नई दिल्ली: श्रीलंका एक गहरे वित्तीय और मानवीय संकट का सामना कर रहा है, क्योंकि वहां मंहगाई रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। खाद्य कीमतें आसमान छू रही हैं जिसके कारण श्रीलंका के खजाने समाप्त हो रहे हैं। इसी के साथ आशंका है कि 2022 में श्रीलंका दिवालिया हो सकता है। एक रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के नेतृत्व में सरकार मंदी, कोरोना संकट के तत्काल प्रभाव और पर्यटन के नुकसान का सामना कर रही है। लेकिन उच्च सरकारी खर्च और कर कटौती से राज्य के राजस्व में कमी, विशाल ऋण चुकौती एक जटिल समस्या बन गई है।
पिछले कुछ सालों से श्रीलंका जिस आर्थिक संकट में घिरता दिख रहा था, वो अब भयावह रूप ले चुका है और दिवालिया होने की कगार पर है। श्रीलंका क्षेत्रफल के मामले में तमिलनाडु का लगभग आधा है। आबादी करीब सवा दो करोड़ है। श्रीलंका की जीडीपी में पर्यटन क्षेत्र का योगदान 10 फीसदी से ज्यादा है। कोविड महामारी ने पहले पर्यटन को चौपट किया और रही सही कसर चीन के कर्जों से पूरी हो रही है। चीन के बारे में यह धारणा सच के करीब है कि वो कर्ज डिप्लोमैसी से कमजोर देशों को फंसाता है और फिर अपने हिसाब से उस देश में नीतियां बनवाता है।
श्रीलंका को हंबनटोटा पोर्ट चीन को कर्ज नहीं चुका पाने के बदले में ही 100 साल की लीज पर देना पड़ा था। लेकिन चीनी कर्ज का यह अंत नहीं था। राजपक्षे ने श्रीलंका में आर्थिक आपात स्थिति घोषित की, जिसके बाद सेना को चावल और चीनी सहित आवश्यक वस्तुओं को सुनिश्चित करने की शक्ति दी गई थी। लेकिन उन्होंने लोगों की समस्या को पर्याप्त रूप से कम नहीं किया है।
श्रीलंका का आर्थिक संकट गंभीर मानवीय संकट के रूप में बदलता दिख रहा है। महंगाई रिकॉर्ड स्तर पर बढ़ रही है। खाने-पीने की चीजें भी लोगों की पहुंच से हर दिन बाहर होती जा रही हैं। खजाने लगभग खाली हो चुके हैं। 2022 में श्रीलंका दिवालिया घोषित हो जाए तो इसमें कोई हैरानी नहीं होगी। श्रीलंका की सरकार की कमान राजपक्षे परिवार के पास है। एक भाई गोटाबाया राजपक्षे राष्ट्रपति हैं तो दूसरे भाई महिंदा राजपक्षे प्रधानमंत्री हैं। राजपक्षे परिवार के पास ही सारी अहम शक्तियां सीमित हैं।
कोविड महामारी, पर्यटन उद्योग की तबाही, बढ़ते सरकारी खर्च और टैक्स में जारी कटौती के कारण सरकारी खजाना खाली हो चुका है। इसके साथ ही कर्जों के भुगतान का दबाव भी बढ़ता जा रहा है लेकिन विदेशी मुद्रा भंडार ऐतिहासिक रूप से सबसे निचले स्तर पर है। विश्व बैंक के अनुमान के मुताबिक, महामारी की शुरुआत से अब तक पांच लाख लोग गरीबी रेखा से नीचे चले गए हैं। नवंबर में महंगाई दर रिकॉर्ड 11.1% पर पहुंच गई थी। दिसंबर में खाने-पीने के सामान 22.1 फीसदी महंगे हो गए।
श्रीलंका अब खाने-पीने के सामान की कमी से जूझ रहा है। इतने पैसे नहीं हैं कि खाद्य सामग्री की आपूर्ति आयात के जरिए की जाए। श्रीलंका में लोगों के लिए तीन वक्त का खाना भी मुश्किल हो गया है। श्रीलंका की राजपक्षे सरकार आर्थिक आपातकालीन स्थिति की घोषणा पिछले साल ही कर चुकी थी। सेना को जरूरी सामान की आपूर्ति सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी दी गई थी। यहां तक कि चीनी और चावल के लिए सरकारी कीमत तय की गई लेकिन इससे भी लोगों की मुश्किलें खत्म नहीं हुई। एक स्थानीय के मुताबिक एक किलो दूध पाउडर के पैकेट को खोल 100-100 ग्राम के पैक तैयार किए जाते हैं क्योंकि लोग एक किलो का पैकेट नहीं खरीद सकते। साथ ही लोग 100 ग्राम सब्जी से ज्यादा नहीं खरीद पाते हैं।