UP Madarsa News: उत्तर प्रदेश के अनुदानित और मान्यता प्राप्त मदरसों में शिक्षा का परिदृश्य पिछले एक दशक में तेजी से बदला है। उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद के आंकड़ों के अनुसार, पिछले 10 वर्षों में छात्रों के नामांकन में 80% की भारी गिरावट दर्ज की गई है। जहां 2016 में मदरसा छात्रों की संख्या सवा चार लाख के करीब थी, वहीं 2025 में यह घटकर मात्र 88,082 रह गई है। यह गिरावट शिक्षा की गुणवत्ता, आधुनिक विषयों की कमी और सरकारी नीतियों में बदलाव के चलते देखी जा रही है। दिलचस्प बात यह है कि छात्रों की घटती संख्या के बावजूद, इसी अवधि में अनुदानित मदरसों में तीन हजार से अधिक शिक्षकों की भर्ती की गई है। यह विरोधाभास मदरसा शिक्षा प्रणाली के भविष्य और उसकी प्रासंगिकता पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है।
प्रमुख आंकड़े: एक नजर में
वर्ष | छात्रों की कुल संख्या | गिरावट (अनुमानित) |
2016 | 4,22,667 | — |
2017 | 3,71,052 | -12.2% |
2018 | 2,70,755 | -27.0% |
2020 | 1,82,259 | -32.6% |
2025 | 88,082 | -51.6% (2020 से) |
मोहभंग के पीछे के मुख्य कारण
UP Madarsa शिक्षा से छात्रों और अभिभावकों की दूरी बढ़ने के पीछे कई ठोस कारण सामने आए हैं:
आधुनिक शिक्षा की ओर झुकाव: वर्तमान में अभिभावक चाहते हैं कि उनके बच्चे केवल धार्मिक शिक्षा तक सीमित न रहें। विज्ञान, गणित और अंग्रेजी जैसे आधुनिक विषयों की पढ़ाई के लिए छात्र अब यूपी बोर्ड और अन्य निजी स्कूलों को प्राथमिकता दे रहे हैं।
रोजगार की अनिश्चितता: मदरसा बोर्ड के प्रमाण पत्रों (जैसे मुंशी, मौलवी, कामिल, फाजिल) को लेकर रोजगार बाजार में सीमित स्वीकार्यता एक बड़ा मुद्दा है। छात्र उन कोर्सेज की ओर बढ़ रहे हैं जो उन्हें मुख्यधारा की नौकरियों के लिए तैयार करते हैं।
सख्ती और निगरानी: हाल के वर्षों में परीक्षाओं में सीसीटीवी कैमरों का उपयोग और नकल पर नकेल कसने से भी “घोस्ट स्टूडेंट्स” (दिखावटी छात्र) की संख्या में कमी आई है। आधार कार्ड लिंकिंग और ऑनलाइन वेरिफिकेशन ने वास्तविक डेटा को सामने ला दिया है।
कानूनी चुनौतियां: इलाहाबाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसलों और टिप्पणियों ने मदरसों की संवैधानिक स्थिति और उनके पाठ्यक्रम पर बहस छेड़ दी है, जिससे छात्रों में भविष्य को लेकर असुरक्षा का भाव पैदा हुआ है।
क्षेत्रीय स्थिति और विरोधाभास
UP Madarsa आंकड़े बताते हैं कि जालौन जैसे जिलों में स्थिति इतनी विकट है कि वहां केवल एक छात्र ने परीक्षा के लिए आवेदन किया। वहीं, प्रयागराज (644 छात्र) और मऊ (636 छात्र) में संख्या तुलनात्मक रूप से बेहतर है। दूसरी ओर, शिक्षकों की बढ़ती संख्या और छात्रों की घटती तादाद सरकारी बजट के उपयोग पर भी सवाल उठाती है।
मदरसा शिक्षा प्रणाली में सुधार और इसे आधुनिक बनाने की कोशिशें जारी हैं, लेकिन क्या यह पारंपरिक ढांचा नई पीढ़ी की आकांक्षाओं को पूरा कर पाएगा, यह एक बड़ा प्रश्न बना हुआ है।








