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1924 में अंग्रेजों ने बनाई ‘स्पेशल 10 सुपरकॉप’, भारत में पहली बार इस शख्स का किया एनकाउंटर

देश के इतिहास में पहला पुलिस एनकाउंटर हैदराबाद राज्य में हुआ, ब्रिटिश पुलिस ने विद्रोही आदिवासियों के नेता अल्लूरी को पकड़ा और गोली मार दी।

Vinod by Vinod
December 30, 2024
in Latest News, TOP NEWS, क्राइम, राष्ट्रीय
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लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार आने के बाद पुलिस ऑपरेशन क्लीन चलाए हुए है। पिछले पांच सालों के दौरान 210 से अधिक अपराधी एनकाउंटर में मारे गए, जबकि 6 से अधिक पुलिस की गोली से लंगड़े हुए। यूपी एसटीएफ ने सूबे में दो बड़े एनकाउंटर किए, जिसमें अतीक अहमद का बेटा असद और कानपुर का विकास दुबे बड़े नाम रहे। जिसको लेकर सियासत भी हुई। विपक्ष दल पुलिस पर फर्जी एनकाउंटर के आरोप अक्सर लगाकर सरकार को घेरते रहते है। अगर एनकाउंटर की बात करें तो इसका आगाज भारत में ही हुआ था। पहली बार रिकार्डेड एनकाउंटर हैदराबाद और ब्रिटिश फौजों ने करने के साथ ही सरकारी दस्तावेज में दर्ज भी किया। निजाम और अंग्रेजों ने फिर कई लोगों को मुठभेड़ में मारा।

1924 में हुआ पहला एनकाउंटर

एनकाउंटर के इतिहास पर नजर डालें तो इसका आगाज भारत में ही हुआ। अंग्रेज और निजामों ने स्पेशल 10 सुपरकॉप की टीम का गठन किया। 10 अफसरों के साथ 50 पुलिसकर्मी शामिल किए गए, जिन्हें विद्रोह को कुचलने का आदेश दिया गया। फिर क्या था इस टीम ने 1946 से 1951 तक एनकाउंटर्स में 3000 से ज्यादा लोग मारा। अगर पहले एनकाउंटर की बात करें तो वह 1924 में हुआ था। हैदराबाद रियासत की पुलिस ने जिस शख्स का एनकाउंटर किया था, वह आदिवासियों के हीरो थे और उनका नाम अल्लूरी सीताराम राजू था।

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रंपा विद्रोह के नायक थे अल्लूरी

अल्लूरी सीताराम राजू उस समय वहां चर्चित हुए रंपा विद्रोह के नायक, जिसने अंग्रेजों के साथ हैदराबाद निजाम की भी नींदें उड़ा दी थीं। पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पहले रिकॉर्डेड एनकाउंटर में शहीद हुए अल्लूरी सीताराम राजू की 30 फीट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया था। अल्लूरी के बारे में जानने से पहले ये भी जान लेते हैं कि किस तरह देश की आजादी के आसपास जब हैदराबाद रियासत में अलग तेलंगाना के लिए संघर्ष शुरू हुआ तो हैदराबाद राज्य की पुलिस को खुला आदेश था कि तेलंगाना के समर्थक क्रांतिकारियों का चुन-चुनकर सफाया कर दिया जाए। इसमें बहुत से बेगुनाहों का भी कत्लेआम हुआ।

कौन थे अल्लूरी

अल्लूरी आंध्र प्रदेश के गोदावरी क्षेत्र के निवासी थे। 20 साल की उम्र में वह आदिवासियों के नेता बने। अल्लूरी अच्छे परिवार से थे। उनके पिता फोटोग्राफर थे, जो उस जमाने और तकनीक के लिहाज से एक नया और अनोखा काम था। चाचा तहसीलदार थे। अल्लूरी जब कक्षा दसवीं में पढ़ते थे तो घोड़े पर सवार होकर स्कूल जाया करते थे। वह जब विशाखापट्टनम पढ़ने गए, तभी एक लड़की सीता से उन्हें प्यार हो गया। दुर्भाग्य से सीता का निधन हो गया और अल्लारी का दिल टूट गया। जिसके बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी।

