लोकसभा में गुरुवार को एक ऐतिहासिक लेकिन विवादास्पद घटना घटी, जब केंद्र सरकार ने मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) की जगह प्रस्तावित ‘राष्ट्रीय रोजगार गारंटी बिल 2025’ को पारित करवा लिया। यह बिल ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में 100 दिन का न्यूनतम रोजगार गारंटी प्रदान करने का वादा करता है, लेकिन विपक्षी दलों ने इसे ‘मनरेगा का कमजोर संस्करण’ बताते हुए जोरदार विरोध दर्ज किया। हंगामे के चरम पर कांग्रेस, सपा और अन्य विपक्षी सांसदों ने बिल की प्रतियां फाड़कर सदन में उड़ा दीं, जिससे स्पीकर को सदन स्थगित करना पड़ा।
बिल के मुख्य प्रावधानों में ग्रामीण क्षेत्रों के अलावा शहरी बेरोजगारों को भी कवरेज शामिल है, जिसमें स्किल डेवलपमेंट, इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स और डिजिटल जॉब पोर्टल के जरिए रोजगार मुहैया कराना प्रमुख है। सरकार का दावा है कि यह मनरेगा के 100 दिन के गारंटी को बनाए रखते हुए उत्पादकता बढ़ाएगा, क्योंकि 40% काम अब स्किल-बेस्ड और इंफ्रा प्रोजेक्ट्स पर केंद्रित होंगे। बिल पारित होने से पहले श्रम मंत्री ने कहा कि यह ‘आत्मनिर्भर भारत’ की दिशा में कदम है, जो पिछले दशक में मनरेगा की कमियों को दूर करेगा।
विपक्ष ने बिल को ‘कॉर्पोरेट फ्रेंडली’ करार देते हुए आरोप लगाया कि यह ग्रामीण मजदूरों के हितों को कमजोर करेगा। कांग्रेस सांसद सुप्रिया श्रीधरन ने कहा, “मनरेगा ने करोड़ों गरीबों को जीविका दी, इसे नाममात्र के बदलाव से कमजोर करना जनता के साथ धोखा है।” हंगामे में पेज फाड़ने की घटना के बाद मार्शलों को तैनात किया गया। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने ट्वीट कर इसे ‘लोकतंत्र का अपमान’ बताया। बिल अब राज्यसभा में जाएगा, जहां और बहस की उम्मीद है।
यह बिल 2005 के मनरेगा को अपडेट करने का प्रयास है, जिसने महामारी के दौरान 10 करोड़ से ज्यादा परिवारों को सहारा दिया। सरकार के अनुसार, नया बिल डीबीटी और आधार-लिंक्ड पेमेंट से पारदर्शिता लाएगा, लेकिन आलोचक कहते हैं कि फंडिंग में कटौती से ग्रामीण अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी। पारित होने से पहले वोटिंग में NDA के बहुमत से 312-189 वोट पड़े।
विपक्ष का हंगामा संसद की कार्यवाही को बाधित करता रहा, लेकिन बिल पास हो गया। अब राज्यसभा और राष्ट्रपति की मंजूरी बाकी है। यह बदलाव ग्रामीण भारत के रोजगार परिदृश्य को नया रूप दे सकता है।



