gutted. Several people injured. Investigations still underway. Officials haven’t confirmed any terror angle yet. pic.twitter.com/OeBC8kLLGn
— Aditya Raj Kaul (@AdityaRajKaul) November 10, 2025
1997-2008: आतंक का सबसे घातक दौर
Delhi में आतंकी धमाकों का सबसे सक्रिय और घातक दौर 1997 से 2008 के बीच रहा। इस अवधि में, लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और बाद में इंडियन मुजाहिदीन (IM) जैसे समूहों ने भीड़-भाड़ वाली जगहों, बाजारों और सरकारी प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया।
- 1997 की काली श्रृंखला: 1997 में, एक के बाद एक चार बड़े धमाके हुए। जनवरी में दिल्ली पुलिस मुख्यालय के सामने आईटीओ पर ब्लास्ट हुआ, जबकि अक्टूबर-नवंबर में रानी बाग, करोल बाग और रेड फोर्ट के पास हुए धमाकों में कई निर्दोष नागरिक मारे गए और घायल हुए।
- संसद भवन पर हमला (2001): 13 दिसंबर 2001 को भारत के लोकतंत्र के मंदिर पर हुए हमले में, विस्फोटों के साथ-साथ हुई गोलीबारी में 9 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए। इस घटना ने देश की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा कर दीं और इसके लिए लश्कर-ए-तैयबा को जिम्मेदार ठहराया गया।
2005 और 2008 के सबसे घातक सीरियल ब्लास्ट
दो घटनाएं विशेष रूप से विनाशकारी थीं, जिन्होंने राजधानी Delhi में बड़े पैमाने पर हताहतों की संख्या दर्ज की:
| घटना | तारीख | जगह/विवरण | हताहत (मृत/घायल) | जिम्मेदार समूह |
| दिवाली सीरियल ब्लास्ट | 29 अक्टूबर 2005 | सरोजिनी नगर, पहाड़गंज और गोविंदपुरी (बस में) | 59/100+ | लश्कर-ए-तैयबा (LeT) |
| दिल्ली सीरियल ब्लास्ट | 13 सितंबर 2008 | कॉनॉट प्लेस, गफ्फार मार्केट, ग्रेटर कैलाश | 25/100+ | इंडियन मुजाहिदीन (IM) |
2005 का हमला दिवाली से ठीक पहले हुआ था, जिसका उद्देश्य त्योहार की खुशी को मातम में बदलना था। वहीं, 2008 के हमलों में कनॉट प्लेस जैसे हाई-प्रोफाइल स्थानों को निशाना बनाया गया, जिससे पता चलता है कि आतंकियों का उद्देश्य अधिकतम भय और अराजकता फैलाना था।
2008 के बाद की स्थिति और सुरक्षा में सुधार
2008 के हमलों के बाद, Delhi की सुरक्षा एजेंसियों ने अपनी क्षमताओं में महत्वपूर्ण सुधार किए हैं। हालांकि, 7 सितंबर 2011 को दिल्ली हाई कोर्ट में हुए ब्लास्ट (11 मरे, 78 घायल) ने एक बार फिर इंडियन मुजाहिदीन की उपस्थिति को दर्शाया।
- सुरक्षा उपाय: इन प्रमुख घटनाओं ने दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल को मजबूत करने और पूरे शहर में CCTV निगरानी को व्यापक बनाने जैसे सुरक्षा उपायों को जन्म दिया।
- वर्तमान परिदृश्य: 2011 के बाद बड़े आतंकवादी हमलों में कमी आई है, जो खुफिया तंत्र की मज़बूती और सुरक्षाबलों की बेहतर तैयारी को दर्शाता है। आज (10 नवंबर 2025) का लाल किला के पास का कार धमाका, जैसा कि बताया गया है, एक दुर्घटनात्मक घटना प्रतीत होती है, न कि आतंकवादी कार्रवाई।
