(अम्बुजेश कुमार) नोएडा डेस्क। संसद में गुरुवार का दिन एक काले अध्याय के रुप में शामिल हो गया जब संसदीय मर्यादा को तार तार करते हुए सांसदों के बीच धक्का मुक्की हुई जिसमें बीजेपी के दो सांसद (Pratap Sarangi) घायल हो गए। सवाल उठता है कि आखिर ऐसी नौबत क्यों आई, पद की गरिमा की शपथ लेने वाले सांसद इतनी जल्दी अपनी शपथ कैसे भूल गए? क्या वाकई ऐसा करना जरूरी था, क्या वाकई राजनीतिक कटुता इस कदर हावी हो चुकी है कि अब एक दूसरे से हाथापाई करने से भी अब किसी को परहेज नहीं है? और क्या स्वस्थ लोकतंत्र के लिए ये घातक नहीं है ?
गुरुवार को संसद में आखिर क्या हुआ ?
संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान कांग्रेस और बीजेपी के सांसद संसद भवन में प्रवेश कर रहे थे कि अचानक बीजेपी सांसद प्रताप सारंगी (Pratap Sarangi) सीढ़ियों पर गिर पड़े। गिरने से सांसद को चोटें आईं जिसके बाद आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरु हो गया। प्रताप सारंगी के मुताबिक नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने एक सांसद को धक्का दिया, जो उनके उपर गिर गए जिसके बाद प्रताप सारंगी चोटिल हो गए। इस धक्कामुक्की में बीजेपी सांसद मुकेश राजपूत भी घायल हो गए। वहीं राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि बीजेपी के सांसद उन्हें संसद भवन में घुसने से रोक रहे थे। अब सच क्या है ये तो वही जाने लेकिन इस घटना के बाद गुरुवार का दिन संसदीय इतिहास के काले अध्याय के रुप में दर्ज हो गया।
क्या हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी राजनीतिक शिष्टाचार की परम्परा?
बीते कुछ वर्षों में नेताओं के बीच जिस तरह की कटुता आई है वो हैरान करने वाली है। निजी हमलों से लेकर अनाप शनाप बोलने तक से किसी को परहेज नहीं है। ये देखकर वो पुराने दिन याद आते हैं जब राजनीतिक शिष्टाचार के लिए भारतीय लोकतंत्र जाना पहचाना जाता था। पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी के साथ साथ मुलायम सिंह यादव की परम्पराओं को भी देखें तो एक सुनहरी तस्वीर नजर आती थी जब विरोधाभास सिर्फ विचारधारा का होता था व्यक्तिगत नहीं। ये वो परम्परा रही जहां पंडित नेहरू अटल बिहारी वाजपेयी के भाषणों की मुक्त कंठ से प्रशंसा करते थे। विचारधारा की भिन्नता के बावजूद निजी तौर पर नेताओं के आपसी रिश्ते अच्छे हुआ करते थे।
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कांग्रेस की ओर से हुई निजी हमलों की शुरुआत
राजनीति में निजी हमलों की शुरुआत कांग्रेस की ओर से ही की गई। जब गुजरात चुनाव के दौरान सोनिया गांधी ने पीएम मोदी और तबके गुजरात के मुख्यमंत्री रहे मोदी को मौत का सौदागर कहा था। सोनिया गांधी का ये दांव उलटा पड़ा और मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बन गए थे। इसके बाद स्थितियां लगातार खराब हुईं। राजनीति में शिष्टाचार को निभाने वाली पीढ़ी के आखिरी नेता मुलायम सिंह यादव थे, जिनके बाद अब राजनीति में शून्यता की स्थिति है। अखिलेश यादव भले ही नेताजी की विरासत आगे बढ़ाने की बात करते हैं लेकिन नेताजी की शख्सियत से वो कोसों दूर हैं। सवाल उठता है कि कटुता की ये सियासत क्या लोकतंत्र के लिए खतरे का संकेत नहीं है?