1922 में अल्लूरी ने थामा हथियार

पढ़ाई छोड़ने के बाद उनका ध्यान ज्योतिष, हस्तरेखा और घुड़सवारी में रमने लगा। जिस लड़की से उन्होंने प्यार किया था, उसका नाम अपने नाम से जोड़ लिया। 18 साल की उम्र में अल्लूरी संन्यासी बन गए। इसी दौरान अंग्रेजों ने जब गोदावरी इलाके के जंगलों में जब आदिवासियों की खेती पर पाबंदी लगाकर खुद बड़े पैमाने पर वन काटना शुरू किया तो उन्होंने आदिवासियों को इकट्ठा करना शुरू किया। तब 1922 के आसपास अल्लूरी ने जो विद्रोह शुरू किया, उसको रम्पा विद्रोह कहा गया। अल्लूरी ने आदिवासियों को शस्त्रकला में दक्ष किया।

अल्लूरी चमत्कारी पुरुष

आदिवासी अल्लूरी को भगवान मानते थे। ये माना जाता था कि वह चमत्कारिक पुरुष हैं। उनके पास कुछ ऐसी शक्तियां हैं, जो मानवों में नहीं होतीं। अल्लूरी की अगुवाई में गुरिल्ला युद्ध 700 वर्ग किलोमीटर के इलाके में फैल गया। इस इलाके में 28000 से ज्यादा आदिवासी रहते थे। उन्होंने इलाके से पुलिस थानों पर हमला करना शुरू किया। हमले के दौरान वह थाने का शस्त्रागार लूट लेते थे। फिर जाते समय लूट का विवरण देने वाली चिट्टी जरूर छेड़ जाते थे। कई पुलिस वाले भी इस दौरान मारे गए।

फिर पुलिस ने पकड़ कर मारी थी गोली

अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ने के लिए अपना सबकुछ झोंक दिया। रिकार्ड बताते हैं कि पुलिस वाले उन्हें तलाशने के लिए जाते थे और वह नहीं मिलते थे। दो सालों में अंग्रेजों और हैदराबाद रियासत ने उन्हें ढूंढने के अभियान में 40 लाख रुपए खर्च कर दिये थे। वह अबूझ पहेली बने हुए थे। घने जंगलों में वह अपनी सेना के साथ कहां रहते हैं किसी को पता नहीं चलता था। आखिरकार अंग्रेजों ने उन्हें 7 मई 1924 को चिंतापाले के जंगलों से गिरफ्तार कर लिया गया। फिर उन्हें गोली मार दी गई। अल्लूरी के साथ इस मुठभेड़ को एनकाउंटर के तौर पर हैदराबाद पुलिस द्वारा बकायदा दर्ज किया गया।

60 के दशक के बाद बड़ा ट्रेंड

60 के दशक के बाद से तेलंगाना के गठन तक एनकाउंटर आम ट्रेंड में रहा। आजादी के पहले आंध्र में एनकाउंटर हुआ करते थे। पंजाब में जब आतंकवाद पनप रहा था तो उस दौर में एनकाउंटर शब्द काफी चर्चा में रहा था। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यूपी में 20 मार्च, 2017 से लकर 5 सितंबर, 2024 के बीच 12,964 एनकाउंटर हुए हैं। इनमें से 210 अपराधियों को मार गिराया गया। मुठभेड़ में पुलिस के भी 17 लोगों को भी जान गंवानी पड़ी थी। औसतन हर 13 दिन में एक अपराधी को एनकाउंटर में मौत की नींद सुलाया गया। इन सात सालों से प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार है।

813 लोगों का हुआ एनकाउंटर

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयो के अनुसार, भारत में बीते 6 साल में 813 लोगों के एनकाउंटर हुए यानी उन्हें पुलिस मुठभेड़ में मार दिया गया। अप्रैल, 2016 के बाद से 2022 तक औसतन हर तीन दिन पर एक एनकाउंटर को अंजाम दिया गया। कोरोना काल के दौरान मुठभेड़ के मामले कम देखे गए। 2019-20 में यह 112 था, जो 2020-21 में घटकर 82 रह गया। हालांकि, इसके बाद एनकाउंटर में 69.5 फीसदी यानी 139 केस की बढ़ोतरी हुई। जानकार बताते हैं कि एनकाउंटर किलिंग 20वीं सदी से ज्यादा चलन में आया। खासतौर पर मुंबई, चेन्नई, कोलकाता और गाजियाबाद शहरों में हुई पुलिसिया मुठभेड़ के बाद से यह ज्यादा सुना और देखा गया। ज्यादातर एनकाउंटर अंडरवर्ल्ड और बेरहम हत्यारों के ही होते थे।

Tags: British GovernmentNizam of HyderabadRevolutionary Alluri Sitaram Raju
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