हुक्म का मातम: महिला सिपाहियों से प्रेग्नेंसी टेस्ट का आदेश, दो बार फंसे अफसर रोहित पी कनय फिर कटघरे में

गोरखपुर पीटीएस में महिला सिपाहियों से प्रेग्नेंसी टेस्ट कराने के विवादित आदेश ने योगी सरकार की किरकिरी कर दी है। डीआईजी रोहित पी कनय हटाए गए, लेकिन यह मामला अफसरशाही की संवेदनहीनता की बड़ी मिसाल बन गया।

Gorakhpur

Gorakhpur PTS controversy: गोरखपुर पीटीएस में महिला रिक्रूटों से जबरन प्रेग्नेंसी टेस्ट कराने का आदेश योगी सरकार के लिए नाक की लड़ाई बन गया है। इस विवाद में घिरे डीआईजी/प्रधानाचार्य रोहित पी कनय को हटाए जाने के बाद प्रशासन बैकफुट पर है, लेकिन सवाल उठ रहे हैं—क्या अफसरशाही में ऐसे फैसलों की खुली छूट है? ये वही रोहित पी कनय हैं जो 2018 के देवरिया शेल्टर होम कांड में भी लापरवाही के आरोप में हटाए गए थे। अब दोबारा एक संवेदनशील मुद्दे में विवादित आदेश देकर सुर्खियों में हैं। महिला सिपाहियों की निजता से खिलवाड़ के इस आदेश ने ना सिर्फ कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े किए, बल्कि पुलिस प्रशिक्षण संस्थानों की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर संदेह जताए हैं।

महिला रिक्रूटों का उबाल: “हम गर्भवती नहीं, सिपाही हैं!”

Gorakhpur पुलिस ट्रेनिंग स्कूल (पीटीएस) में अविवाहित महिला रिक्रूटों से जबरन प्रेग्नेंसी टेस्ट की मांग ने सब कुछ उलट-पलट कर दिया। Gorakhpur डीआईजी रोहित पी कनय द्वारा सीएमओ को भेजे गए पत्र में यह स्पष्ट आदेश था कि प्रशिक्षण शुरू करने से पहले सभी महिला रिक्रूटों की जांच कराई जाए। जैसे ही यह पत्र सामने आया, प्रशिक्षु सिपाहियों ने इसका विरोध शुरू कर दिया। उनका कहना था कि यह उनकी निजता और गरिमा पर सीधा हमला है।

प्रशिक्षण में पहले से ही खराब भोजन, पानी की कमी, बिजली की समस्या जैसी शिकायतें मौजूद थीं। लेकिन प्रेग्नेंसी टेस्ट का फरमान, आग में घी डालने जैसा साबित हुआ। 600 महिला सिपाहियों ने एकजुट होकर पीटीएस के बाहर प्रदर्शन किया, जिससे यह मुद्दा सरकार के गलियारों तक गूंज उठा।

दो बार विवाद में अफसर: रोहित पी कनय का ‘दागदार’ ट्रैक रिकॉर्ड

रोहित पी कनय का नाम पहली बार विवादों में नहीं आया है। 2018 में जब देवरिया शेल्टर होम में लड़कियों के यौन शोषण का मामला उजागर हुआ था, तब वे वहीं के एसपी थे। छापे में 24 लड़कियों को तो रेस्क्यू किया गया, लेकिन कई लड़कियां गायब थीं। जांच में लापरवाही साबित होने पर उन्हें पद से हटा दिया गया था। तब भी सवाल यही था—क्या एक अफसर को इतना गंभीर मामला नजरअंदाज करने की छूट मिलनी चाहिए?

अब गोरखपुर पीटीएस में दोबारा उनका विवादित आदेश प्रशासन को असहज स्थिति में ले आया है। क्या यह संयोग है कि एक ही अधिकारी दो बार महिला-संबंधी मामलों में विवाद का कारण बनता है? या फिर ये सिस्टम की लापरवाही की बानगी है?

तेज़ कार्रवाई लेकिन सवाल कायम

डीआईजी रोहित पी कनय को हटाकर लखनऊ मुख्यालय में प्रतीक्षारत रखा गया है। कमांडेंट आनंद कुमार और आरटीसी प्रभारी संजय राय को निलंबित कर दिया गया है। वहीं, अनिल कुमार और निहारिका सिंह को नई जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं। आईजी ट्रेनिंग ने आदेश को निरस्त करते हुए साफ किया कि सिर्फ शपथ पत्र लिया जाएगा, मेडिकल टेस्ट नहीं।

लेकिन यह आदेश सबसे पहले क्यों जारी किया गया? क्या महिला सिपाहियों की निजता इतनी आसान चीज़ है जिसे मेडिकल रूल्स की आड़ में कुचल दिया जाए?

राजनीति में बवाल, विपक्ष हमलावर

समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इसे महिला अधिकारों का खुला उल्लंघन बताया है। विपक्ष ने कहा कि ये वही सरकार है जो ‘बेटी बचाओ’ का नारा देती है और फिर उन्हीं बेटियों को ट्रेनिंग से पहले मां बनने के प्रमाण पत्र मांगती है! सोशल मीडिया पर भी इस आदेश की चौतरफा निंदा हो रही है।

एक वायरल पोस्ट में लिखा गया—“पहले थानों में महिलाएं सुरक्षित नहीं थीं, अब ट्रेनिंग सेंटर भी खतरे में हैं!”

क्या रोहित पी कनय सिस्टम की भूल हैं या सिस्टम का चेहरा?

Gorakhpur प्रकरण में एक बात तो साफ है—प्रशासनिक संवेदनशीलता और मानवीय गरिमा की परीक्षा में अफसरशाही फिर फेल हुई है। सवाल यह नहीं कि रोहित पी कनय को हटा दिया गया, असली सवाल यह है कि क्या उन्हें फिर से किसी जिम्मेदारी भरे पद पर बैठाया जाएगा? और क्या सरकार इस तरह के आदेशों पर पहले से नियंत्रण नहीं रख सकती?

यह मामला अब सिर्फ एक विवाद नहीं, बल्कि पूरे पुलिस प्रशिक्षण तंत्र की समीक्षा का संकेत है।

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